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राजनीति-नेता भारत व पार्टी के संविधान को नतमस्तक नहीं होता : लेखक मुकेश शर्मा का लेख पढ़ें!

Lekhak Mukesh Sharma
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राजनीति-
१-राजनीति में कोई स्थायी दोस्त व दुश्मन नहीं होता।
२-राजनीति में वैचारिक मतभेद स्वाभाविक हैं।
३-शीर्ष नेताओं के इर्दगिर्द रहने वाले उनसे व उनके कारण अपना काम निकालते हैं।ऐसे लोग भविष्य में बड़े नेता नहीं बनते क्योंकि जिसकी सेवा लोगे उसकी अधीनता आपका स्वभाव बन जायेगी।
४-नेता का दायित्व है कि वह जनता को विकास के शब्द दे और उनकी आवाज बने।यह उसके जोश व जुनून पर निर्भर है कि वह जनहित में कितना सफल प्रदर्शन करता है।ऐसा नेता कभी अपनी छवि धूमिल नहीं करता और शीर्ष नेतृत्व उसे पाने की अभिलाषा रखता है।
५-जिस दिन आपका उद्देश्य जनहित होगा उस दिन विरोधी मतदाता में भी आप विकास की ज्योति जला दोगे अन्यथा अपने भी साथ छोड़ देंगे।
६-नेता भारत व पार्टी के संविधान को नतमस्तक नहीं होता न उनकी विचारधारा को अपनाने के लिए बाध्य होता है।वह तो उनमें प्राणप्रतिष्ठा करने की युक्ति सोचने वाला एक विचारक है जो नये मार्गों का निर्माण करता है।
७-नेता के लिए पार्टी की गाइडलाइंस बाध्य नहीं करतीं क्योंकि यदि उसके पास जनाधार है तो जनता के हित भी होंगे।जहाँ जनहित है वहाँ पार्टी भी अपनी गाइडलाइंस बदल सकती है।
८-प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की भिन्न विचारधाराएं हैं और इन दोनों की विचारधाराएं भारतीय संविधान व पार्टी की गाइडलाइंस का अक्षरतः पालन नहीं करती तब भी जनहित व राष्ट्रहित के लिए दोनों ही स्थान पर वे सम्मानित गरिमा व यथास्थान बनाए हुए हैं।
९-जिस दिन नेता अपने विचार बिना पेटेंट सार्वजनिक रूप से जनता को समर्पित कर देगा उस दिन जनता खुले मन से प्रतिक्रिया देगी।इस प्रतिक्रिया में प्रेम भी होगा और हिंदी की शुद्ध बहुमूल्य गालियाँ भी होंगी।प्रेम तो नेता के स्वभाव में उसका आत्मसम्मान बढ़ायेगा तथा गालियाँ उनके धैर्य व पीड़ा की कहानी बयान करेंगी।यही धैर्य और पीड़ा का शोध आपको सफल नेता की तरफ ले जायेगा।
१०-शीर्ष नेताओं की चाटुकारिता उन्हें आपके विचारों पर मंथन करने पर विवश नहीं करेगी लेकिन जिस दिन आप उनकी चाटुकारिता का त्याग करके जनता को समर्पित होंगे उस दिन वही शीर्ष नेतृत्व आपके सामने करबद्ध खड़ा होगा।यदि वह नहीं तब कोई और आपकी प्रतीक्षा कर रहा होगा।
११-राजनीति स्थायी दोस्ती व दुश्मनी का क्षेत्र नहीं है इसलिए व्यक्ति चुनाव नहीं हारना चाहिए पार्टी भले ही चुनाव हार जाये।व्यक्ति वह नेता भी है जो लड़ रहा है और व्यक्ति वह भी है जो लड़ने वाले के पक्ष में मतदान कर रहा है।टिकट के बल पर चुनाव लड़ने वाले अपने साथ पार्टी को भी डुबो देते हैं।
१२-विकास मंचों से पैदा नहीं होता न विकास के लिए गाइडलाइंस होती हैं।विकास तो ऐसी पूँजी है जो चेहरे की झुर्रियों में स्वयं मुस्कान भर देती है।
१३-क्षेत्रीय चुनाव में पार्टियों का कोई योगदान नहीं होता।यह तो अपने परिवार की सुखद अनुभूति है जिसे हम और आप हर दिन महसूस करते हैं।यह स्वाभाविक क्रिया है जिसमें कभी पीड़ा होती है तो कभी निवारण होता है।
१४-मान लो इस चुनाव में 27 नेता टिकट माँग रहे हैं और टिकट एक को मिलेगा।तब सत्ताइसवें नेता का नंबर तो 135 साल बाद आयेगा।तब तक और नेता अपडेट वर्जन के साथ मैदान में होंगे।आप अपने विचार गले में उतारकर क्या करना चाहते हो सोच लो,टिकट 135 साल बाद लेनी है या चाटुकारिता करके अपने काम निकालने हैं अथवा जनता की आवाज बनकर न्याय, प्रेम और इंसानियत की चींख बुलंद करनी है।यदि चींख सकते हो तो जोर से चींखो ताकि आपकी चींख से और चींख स्वर मिलाकर एक दल बना सकें जहाँ जनहिल का दीप प्रज्वलित हो और हमारे आपके आँगन में रोशनी जगमगाने लगे।
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अंत में पानी आने के तीन मार्ग हैं-
१५-कॉलोनी का नगरीय डाटा राज्य सरकार के शहरी मंत्रालय में जमा करो ताकि अधिकारी उस पर विचार कर सकें और उसे गजट में लाकर बजट दें।दूसरा रास्ता पानी का ठेका नितिन गडकरी की तरह प्राइवेट कंपनी को दे दो जिससे कि एन.जी.टी की मर्यादा भी बनी रहे, सरकार का धन भी खर्च न हो और जनता को भी समय पर लाभ मिल सके।तीसरा अस्थाई रूप में विकास के धन से बोरिंग पम्प लगाकर सप्लाई दो जिसे जीरो आय व जीरो नुकसान पर लागू किया जा सके।जब हम एक आयुष्मान कार्ड नहीं ला सकते तो पानी कैसे आयेगा?
मुकेश शर्मा, खोड़ा