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यूक्रेन की तबाही की अस्ली वजह अमेरिका और यूरोपीय देश हैं, अमेरिका और यूरोपीय देश किन कारणों से यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं, जानिये!

24 फरवरी से रूस ने यूक्रेन के खिलाफ विशेष सैन्य आप्रेशन आरंभ कर रखा है और अब तक यह ऑप्रेशन जारी है।

रूस- यूक्रेन युद्ध को आरंभ हुए लगभग 8 महीने का समय हो रहा है और इस युद्ध में दोनों तरफ का भारी नुकसान हो चुका है। इस भारी नुकसान की एक महत्वपूर्ण वजह अमेरिका, पश्चिमी व यूरोपीय देशों और नाटो द्वारा यूक्रेन का खुला व व्यापक समर्थन है। इन देशों ने यूक्रेन का समर्थन करके आग में घी डालने का काम किया है। ये देश एक ओर यूक्रेन का व्यापक समर्थन कर रहे हैं और दूसरी ओर उन्होंने रूस पर कड़ा से कड़ा प्रतिबंध भी लगा रखा है।

अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी व यूरोपीय देश यूक्रेन का जो व्यापक समर्थन कर रहे हैं वह यूक्रेन की मोहब्बत में नहीं है बल्कि वे रूस की दुश्मनी में एसा कर रहे हैं। बहुत से जानकार हल्कों का मानना है कि वर्षों तक अमेरिका और रूस के बीच शीतयुद्ध चला। शीतयुद्ध का यह मतलब नहीं कि अमेरिका और रूस की दुश्मनी खत्म या कम हो गयी बल्कि वे एक दूसरे से आमने- सामने युद्ध करने से परहेज़ करते हैं और जब भी और जहां भी उन्हें मौक़ा मिलता है वे एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने में संकोच से काम नहीं लेते हैं।

अमेरिका ने जिस तरह फार्स की खाड़ी में अपने प्रभाव को बनाये रखने और इन देशों को अपने हथियारों की मंडी बनाये रखने के लिए ईरानो फोबिया की नीति अपना रखी है उसी तरह उसने यूरोपीय देशों को समझा दिया है कि रूस तुम्हारी सुरक्षा के लिए खतरा है और उसकी नसीहत पर यूरोपीय देश अमल भी कर रहे हैं और अमेरिका की हां में मिलाने में लेशमात्र भी संकोच से काम नहीं ले रहे हैं जबकि वास्तविकता यह है कि खुद अमेरिका यूरोपीय देशों की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

अमेरिका ने अपने बहुत से परमाणु हथियारों को यूरोपीय देशों में रख रखा है और कुछ यूरोपीय देश यह समझते हैं कि अमेरिका को उनकी सुरक्षा की चिंता है इसलिए उसने एसा कर रखा है जबकि अमेरिका को लेशमात्र भी यूरोप की सुरक्षा की चिंता नहीं है और उसने रूस से मुकाबले के लिए एसा कर रखा है। अगर रूस और अमेरिका के मध्य परमाणु युद्ध होता है तो यूरोपीय देशों की तबाही होगी न कि अमेरिका में।

इसी प्रकार बहुत से टीकाकारों का मानना है कि आज यूक्रेन की तबाही की अस्ल वजह अमेरिका और नाटो हैं। अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को नाटो की सदस्यता की लालच व झांसा दे रखा है और यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता ग्रहण करने का सपना देखकर अपने देश को अमेरिका और नाटो की छावनी बनने की अनुमति दे दी और इन देशों के ड्रोन रूस की सीमा तक उड़ते और जासूसी करते थे और नाटो और अमेरिका के इस काम को रूस ने अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा समझा और 24 फरवरी को उसने यूक्रेन के खिलाफ विशेष सैन्य अभ्यास आरंभ कर दिया।

रोचक बात यह है कि अमेरिका और नाटो ने आज तक यूक्रेन को नाटो का सदस्य नहीं बनाया क्योंकि इन देशों को अच्छी तरह पता है कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता देने का मतलब इस देश की ओर से रूस से युद्ध करना और अमेरिका और नाटो कभी भी रूस से सीधे सैन्य टकराव नहीं चाहते हैं। क्योंकि अमेरिका और नाटो को भलीभांति ज्ञात है कि रूस से टकराने का अर्थ अपनी कमज़ोरी व तबाही को दावत देना है।

जानकार हल्कों का मानना है कि अमेरिका और नाटो कभी भी एसी ग़लती नहीं करेंगे जिससे दूसरे देशों पर वर्चस्व और दादागीरी जमाने में इन देशों को कोई कठिनाइयों का सामना हो। बहरहाल अमेरिका और नाटो किसी के सगे नहीं हैं और वे हमेशा अपने हितों के बारे में सोचते हैं और उसी के अनुसार अपनी नीति निर्धारित करते हैं। यूक्रेन के समर्थन के नाम पर इस समय ये देश जो कुछ कर रहे हैं उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।