नई दिल्ली: म्यांमार ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया, जिसमें म्यांमार सरकार द्वारा मुस्लिम रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के खिलाफ सैन्य अभियान में नरसंहार के साक्ष्य होने की बात कही गई है।
म्यांमार सरकार के प्रवक्ता जॉ हते ने कहा, “हमने म्यांमार में एफएफएम (फैक्ट फाइंडिंग मिशन) को प्रवेश की इजाजत नहीं दी, इसलिए हम मानवाधिकार परिषद के किसी भी प्रस्ताव पर सहमत नहीं हैं और इसे स्वीकार नहीं करते।” संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा था कि मानवता के खिलाफ जानबूझकर नरसंहार व अपराध किए जाने के साक्ष्य हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की की सरकार के हिंसा रोक पाने में नाकाम रहने की निंदा की है और सशस्त्र बलों से जुड़े कथित अपराधियों की जांच करने और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय अदालत में मामला ले जाने की सिफारिश की है।
हते ने कहा कि सरकार ने संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और अन्य अंतरराष्ट्रीय समुदायों द्वारा लगाए जा रहे झूठे आरोपों का जवाब देने के लिए पहले से ही एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया है। उन्होंने कहा कि म्यांमार, रोहिंग्या को राष्ट्र के एक जातीय समूह के रूप में मान्यता नहीं देता है, बल्कि उन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी मानता है और उनके साथ कई तरह के भेदभाव करता है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में रखाइन राज्य में मानवीय संकट के लिए आंग सान सू की के नेतृत्व वाली म्यांमार सरकार को दोषी ठहराया गया है। इसमें कहा गया है सरकार घटनाओं को रोकने में विफल रही, उसने रखाइन राज्य में सबूतों को नष्ट कर झूठी खबरें फैलाई और स्वतंत्र जांच को प्रतिबंधित किया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, “अधिकारियों ने अपने कृत्यों और चूक के माध्यम से अत्याचार अपराधों के होने में योगदान दिया।