साहित्य

लड़की का ससुराल में अपने पापा के प्यार को याद आना By-B B Singh

B B Singh
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लड़की का ससुराल में अपने पापा के प्यार को याद आना
एक बात पूछूती हूं सच बताओ ना बाबूजी🌹
छुपाओ ना बाबूजी क्या याद मेरी आती नहीं🌹
पैदा हुई तो घर में मेरे मातम सा छाया था🌹
पापा तेरे बहुत खुश थे मुझे मां ने बताया था🌹
ले ले के नाम प्यार दूलार जताते भी मुझे थे🌹
आते थे कहीं से तो पहले बुलाते भी मुझे थे🌹
मैं हूं नहीं तो अब किसे बुलाते हो बाबूजी🌹
क्या याद मेरी अब तुम्हें आती नहीं🌹
हर ज़िद मेरी पूरी हुई हर बात थे मानते🌹
बेटी थी मैं मगर बेटों से ज्यादा थे मानते🌹
घर में कभी होली कभी दिपावली आई 🌹
सैंडल भी आई मेरी फ्राक भी चुड़ी भी आई 🌹
अपने लिए बनियान भी न लाते थे बाबूजी🌹
क्या कमाते थे बाबूजी क्या याद मेरी आती नहीं🌹
सारी उमर ख़र्चे में कमाई में लगा दी🌹
दादी बीमार थी तो उनकी दवाई में लगा दी🌹
पढ़ने लगे हम सब तो पढ़ाई में लगा दी🌹
बाकी बचा था जो सब मेरी सगाई में लगा दी🌹
अब किसके लिए इतना कमाते हो बाबूजी🌹
क्यूं बचाते हो बाबूजी क्या याद मेरी आती नहीं🌹
कहते थे मेरा मन कहीं एक पल ना लगेगा🌹
ये बिटिया विदा हुई तो ये घर घर न लगेगा🌹
कपड़े कभी गहने कभी सामन थे संजोते🌹
तैयारियां भी करते थे छूप छूप के थे रोते🌹
कर कर के याद तो अब न रोते हो बाबूजी🌹
क्या याद मेरी आती नहीं🌹
कैसी परम्परा है ये कैसा विधान है🌹
पापा बताओ कौन सा मेरा ज़हान है🌹
आधा‌ यहां आधा वहां मेरा जीवन है अधूरा🌹
पीहर मेरा पूरा है न ससुराल है मेरा पूरा🌹
क्या आपका प्यार भी अधूरा है अब बाबूजी🌹
या पूरा है बाबूजी क्या याद मेरी आती नहीं🌹
सच बात पूछूती हूं बताओ न बाबूजी🌹
कुछ भी छुपाओ ना बाबूजी🌹
क्या याद मेरी आती नहीं🌹
क्या याद मेरी आती नहीं🌹