साहित्य

“रिश्ते अनमोल है”………#लघुकथा….By-संगीता अग्रवाल

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” रिश्ते अनमोल है ”
” नीति अब तुम आ गई हो अब इन शैतानो को तुम संभालो घर की जिम्मेदारी मेरी वैसे भी तुम पढ़ी लिखी हो बच्चो को अच्छे से पढ़ा लोगी और ये तुमसे घुलमिल भी तो कितना गये है !” पंद्रह दिन पहले ही दुल्हन बन इस घर मे आई नीति से उसकी जेठानी पल्लवी हंस कर बोली।

” आप चिंता मत कीजिये भाभी !” नीति बोली और सच मे उसने पल्लवी के दोनो बच्चो की जिम्मेदारी ले ली अब बच्चे अपनी माँ से ज्यादा चाची के पास रहने लगे। धीरे धीरे पल्लवी ने बच्चो की जिम्मेदारी के साथ साथ घर की जिम्मेदारी भी एक एक कर उसपर लादनी शुरु कर दी जिसे नीति ने सहर्ष उठा भी लिया घर मे सास तो थी नही उसने पल्लवी को ही बड़ी बहन , सास ,जेठानी सब दर्जे दिये थे। जब कभी पल्लवी की तबियत खराब होती नीति उसकी सेवा मे दिन रात एक कर देती थी।

वक्त बिता और विवाह के सवा साल बाद नीति भी माँ बन गई अपनी गर्भवस्था मे भी उसने भरपूर काम किये थे पर क्योकि बच्चा ऑपरेशन से हुआ था तो अस्पताल से उसे उसकी जेठानी ने उसके मायके भेज दिया हालाँकि नीति को थोड़ा बुरा भी लगा पर जेठानी पर ज्यादा भार ना पड़े ये सोच वो चुप रही। जब मायके से डेढ़ महीने बाद वो वापिस आई तो उसके पास इतना समय नही होता था कि जेठानी के बच्चो को पहले की तरह वक्त दे सके पर हाँ उन्हे पढ़ाती वही थी।

” भाभी आज नीति को बुखार है तो मुन्ने को आप संभाल लीजिये मुझे ऑफिस जरूरी मीटिंग मे जाना है !” एक सुबह पल्लवी का देवर राजन उसे बच्चा पकड़ाते हुए बोला। पल्लवी ने देवर से बच्चा ले लिया और एक तरफ लिटा घर के कामो मे लग गई बच्चा बहुत देर से रो रहा था । नीति किसी तरह उठकर बाहर आई।

” भाभी मुन्ना भूखा है बुखार ज्यादा होने के कारण मैं अपना दूध नही पिला सकती तो आप जरा बोतल का दूध बना दो इसके लिए !” नीति बोली।

” देखो नीति मुझे भी अपने बच्चे देखने है तुम अपने बच्चे को खुद संभालो मुझसे नही होगा इतना काम !” पल्लवी ने दो टूक जवाब दे दिया।

” भाभी क्या मुन्ना सिर्फ मेरा बच्चा है मैने तो कभी तीनो बच्चो मे फर्क नही किया !” नीति हैरानी से बोली।

पर पल्लवी बिना कुछ बोले वहाँ से चली गई नीति ने किसी तरफ मुन्ने के लिए दूध बनाया और उसे वापिस कमरे मे ले गई। आज पल्लवी के व्यवहार से उसका जी खट्टा हो गया था । उसने तो कभी पल्लवी के बच्चो को अपने बच्चो से कम नही समझा पर पल्लवी ने कैसे एक झटके मे अपना पराया कर दिया ।

उस दिन के बाद से नीति ने भी अपने बच्चे से ऊपर जेठानी के बच्चे नही रखे जब उसे फुर्सत होती तभी वो उनका ध्यान रखती या उन्हे पढ़ाती थी अन्यथा साफ मना कर देती थी ।

दोस्तों रिश्ते अनमोल होते है पर कच्चे धागे से बंधे होते है जिन्हे जरा सा झटका तोड़ सकता है और दुबारा जुड़ने पर गाँठ पड़ जाती है इसलिए उन्हे संभाल कर रखना दोनो तरफ के लोगो का फर्ज है क्योकि जब ताली एक हाथ से नही बज सकती तो रिश्ते कैसे एक तरफा निभ सकते है।

आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
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