इतिहास

ये एक अनोखा त्रिशूल है…जब स्पेनिश फ़िलीपीन्ज़ पहुंचे तो वहां की अकूत धन संपत्ति लूटी!

त्रिशूल की नोंक से इतिहास की थोड़ी सी धूल कुरेद ली गई है

संसार के किसी न किसी कोने से मिट्टी सनातन के प्रमाण उगलती रहती है। अबकी खबर नहीं आई, बल्कि सनातन के प्रमाण स्वयं भारत चले आए हैं। सन 2015 में फ़िलीपीन्ज़ के व्यवसायी सैयद शेमर हुसैन को एक तांबे की खदान में खुदाई के दौरान एक सुंदर त्रिशूल और वज्र प्राप्त हुए। शरुआत में सैयद समझ नहीं सके थे कि उन्होंने क्या खोजा है। नेट पर खोज की और भारत के मित्रों से बात करने पर उन्हें इन वस्तुओं के नाम ज्ञात हुए। ये त्रिशूल और वज्र अब भारत आ चुके हैं। सैयद इन्हे अपने साथ लेकर आए हैं और बाकायदा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में त्रिशूल और वज्र का पंजीकरण भी कराया है। त्रिशूल लगभग दस हज़ार वर्ष प्राचीन और वज्र लगभग तीन हज़ार वर्ष प्राचीन बताया जा रहा है।

ये एक अनोखा त्रिशूल है। इसे बनाने में एक से अधिक धातुओं का प्रयोग किया गया है। इसकी मूठ बड़ी सुंदर है। सैयद शेमर हुसैन को साधुवाद कि उन्होंने सनातन के इन प्रमाणों को भारत लाकर हमारे साथ साझा किया है। इस त्रिशूल की नोंक से इतिहास की थोड़ी सी धूल कुरेद ली गई है।

फ़िलीपीन्ज़ का प्राचीन इतिहास भारतवर्ष और इंडोनेशिया के साथ जुड़ा हुआ है। फ़िलीपीन्ज़ केवल सनातन ही नहीं बौद्ध धर्म का वाहक भी रहा है। सात हज़ार द्वीपों के इस देश का समृद्ध इतिहास स्पेनिश आक्रमणकारियों ने नष्ट कर डाला। न केवल इतिहास बल्कि उसका नाम भी बदल डाला। फ़िलीपीन्ज़ का प्राचीन नाम 400 वर्ष पूर्व तक ‘महारिका’ हुआ करता था। महारिका शब्द संस्कृत के ‘महर्द्धिक’ से निकला है। इसका अर्थ होता है समृद्ध और शक्तिशाली। महारिका के संस्थापक योद्धा हुआ करते थे इसलिए उन्होंने अपने देश का ये नाम रखा। बाद में स्पेनिश हमलावरों ने नाम बदल दिया।

फ़िलीपीन्ज़ में ऐसा बहुत कुछ मिला है, जो भारत से उसका पुरातन संबंध जोड़ता है। ‘संस्कृति मैगजीन’ के अनुसार ‘ राजेंद्र चोल के एक महत्वपूर्ण तमिल शिलालेख की ठीक से व्याख्या नहीं की गई थी। शिलालेख में उल्लिखित स्थानों के नामों में से आधे की ठीक से पहचान नहीं हो पाई है। ईस्ट इंडीज पहली शताब्दी ईसा पूर्व के कालिदास के लिए जाने जाते थे। परशुराम अपरान्त से जुड़े हुए थे। कालिदास इंडोनेशिया और उससे आगे के द्वीपों का उल्लेख द्विपंतर के रूप में करते थे। राजेंद्र चोल के शिलालेख में परशुराम का उल्लेख है।’

जब स्पेनिश फ़िलीपीन्ज़ पहुंचे तो वहां की अकूत धन संपत्ति लूटी। वहां से टनों सोना स्पेन ले जाकर पिघलाया गया। इनमे सैकड़ों देवी देवताओं की मूर्तियां भी। कुछ बच गई, जो म्यूजियम में रखी हुई है। 1917 में मिंडानाओ से बरामद साढ़े पांच इंच ऊंची सुनहरी मूर्ति शिकागो के फील्ड म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में रखी गई है। ये मूर्ति बौद्ध देवी तारा की है। इसका भार लगभग दो किलो है। लगूना ताम्रपत्र अभिलेख (Laguna Copperplate Inscription, फ़िलिपीन्ज़ के लगूना प्रान्त में मिला 900 ईसवी में तराशी हुई लिखाई वाला ताम्बे का एक प्लेट है। यह पुरानी कवि लिपि में पुरानी मलय भाषा में लिखी हुई और फ़िलीपीन्ज़ में मिलने वाली प्राचीनतम लिखाई है। यह सन् 1989 में लुम्बंग नदी के मुख के पास एक मज़दूर को मिली थी। यह ताम्रपत्र फ़िलीपीन्ज़ पर भारी भारतीय प्रभाव का संकेत करता है और फ़िलीपीन्ज़ के तोन्दो राज्य और श्रीविजय राजवंश, जावा के माताराम राजवंश और भारत के राज्यों के बीच सम्पर्क और सम्बन्ध का प्रमाण देता है।

हिंदू संगीत वाद्ययंत्र कदजाबी अभी भी फिलीपींस में बजाया जाता है। द्वीपों में आज भी सैकड़ों संस्कृत शब्दों का प्रयोग होता है। तोन्दो राज्य (अंग्रेज़ी: Kingdom of Tondo, तगालोग: Kaharian ng Tondo) फ़िलिपीन्ज़ के लूज़ोन द्वीप के मनिला खाड़ी क्षेत्र में स्थित एक मण्डल शैली का राज्य था। सन् 1175–1571 काल में अस्तित्व में रहा यह राज्य भारतीय संकृति से गहरी-तरह प्रभावित था। इसकी जड़ें इसकी स्थापना से पहले जाती हैं और इस जगह बस्ती के उपस्थित होने का उल्लेख सन् 900 ईसवी काल की लगूना ताम्रपत्र अभिलेख में मिलता है। श्रीविजय राजवंश इंडोनेशिया का एक प्राचीन राजवंश था। इस राज्य की स्थापना चौथी शती ई. में या उससे भी पहले हुई थी।सातवीं शताब्दी में ‘श्रीविजय’ या ‘श्रीभोज’ वैभव के शिखर पर था। माताराम इंडोनेशिया का एक प्राचीन राजवंश था।

– विपुल विजय रेगे