धर्म

यह सारी बातें अपने बच्चों को अवश्य सिखाओ : समाज में परिवार की क्या भूमिका है, जानिये!

किसी भी समाज की मूल इकाई परिवार होता है।

हर समाज की सफलता भी परिवार की सफलता पर निर्भर है। परिवार रूपी इकाई केवल एसी स्थिति में ही अपनी प्रभावी भूमिका निभा सकती है कि जब इसके आधार मज़बूत हों। जिस समाज में परिवार रूपी इकाई सुदृढ़ होगी वह समाज तेज़ी से प्रगति कर सकता है। संसार के सभी समाजशास्त्री, परिवार को ही समाज की पहली कड़ी बताते हैं। मनो वैज्ञानिक भी इन्सानों की मनोदशा के रहस्यों को परिवार के भीतर ही खोजते हैं। समस्त बुद्धिजीवी, परिवार को प्रशिक्षण का केन्द्र मानते हैं। समाज सुधारक, हर प्रकार के सुधारवादी अभियान को परिवार पर ही निर्भर समझते हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि परिवार कितना महत्वपूर्ण है? अब हमे यह देखना होगा कि समाज में परिवार की क्या भूमिका है।

परिवारों को मज़बूत बनने के लिए किसी को अपना आदर्श बनाना होता है। आदर्श जितना अच्छा होगा उसका अनुसरण करने वाले भी उतने ही अच्छे होंगे। आप जानते होंगे कि हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का परिवार एक सफल एवं आदर्श परिवार है। यह एसा परिवार है जिसमें भीतर सफल जीवन व्यतीत करने की सारी विशेषताएं पाई जाती हैं। हज़ारत फ़ातेमा ज़हरा संसार की सभी महिलाओं के लिए आदर्श हैं। इसी प्रकार के उनके पति हज़रत अली समस्त मानवीय गुणों के स्वामी थे। वे हर क्षेत्र में निपुण थे। अगर आप ग़ौर करें तो पाएंगे कि हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा का परिवार वास्वत में न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि सबके लिए आदर्श परिवार है।

ईश्वर के अन्तिम दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पवित्र परिजनों को इस्लाम में अति विशेष महत्व प्राप्त है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को “अहलेबैत” के नाम से जाना जाता है। आस्था के संदर्भ में पैगम्बरे इ्सलाम (स) और उनके पवित्र परिजन ईरानी परिवार के लिए सदा से आदर्श रहे हैं। अगर आपने इस्लामी साहित्य का अध्ययन किया है तो निश्चित रूप से आप सब ने “हदीसेकेसा” या “चादर” की प्रसिद्ध एतिहासिक घटना सुनी होगी। हदीसेकेसा की घटना में पारिवारिक शिक्षाएं भरी पड़ी हैं। इसमें पति के प्रति व्यवहार, माता-पिता और संतान से व्यवहार, परिवार के सदस्यों का सम्मान तथा इसी प्रकार के बहुत से विषयों के बारे में शिक्षा मौजूद है। इससे यह भी पता चलता है कि धर्म में परिवार और परिवार के सदस्यों का क्या स्थान है।

Dr Tariq Tramboo
@tariqtramboo
One of the oldest Quran (8th century), preserved in Uzbekistan. It is said to have belonged to Hazrat Usman Ghani (ra).

~ The book which cannot be corrupted because God promised its protection. #Quran

 

हदीसेकेसा मुसलमानों विशेषकर शिया मुसलमानों में बहुत प्रचलित है। दुआओं में इसे विशेष महत्व प्राप्त है। सामान्यतः हर गुरूवार को इसे पढ़ा जाता है। किसी कार्यक्रम के आरंभ में भी इसे पढ़ा जाता है। कुछ लोग प्रतिदिन इसे पढ़ते हैं। हदीसेकेसा मूलतः अरबी भाषा में है। यहां पर हम संक्षेप में उसका हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। पैग़मबरे इस्लाम (स) की सुपुत्री हज़रत फ़ातिमा ज़हरा कहती हैं कि एक दिन मेरे पिता पैग़म्बरे इस्लाम मेरे घर तशरीफ़ लाये। उन्होंने मुझे सलाम किया और कहा कि “मै अपने जिस्म में कमज़ोरी महसूस कर रहा हूं। मैने कहा कि हे पिता अल्लाह की पनाह जो आप में कमज़ोरी आए। इसपर आपने फ़रमाया: “ऐ फातिमा मुझे एक यमनी चादर लाकर उढ़ा दो” तब मै यमनी चादर ले आई और मैंने वह अपने पिता क़ो ओढ़ा दी। मैं देख रही थी कि उनका चेहरा चौदहवीं के चांद की तरह चमक रहा था। कुछ समय के बाद मेरे बड़े बेटे हसन वहां आ गए। उन्होंने सलाम करने के बाद कहा कि हे माता मै आप के यहाँ पवित्र सुगंध महसूस कर रहा हूँ। यह सुगंध जैसे मेरे नाना पैग़म्बरे इस्लाम की ख़ुशबू जैसी है। इसपर मैंने कहा, “हाँ तुम्हारे नाना चादर ओढ़े हुए हैं” इसपर हसन चादर की तरफ़ बढे और उन्होंने चादर में जाने की अनुमति मांगी। पैगम्बरे इस्लाम ने उन्हें अनुमति दी और हसन भी चादर में पहुँच गए। कुछ ही देर में मेरे बेटे हुसैन भी वहां पर आ गए। उन्होंने भी उसी तरह से अनुमति मांगी। अनुमति मिलने के बाद वे भी चादर में चले गए। कुछ समय के बाद अली भी वहां आ गए। सलाम के बाद उन्होंने भी चादर के अंदर जाने की इजात़त मांगी और पैगम्बरे इस्लाम ने अली को भी अनुमति दे दी फिर मैं भी अनुमति लेकर चादर में चली गई। अब हम पांच लोग चादर के नीचे एकत्रित हो गए। जब हम पांचों चादर में एकत्रित हो गए तो पैगमबरे इस्लाम ने चादर के दोनों कोनों को पकड़ा और दाहिने हाथ से आसमान की ओर इशारा करते हुए कहाः हे ईश्वर! यह हैं मेरे विशेष परिजन!

हदीसे किसा या चादर की इस पूरी घटना के हर वाक्य में एक पाठ है, बड़ों का सम्मान कैसे किया जाए? किस प्रकार से सलाम किया जाए? किस तरह से अनुमति ली जाए। माता-पिता से कैसे बात की जाए।

इस परिवार में पांच हस्तियां हैं जिनका इ्स्लाम धर्म में बहुत महत्व है। एक पैगम्बरे इस्लाम (स) हैं, तीन इमाम और पैगम्बरे इस्लाम की सुपुत्री एवं हज़रत अली की पत्नी हैं। इस घर में तीन पीढ़ियां एक साथ हैं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा वे हैं जो इन नस्लों को आपस में जोड़ती हैं। इस्लामी इतिहास और शिया मुसलमानों के इतिहास से अवगत लोग बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि हदीसेकेसा की घटना में जिन हस्तियों का उल्लेख है, उनका ईश्वर के निकट क्या स्थान है और इस्लाम की सारी बड़ी-बड़ी घटनाएं उनके आसपास घूमती हैं।

इस्लामी परिवार और उसके संस्कारों के लिए यह परिवार निश्चित रूप से आदर्श है और इस परिवार ने समाज के लिए अत्याधिक आवश्यक परिवार के तत्वों को एक दूसरे के साथ जोड़ने का तरीका समाज को बताया है। ईरान में परिवारों का आदर्श यह परिवार है यही वजह है कि ईरान में परिवार के सदस्यों के लिए पारिवारिक कर्तव्य का अत्याधिक महत्व होता है। वफादारी, प्रेम, स्नेह, सम्मान और बलिदान जैसे गुणों को परिवार में अत्याधिक महत्व प्राप्त है।

संसार की वास्तविकता को समझने और प्रशिक्षण का महत्व समझाने के उद्देश्य से यहां पर हम हज़रत अली का एक कथन पेश करते हैं। इमाम अली कहते हैं कि दुनिया दो दिन की है। एक दिन तुम्हारे साथ है और दूसरे दिन तुम्हारे विरुद्ध है। जिस दिन वह तुम्हारे साथ हो उस दिन घमण्ड न करो और जिस दिन तुम्हारे विरुद्ध हो जाए उस दिन हताश और निराश न हो क्योंकि दोनो ही सामप्त हो जाएंगे।

जब कभी अपने बच्चे के साथ सड़क पर निकलो तो कभी-कभार सड़क पर पड़े पत्थरों या ईंटों को रास्ते से हटा दिया करो। अगर तुम्हारा बच्चा यह पूछे कि तुम यह क्यों कर रहे हो तो उसे बताओ कि यह इसलिए किया जा रहा है कि हमारे बाद आने वालों को ठोकर न लगे और वे पत्थर से न टकराएं। अपने बच्चों को यह भी समझाओ कि हो सकता है कि हमारे बाद आने वाले को यह पता ही न हो कि किसी ने हमारे रास्ते से पत्थर हटाए हैं एसे में वह किसी का आभार कैसे व्यवक्त कर सकता है। याद रखो कि यह कोई ज़रूरी नहीं है कि सारे काम लोगों से तारीफ़ हासिल करने के लिए ही किये जाएं।

निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करना सीखो। अपनी तारीफ सुनने के लिए काम न करो। यह सारी बातें अपने बच्चों को अवश्य सिखाओ। एसा न हो कि समय गुज़रता जाए और तुम इस बात की प्रतीक्षा में रहो कि दूसरे तुम्हारे साथ भलाई करें। कभी-कभी लोगों की छिपकर आर्थिक मदद कर दिया करो। दूसरों की मदद छिपकर इस तरह से करो कि किसी को यह मालूम न होने पाए कि यह काम किसने किया है। इस बात को अपने बच्चों को ही बताओ ताकि वे भी कुछ सीखें। बच्चों को यह भी समझाना चाहिए कि भलाई करने के बाद उसके बदले की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। कहने का तातपर्य यह है कि भलाई करने के बाद उसके बदले की न सोचो और बच्चें को भी इसे याद दिलाओ।