धर्म

रमज़ान का पवित्र महीना : ईश्वरीय अनुकंपाओं और बरकतों की वर्षा का महीना : पार्ट-3

दोस्तो पवित्र रमज़ान महीने का सफ़र धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है और हमारा चौथा रोज़ा भी पूरा हो गया। अल्लाह का शुक्र है कि उसने हमे यह सौभाग्य प्रदान किया कि हम पवित्र महीने रमज़ान में उसके मेहमान बने हैं। हम दुआ करते हैं कि अल्लाह आपकी इबादतों को क़बूल करे। रमज़ान का पवित्र महीना विशेष महत्व का रखता है।

रमज़ान का महीना अपनी आत्मा को पवित्र करने का बेहतरीन अवसर है। यह लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करता है। इस महीने में जो कुछ हासिल होता है वह कठिन उपासना का परिणाम होता है। ईश्वर चाहता है कि मनुष्य, पवित्र रमज़ान में इबादत करके अल्लाह से डरता रहे ताकि उसे कल्याण प्राप्त हो सके। दोस्तो इससे पहले के हम पवित्र महीने रमज़ान के महत्व और उसमें की जाने वाली इबादतों पर और अधिक प्रकाश डालें चलते हैं चौथे दिन की दुआ और उसका अनुवाद सुनते हैं।

चौथे दिन की दुआः हे अल्लाह आजके दिन तू मुझे अपने आदेशों का पालन करने का सामर्थ प्रदान कर, अपनी याद की मिठास चखा। अपनी कृपा और महानता से मुझे तेरे प्रति कृतिज्ञा प्रकट करने की शक्ति दे और इस दिन अपनी सुरक्षा तथा पापों को छिपाने की विशेषता से मेरी रक्षा कर, हे संसार सबसे महान दृष्टि वाले।

दोस्तो जैसा की आप सब जानते ही हैं कि अल्लाह की इबादत का अर्थ होता है कि केवल उसी की उपासना की जाए, क्योंकि अल्लाह के अलावा कोई भी पालनहार नहीं है। ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि इबादत है क्या चीज़? इबादत शब्द के कानों तक आते ही जो सबसे पहले लोगों के मन में बात आती है वह है नमाज़ और रोज़ा। हालांकि यह बिल्कुल ग़लत नहीं है क्योंकि यह ईश्वर की उपासना का सबसे स्पष्ट और प्रत्यक्ष रूप है। लेकिन इस स्पष्ट इबादत में एक आंतरिक सच्चाई है जिसकी व्याख्या अल्लाह पवित्र क़ुरआन के सूरे ताहा में कुछ इस तरह करता है, मैं अल्लाह हूं, मेरे अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है, मेरी इबादत करो और मेरे लिए नमाज़ पढ़ो। ईश्वर ने क़ुरआन की इस आयत के ज़रिए हमें अपनी एकता से अवगत कराया है। दूसरे शब्दों में अपनी उपासना का निमंत्रण दिया है और आदेश दिया है कि उसके लिए नमाज़ पढ़ा जाए ताकि हम उसे याद करें। इसलिए उपासना का सार ईश्वर का स्मरण है और यह सार हमारे सभी कर्मों में मौजूद हो सकता है। जब हमारे सभी कर्मों में ईश्वर की याद का रंग और ख़ुशबू होगी, तो हमारे जीवन के सभी क्षण उपासना में लीन हो जाएंगे। अल्लाह सूरे नूर में कहता है कि उन लोगों के घरों में ईश्वर की रोशनी होगी जिनका कोई भी काम ईश्वर की याद, नमाज़ और ज़कात को अदा करने से उन्हें नहीं रोकता है। हर वह ज्ञानी जो हर समय अल्लाह को याद करता है, और ईश्वर का स्मरण उन्हें ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है, यह सोच उन्हें ईश्वर के ज्ञान के क़रीब से करीब लाती है।

अल्लाह ने वादा किया है कि जो कोई भी उसे याद करेगा, वह भी उसे याद करेगा। सूरे बक़रा की आयत नंबर 152 में अल्लाह कहता है कि तुम हमे याद करो ताकि हम तुम्हे याद रखें। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इस आयत की व्याख्या करते हुए फ़रमाया है कि यदि आप आज्ञाकारिता और उपासना के माध्यम से ईश्वर को याद करते हैं, तो उसके बदले में ईश्वर भी आपको हर प्रकार के आशीर्वाद, उपकार, दया और ख़ुशी के माध्यम से याद रखेगा। इसलिए हम अपने जीवन के हर पल में अल्लाह को याद करते हैं ताकि वह भी हमें हर समय याद रखे और ऐसा याद रखे कि पलक झपकने भर के समय में भी वह हमे अकेला न छोड़े। हम अपने शरीर के सभी अंगों के ज़रिए अपने ईश्वर को याद कर सकते हैं। हम अपनी ज़बान से ईश्वर को उसके महान नामों से बुला सकते हैं, जैसे हमारे धर्म के बुज़ुर्गों ने अल्लाह को याद किया है। यह उन नामों में से एक है जिसके ज़रिए पैग़म्बरे इस्लाम (अ) अल्लाह को बहुत याद करते थे। «یا مُقَلِّبَ القُلُوب ثَبِّت قَلبی عَلی دینِک» क़ुरआन हमें सिखाता है कि जब ईश्वरीय दूतों में से एक हज़रत यूनुस एक गंभीर कठिनाई में फंस गए थे तब उन्होंने अल्लाह को कुछ इस तरह याद किया था।

«لا اِلهَ الَّا أنت سُبحانَکَ إنِّی کُنتُ مِنَ الظَّالِمین». इस्लाम में इस बात पर बहुत बल दिया गया है कि जब हम किसी कठिनाई फंस जाएं तो अपने ईश्वर को इन्हीं शब्दों के साथ याद करें।

इस्लाम के आरंभिक काल में क़ुरआने मजीद मुसलमानों के लिए जीवनदाता बन गया था और आज भी वह अपनी इसी क्षमता के माध्यम से मुस्लिम राष्ट्रों की शक्ति, वैभव, सम्मान और शांति का कारण है। आज भी क़ुरआने मजीद की आयतें एकेश्वरवाद और सम्मान का निमंत्रण देती हैं। क़ुरआन का यह निमंत्रण रमज़ान के पवित्र महीने में अधिक स्पष्ट रूप से सामने आता है। इस महीने में क़ुरआने मजीद से मुसलमान का रिश्ता अधिक घनिष्ट होता है और वे अपने दिन व रात के भागों को इस ईश्वरीय किताब की तिलावत से पावन बनाते हैं। रमज़ान का पवित्र महीना अपनी समस्त ईश्वरीय व आध्यात्मिक अनुकंपाओं व सुपरिणामों के साथ सामाजिक जीवन में क़ुरआने मजीद के सही स्थान को पुनर्स्थापित करने और इसी तरह इस्लामी समाज के वैचारिक व सांस्कृतिक आधारों को सुधारने व मज़बूत बनाने का एक अच्छा अवसर है। क़ुरआने मजीद से घनिष्ट रिश्ते के लिए अरबी भाषा में “उन्स” शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ होता है किसी चीज़ का आदी हो जाना, किसी चीज़ से संतुष्टि मिलना, किसी का हर पल का साथी होना और एक साधारण संपर्क से बढ़ कर एक मज़बूत रिश्ता जो प्रभाव लेने और प्रभाव डालने का कारण बने। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से किसी भी चीज़ से घनिष्ट रिश्ते का मार्ग, उससे अधिक से अधिक संपर्क है जिसके स्वाभाविक परिणाम सामने आते हैं जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं। रमज़ान का पवित्र महीना, सर्वशक्तिमान ईश्वर के पर्व का महीना, एक अनमोल समय है जब मुसलमानों को इस अवसर का उपयोग अपनी आत्मा की शांति और अपने दिलों को शुद्ध करने के लिए करना चाहिए, और इस महीने में ईश्वर की निकटता के गुणों और आशीर्वादों का आनंद लेना चाहिए।

पैग़म्बरों और ईश्वर के प्रिय बंदों के जीवन पर एक नज़र डाल कर हम यह बात समझ सकते हैं कि सबसे अहम घनिष्ट रिश्ते, अपने ईश्वर से मनुष्य का सीधा रिश्ता है। यह व्यवहारिक रवैये वाला सबसे छोटा रास्ता है। इस्लाम में क़ुरआने मजीद को ईश्वर से सामिप्य का सबसे संतुष्ट मार्ग बताया गया है। क़ुरआन, ईश्वर को उसकी महानता, कृपा, दया व तत्वदर्शिता के साथ पहचनवाता है। अगर इंसान यह जान ले कि इतने महान गुणों वाले ईश्वर और उसके कथन का प्रतिबिंबन क़ुरआने मजीद में हुआ है तो वह हर क्षण उससे बात कर सकता है और बिना किसी माध्यम के सीधे उससे अपनी बात कह सकता है। तब वह क़ुरआने मजीद के एक एक शब्द को प्रकाश, तत्वदर्शिता, उपदेश व मार्गदर्शन पाएगा। मनुष्य कभी भी क़ुरआने मजीद के साथ घनिष्ट संपर्क से आवश्यकतामुक्त नहीं हो सकता क्योंकि उसकी परिपूर्ण शिक्षाएं और विषयवस्तु, मानव जीवन की अहम आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। यही कारण है कि क़ुरआने मजीद ने ईमान वालों से कहा है कि वे प्रकाश के इस स्रोत की जहां तक संभव हो तिलावत करें और इसके असीम ज्ञान वाले समुद्र से लाभ उठाएं। पैग़म्बरे इस्लाम के नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इंसानों को चार गुटों में बांटा है जिनमें से हर गुट अपनी क्षमता के अनुसार क़ुरआने मजीद से लाभान्वित हो सकता है। वे कहते हैं। ईश्वर की किताब चार चीज़ों पर आधारित है। इबारत, इशारे, रोचक बिंदु और तथ्य। इसकी इबारतों या मूल पाठ से सभी लोग लाभ उठाते हैं, इशारे, विशेष लोगों, रोचक बिंदु, ईश्वर के प्रिय बंदों और तथ्य पैग़म्बरों के लिए हैं।

क़ुरआने मजीद लोगों का अन्धकार से प्रकाश की ओर मार्गदर्शन करता है। ईरान समेत सभी इस्लामी देशों में रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वरीय किताब क़ुरआन की तिलावत, व्याख्या और उसे याद करने की बैठकें आयोजित होती हैं। हर मस्जिद और गली कूचे में इस तरह की बैठकें देखी जा सकती हैं जिनमें बच्चे, युवा और वृद्ध सभी भाग लेते हैं। सभी क़ुरआने मजीद की तिलावत करके पूरे वातावरण को मनमोहक बना देते हैं। इस पवित्र महीने में बहुत से घरों में क़ुरआने मजीद की तिलावत और पूरा क़ुरआन पढ़ने की सभाएं आयोजित होती हैं। हालांकि ये सभाएं रमज़ान के महीने से विशेष नहीं हैं और साल के दूसरे महीनों और दिनों में भी आयोजित होती हैं लेकिन रमज़ान में इन सभाओं की रौनक़ कुछ और ही होती है और सभी महिलाएं, पुरुष और बच्चे-बूढ़े इनमें भाग लेते हैं। वरिष्ठ धर्मगुरुओं और अहम हस्तियों के जीवन का अध्ययन करने से पता चलता है कि ये महान लोग बचपन से ही क़ुरआने मजीद से जुड़े रहे और इसी के माध्यम से उन्होंने परिपूर्णता का मार्ग तय किया। कुल मिलाकर घटनाओं, उपाख्यानों और रूपक के साथ इस्लाम के प्रतीक और महान चमत्कार के रूप में क़ुरआन, सर्वशक्तिमान ईश्वर की रचना से भरा एक संग्रह है, जो मनुष्य को अद्वितीय और अद्भुत दृश्यों में तर्क और चिंतन के लिए कहता है। क़ुरआन प्रकृति की घटनाओं, स्थितियों और कलाओं को देखने के लिए इंसान को एक ख़ूबसूरत नज़र देता ताकि हम अपनी आंखों से दयालु और विवेकपूर्ण के अल्लाह को पहचान सकें। क़ुरआन की कहानियां में नायकों के जीवन की कहानी नहीं हैं, बल्कि एक सही जीवन की शिक्षा है और जो अपने पढ़ने वालों आत्मविश्वास, विवेक, मज़बूत ईमान और कर्तव्यों को अंजाम देने को निमंत्रण देता है।

तो दोस्तो इस आशा के साथ कि हम सभी अनंत दिव्य सागर से एक बूंद ले सकते हैं और इसके संरक्षण में शांति और सुरक्षा पा सकते हैं, ख़ासकर इस महीने में कि, जो क़ुरआन का महीना है और उसकी आयतों की तिलावत करने का बेहतरीन समय है।