डॉ. शैलजा दुबे
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* ये शर्मिंदा होने का नया दौर है *
उन्होंने नग्नता को
सदा बनाया अपना अचूक अस्त्र
और वे हथेलियों को बनाती रहीं वस्त्र
ढकती रहीं अपने वक्ष
या जंघाओं का मध्यस्थल
तमाशबीन लोग थोथा थू थू करते
लेते रहे नयन सुख
क्योंकि स्त्री की नग्नता है सबसे बड़ा सुख
स्त्री दुखी है
जिन को अपने शरीर से पैदा किया
दुग्ध पान कराया
बाहों के झूले में झुलाया
हजार बलाओं से दूर रखा
वे पुरुष सिर्फ पुरुष ही रह गए
कभी नहीं पढ़ सके स्त्री मन
उदार मन चित्रकारों ने
रची नई स्त्री दस हाथ वाली
जो आसानी से छुपा ले अपनी नग्नता
हमारे पास दो हाथ हैं
सो ………
आज मेट्रो की स्त्री ने
उघाड़ दिए हैं
अपने स्तन
कमर
जंघाए
अब बहुत शर्मसार है समाज
और स्त्री शर्मसार है
मणिपुर जैसी जघन्य घटना पर
उससे भी ज्यादा जिम्मेदार पदों के मौन पर 🥲🥲
डॉ . शैलजा दुबे
गुरुग्राम ( हरियाणा )
हमारी सल्तनत के तौर देखो
सियासत का गजब ये दौर देखो
हमारे कत्ल की साजिश में सूरज
कहाँ जाकर के पायें ठौर देखो
इसी के दम पे ऐंठे घूमते थे ?
इसी दम के तमाशे और देखो
हमारा इल्म बन बैठा मुसीबत
मसीहा खा रहे हैं खौर देखो
उन्हीं को मारने की शाजिशें हैं
है जिनके दम से मुँह में कौर देखो
बनी है सादगी मुश्किल तुम्हारी
बदलकर शैलजा अब तौर देखो
डॉ . शैलजा
अलीगंज ( एटा )
डॉ. शैलजा दुबे
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संसार के समस्त पुरुषों को समर्पित एक रचना 🙏🙏
धीर और उत्तुंग गिरि
व्यक्तित्व वाले
चल पडें होकर निडर
व्याघ्र से दो हाथ करने
आंधियों को आंख झपके
मुठ्ठियाँ में भींच डालें
और तूफानों की गर्दन गर्द में करने को आतुर
एक ही झटके में जिनकी
असि हिमालय को हिला दे
और अंजुरि में भरें तो फिर पयोनिधि भी सुखा दें
मन करें तो भूप बिन कर दें धरा को
हाँ ! वही पाषाण मन वाले तपस्वी
रो पड़ें तो
हा ! गृहस्थों के
हृदय को भी हिला दें
जिनके आधे अंग में
हम भी विराजे हैं
रिझाने को बनाने को
सरस सुंदर ये धरती
जहाँ पर देवता भी हर समय
आने को आतुर
भोगने को
रत्नगर्भा के दिये ऐश्वर्य सारे
उस धरा के शम्भु रूपी
सत्यरूपा कामिनी के उर समाए
हे ! देव , अर्धनारीश्वर ! , मनु !
तुम्हें शत शत नमन
डॉ. शैलजा