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ये हालात इमरजेंसी से भी बदतर हैं : दिल्ली, मुंबई, राँची, हैदराबाद और फ़रीदाबाद समेत कई जगहों पर छापे मारे गए, मगर क्यों : रिपोर्ट

मंगलवार को पुणे पुलिस ने देश के अलग-अलग हिस्सों में कई छापे मारे और महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच का हिस्सा बताते हुए कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया.

इस साल जनवरी में भीमा कोरेगांव में दलितों का प्रदर्शन हुआ था. इसमें हिंसा होने की भी ख़बरें आई थीं.

पुलिस अधिकारियों ने बीबीसी को बताया है कि दिल्ली, मुंबई, राँची, हैदराबाद और फ़रीदाबाद समेत कई जगहों पर छापे मारे गए हैं.

इसमें भारत के पांच प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और कवि गिरफ़्तार किए गए हैं.

इनमें सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा शामिल हैं. पांचों को देश के अलग-अलग शहरों से गिरफ़्तार किया गया है.

पुणे पुलिस के जॉइंट कमिश्नर (कानून-व्यवस्था) शिवाजी बोडके ने बीबीसी संवाददाता विनीत खरे को बताया, “कोरेगांव में जो हिंसा हुई उसे नक्सलवादियों का समर्थन हासिल था. ये लोग माओवादी गतिविधियों में शामिल थे. माओवादी हिंसा के पीछे इन लोगों का हाथ था. पुलिस इन लोगों को पुणे लाने की कोशिश कर रही है. इस मामले में चार्जशीट कब दायर की जाएगी इसके बारे में बाद में जानकारी दी जाएगी.”

पुलिस की इस कार्यवाई की चौतरफ़ा आलोचना की जा रही है. मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए.

Rahul Gandhi
@RahulGandhi
There is only place for one NGO in India and it’s called the RSS. Shut down all other NGOs. Jail all activists and shoot those that complain.

Welcome to the new India.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर तंज कसा, “भारत में सिर्फ़ एक ही एनजीओ की जगह है और वो है आरएसएस. नए भारत में आपका स्वागत.”

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने ट्विटर पर लिखा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को जल्द से जल्द दख़ल देना चाहिए.

वरिष्ठ वक़ील प्रशांत भूषण का कहना है कि फ़ासीवादी शक्तियाँ अब खुलकर सामने आ गई हैं.

Ramachandra Guha
@Ram_Guha
As a biographer of Gandhi, I have no doubt that if the Mahatma was alive today, he would don his lawyer’s robes and defend Sudha Bharadwaj in court; that is assuming the Modi Sarkar hadn’t yet detained and arrested him too

इस मामले में बीबीसी ने जानी मानी लेखिका अरुंधति रॉय, नक्सलवादी इलाक़ों में पत्रकारिता कर चुके राहुल पंडिता और पीयूसीएल की सचिव कविता श्रीवास्तव से बात की.

पढ़िए उनकी प्रतिक्रिया:


जानी-मानी लेखिका अरुंधति रॉय

देश भर में एक साथ हो रही ये गिरफ़्तारियां एक ख़तरनाक संकेत हैं. ये सरकार के डर को दिखाती हैं. इससे पता चलता है कि सरकार को यह डर सता रहा है कि लोग उसका साथ छोड़ रहे हैं और इसलिए वो घबरा गई है.

आज देश भर में वक़ीलों, कवियों, लेखकों, दलित अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर उटपटांग आरोप लगाकर उन्हें गिरफ़्तार किया जा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ़ मॉब लिंचिंग करने, धमकी देने और लोगों को दिनदहाड़े हत्या करने की धमकी देने वाले खुले घूम रहे हैं.

ये चीज़ें बताती हैं कि भारत किधर जा रहा है. हत्यारों का सम्मान किया जा रहा है, उन्हें सुरक्षा दी जा रही है.

जो भी इंसाफ़ के लिए या हिंदू बहुसंख्यकवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है, उसे अपराधी बता दिया जाता है. जो कुछ भी हो रहा है वो बेहद ख़तरनाक है.

चुनाव से पहले ये उस आज़ादी और भारतीय संविधान के ख़िलाफ़ तख़्तापलट की कोशिश है, जिसे हम संजोए हुए हैं.

जो कुछ हो रहा है वो संभवत: आपातकाल से भी ज़्यादा गंभीर और ख़तरनाक है. अगर हम इन गिरफ़्तारियों को लिंचिंग करने वालों और नफ़रत फैलाने वालों के साथ रखकर देखें तो ये भारतीय संविधान पर बेतहशा होने वाले वैचारिक हमले जैसा है.

वरिष्ठ पत्रकार राहुल पंडिता
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इन गिरफ़्तारियों के पीछे पुलिस की क्या मंशा है. मैं तमाम लोगों को जानता हूं. माओवादी ठिकानों से मैं रिपोर्टिंग कर चुका हूं.

इन सभी लोगों से मेरी मुलाक़ात है. सुधा भारद्वाज के काम से मैं काफ़ी सालों से परिचित रहा हूं और उनकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है.

सुधा ज़मीन पर काम करने वाली कार्यकर्ता हैं और मैं निजी तौर पर कह सकता हूं कि इनका माओवादियों से कोई संबंध नहीं है.

उनका काम है भारतीय सरकार और माओवादियों के बीच में फंसे ग़रीबों की लड़ाई लड़ना, जो जेलों में हैं और वो इतने ग़रीब हैं कि ज़मानत तक नहीं करा सकते, जिन्हें ये तक नहीं पता कि वो जेल में क्यों हैं.

मैं समझता हूं कि सरकार पर दवाब है और उसे लगता है कि अर्बन नेटवर्क को तोड़ने की ज़रूरत है. बीते कई सालों में हमने देखा है कि पुलिस सबूत पेश नहीं कर पाती है. ये कार्यकर्ता महीनों या सालों जेल में रह लेते हैं तब हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप होता है.

Rahul Pandita
@rahulpandita
This is insane. @Sudhabharadwaj has nothing to do with Maoists. She is an activist and I have known of and been grateful of her work for years.

Saurav Datta
@SauravDatta29
Just got this message about @Sudhabharadwaj – She is being taken to Surajkund PS in Haryana. The update is that she will be produced for Transit Remand and then taken to Nagpur.

लोकतंत्र में ऐसा नहीं होना चाहिए. ये 2019 के चुनाव से पहले का डर है या नागरिक अधिकारों को ख़त्म करने की कोशिश हो रही है?

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि आख़िर ऐसा क्यों किया जा रहा है. माओवादी मूवमेंट की बात करें तो वो लगभग ख़त्म हो चुका है.

छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड में जो उनके गढ़ माने जाते थे वो ख़त्म हो चुके हैं और उनका नेतृत्व भी ख़त्म हो चुका है. अब मात्र एक दो जगह या ज़िले बचे हुए हैं जहां उनके पास कुछ ताक़त है.

ऐसे में समझ नहीं आता कि ऐसी क्या ज़रूरी बात सामने आ गई कि गिरफ़्तारियां की गई हैं और वो भी अजीब तरह के आरोप लगा कर, जैसे प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ साजिश करने, भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है.

भीमा कोरेगांव वही जगह है जहां दलित अपना आयोजन करते हैं. मुझे कहीं ना कहीं इस पूरे प्रकरण में सरकार की हताशा नज़र आती है.

पीयूसीएल की सचिव कविता श्रीवास्तव
ये फ़र्ज़ी मामले हैं और केवल बुद्धिजीवी, कवि और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को चुप कराने और डराने के लिए किया गया है.

पहले भीमा कोरेगांव की आड़ में पांच लोगों को ले जाया गया. फिर अब नौ लोगों के यहां छापे मारे हैं और कहानी बना रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की साज़िश की जा रही थी.

मोदी सरकार नहीं चाहती कि कोई ऐसी बात करे जो उनकी सोच से अलग हो.

गौतम नवलखा कड़ा रुख़ रखते हैं, लेकिन उनके नज़रिए की जगह इस गणतंत्र में है. वरवर राव आम लोगों के बीच रह कर काम कर रहे हैं और वो कल्चरल ऐक्टिविस्ट हैं.

जिस तरह एक-एक को चुन-चुन कर गिरफ़्तार किया गया है, उससे फ़ासीवादी चरित्र ही उजागर होता है. ये हालात इमरजेंसी से भी बदतर हैं. सरकार की मंशा पर सवाल हैं. उसकी मंशा डर बैठाना है या फिर मानवाधिकार आंदोलन को ध्वस्त करना?

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टीम बीबीसी
नई दिल्ली