विशेष

ये सब उसी नाई के भाई बंधु हैं, इनका मक़सद और कुछ नहीं बस तुम्हें मारकर ”धुस्स” कर देना है

चित्र गुप्त
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बड़ी पुरानी कहानी है —
एक बार पंडित जी, बाऊ साहब, लाला जी और रैदास जी कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें गन्ने का खेत दिखा तो चारों ने एक -एक तोड़ लिया चूसते हुए चलने लगे। कुछ दूर आगे जाने के बाद उन्हें खेत का मालिक मिल गया। उसने इन्हे गन्ना चूसते हुए देखा तो अंदर ही अंदर बहुत गुस्सा हुआ। लेकिन ये चार थे वो अकेला था। मजबूरी में कुछ बोल न पाया और इनके साथ साथ बातचीत करते हुए चलने लगा।
थोड़ा चलने के बाद ही बातों बातों में उसने इन चारों की जाति पता कर लिया। फिर क्या था उसने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी आखिर वो भी नाई का बेटा था, एक कहावत भी है मनई में नौवा और पंछी में कौवा।
उसने बोलना शुरू किया — “का रे अधम आदमी…” उसने रैदास को संबोधित किया था।
“ये तो पंडित जी हैं जन्म से लेकर मरण तक हमारा काम इनके बिना नहीं चलता, दूसरे ये बाऊ साहब हैं कहीं कोई जरूरत पड़े तो लाठी लेकर आ जायेंगे, तीसरे ये लाला जी कभी पैसा रुपया कम पड़े तो उधार वगैरह दे देते हैं। इन लोगों ने गन्ना तोड़ा तो ठीक है कोई बात नहीं लेकिन तूने क्यों तोड़ा रे…” इतना कहकर वह रैदास जी के ऊपर जुट गया। बाकी तीनों का उसने तारीफ कर रखा था इसलिए ये कुछ नहीं बोले और उस बेचारे का कचूमर निकल गया।
जब नाई रैदास जी को मारकर थक गया तो आकर फिर इन तीनों से बात करने लगा। अब बारी लाला जी की थी। उसने कहा — “का रे ललवा! पंडित जी और बाऊ साहब तो ठहरे धर्मात्मा आदमी इनकी कोई बात नहीं, पर तू तीन देता है फिर तीस वसूलता है तेरी कैसे हिम्मत हो गई गन्ना तोड़ने की?”
पंडित जी और बाऊ साहब की तारीफ हो रखी थी इसलिए वो इसबार भी नहीं बोले और उसने लाला जी को मारकर धुस्स कर दिया।
नाई यही नुस्खा दोहराता रहा और अंत में पंडित जी की भी पिटाई करके वह अपने घर चला गया।
कहने का तात्पर्य ये कि जो लोग आ आ कर तुम्हारी जातियों की दुहाई देते हैं और तुम्हें सातवें आसमान पर चढ़ा देते हैं दरअसल ये सब उसी नाई के भाई बंधु हैं इनका मकसद और कुछ नहीं बस तुम्हें मारकर धुस्स कर देना है।
तो बहनों और भाइयों एक रहो नेक रहो
दिल दो किसी एक को वह भी किसी नेक को
यह कोई तोहफा नहीं जो बांटते रहो हरेक को (अज्ञात)
#चित्रगुप्त