नई दिल्ली: देश में मजहब के नाम एक दूसरे का खून तो बहुत जगहों पर बहाया गया है लेकिन कई सारी जगहों पर खून बहाया नही दिया जाता है तो मिसाल बन जाती है,जिससे कट्टरपंथी लोगों को शर्म ज़रूर आती होगी कि भेड़ियों और दरिंदों के बीच कुछ इंसान इंसानियत का फ़र्ज़ निभा रहे हैं।
बिहार के दरभंगा में अशफ़ाक़ ने जो सद्भावना और सौहार्द भाईचारे की मिसाल पेश करी है वो भारत का आने वाला भविष्य माना जासकता है,अशफ़ाक़ ने रमजान के दौरान रोजा तोड़कर एक हिंदू बच्चे को अपना खूद देकर ना सिर्फ उसकी जान बचाई बल्कि समाजिक सौहार्द का संदेश भी दिया,अश्फाक ने जिस बच्चे की जान बचाई उसका पिता सीमा पर देश की सुरक्षा करते हैं. वह एक एसएसबी जवान हैं, जो फिलहाल अरुणाचल प्रदेश में तैनात हैं.।
एसएसबी जवान रमेश कुमार सिंह की पत्नी आरती दो दिन पहले ही दरभंगा के एक निजी नर्सिंग होम में लड़के को जन्म दी. जन्म के बाद से ही नवजात की हालत बिगड़ने लगी. आनन-फानन में बच्चे को मां से अलग कर आईसीयू में रखा गया, जहां जांच के बाद डाक्टर ने बच्चे को बचाने के लिए खून की मांग की. नवजात बच्चे का खून ओ नेगेटिव O (-) है, जो कि रेयर बल्ड ग्रुप है।
Darbhanga: Mohammad Ashfaq broke his 'roza' (fast observed during Ramzan) to donate blood for a 2-day old child of SSB jawan Ramesh Singh, says, 'I thought saving a life is more important, knowing that she is daughter of a security personnel motivated me more.' #Bihar (27.05.18) pic.twitter.com/c1YogDnCGG
— ANI (@ANI) May 28, 2018
खून उपलब्ध नहीं होने के कारण नवजात की हालत पल-पल बिगड़ती जा रही थी. परिवार के लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर करें तो क्या करें. नवजात के परिवार वालों ने सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर बल्ड ग्रुप का जिक्र करते हुए खून के लिए लोगों से मदद मांगी. वहीं, दूसरी तरफ एसएसबी के बटालियन के द्वारा भी अलग-अलग जगहों पर भी खून की जरुरत को पूरा करने के लिए मैसेज भेजा गया।
रमजान के महीने में रोजा कर रहे मोहम्मद अश्फाक ने भी फेसबुक पर यह संदेश पढ़ा. इत्तेफाक से अश्फाक का ब्लड ग्रुप भी ओ-नेगेटिव था. उसने तुरंत ही फेसबुक चैट के माध्यम से परिवार से संपर्क साधा और खून देने के लिए अस्पताल पहुंच गया. नवजात के परिवार के लोग पलकें बिछाए अश्फाक के इंतजार में थे. अश्फाक के आते ही सभी के चेहरे खिल उठे।
ब्लड बैंक के डाक्टर ने मोहम्मद अश्फाक का ब्लड लेने से साफ इंकार करते हुए कहा कf रोजे में भूखे होने के कारण इनका खून नहीं निकाला जा सकता है. अश्फाक ने डॉक्टर से कई बार ब्लड निकालने का आग्रह किया, लेकिन डाक्टर ने उसकी एक नहीं सुनी. परिस्थिति को देखते हुए अश्फाक ने बच्ची की जान बचाने का फैसला किया और बीच में ही रोजा तोड़कर अस्पताल में ही कुछ खाने के सामन मंगाकर खाया, जिसके बाद डॉक्टर खून लेने पर राजी हुए।
डॉक्टर ने अश्फाक का खून निकालकर नवजात को चढ़ाया. इससे बच्चे को नई जिंदगी मिली. इस बीच मधुबनी के मधवापुर के नेपाल बॉर्डर से भी एक एसएसबी जवान राकेश गोस्वामी खून देने के लिए दरभंगा पंहुचा, लेकिन तबतक खून की जरुरत समाप्त हो चुकी थई. पूरी कहानी सुनकर जवान के आंखों में भी आंसू आ गए।
अश्फाक ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि रोजा तो फिर कभी रख लेंगे, लेकिन जिंदगी किसी की लौट कर नहीं आती है. उन्हें गर्व है कि आज खुदा ने उससे यह काम करवाया. उन्हें इस बात को फर्क नहीं पड़ता है कि नवजात किस धर्म का है।
नवजात के परिजन खून की जरुरत पूरा होने के बाद बेहद खुश हैं. बच्चे को नई जिंदगी देनेवाले अश्फाक को नवजात का परिवार भगवान जैसा देखता है. बच्चे की दादी ने मीडिया को बताया कि उन्हें कोई एतराज नहीं है कि हम हिन्दू हैं और हमारे पोते को कोई मुसलमान खून दे रहा है, बल्कि मैं खुश हूं कि अश्फाक की वजह से उनके घर का चिराग बुझने से बच गया. पूरे परिवार ने अश्फाक के इस नेक काम के लिए धन्यवाद दिया।