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लेबनान की सुरक्षा, सम्मान और गरिमा, संयुक्त राष्ट्र संघ की वजह से नहीं बल्कि प्रतिरोध की देन है : सैयद हसन नसरुल्लाह

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह का कहना है कि लेबनान की सुरक्षा, सम्मान और गरिमा, संयुक्त राष्ट्र संघ की वजह से नहीं बल्कि प्रतिरोध की देन है।

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने लेबनान के शिया धर्मगुरु स्वर्गीय अल्लामा सैय्यद मुहम्मद अली अमीन को श्रद्धांजलि पेश की।

सैयद हसन नसरुल्लाह ने यह भाषण ऐसी स्थिति में दिया कि लेबनान में अमरीकी राजदूत “डोरोथी शीया” ने शनिवार को लेबनान और इस्राईल के बीच समुद्री सीमा तनाव के समाधान के संबंध में लेबनान के राष्ट्रपति को वाशिंगटन की प्रस्तावित योजना प्रस्तुत की।

हिज़्बुल्लाह ने इससे पहले कहा था कि वह अमरीका के जवाब का इंतजार कर रहा था और अमरीकी जवाब, उस पर उचित कार्रवाई करने पर निर्भर करेगी।

सैयद हसन नसरुल्लाह ने अपने संबोधन में लेबनान और क्षेत्र के आंतरिक राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डाला और लेबनान तथा इस्राईल के तेल और गैस अधिकारों के बीच समुद्री सीमा के मुद्दे पर रोशनी डाली और कहा कि कई महीनों के राजनीतिक संघर्ष के बाद , इस समस्या का समाधान हो जाएगा। मीडिया और क्षेत्र के प्रतिरोध के बाद, हमने देखा कि मध्यस्थ दल अमरीका ने इस संबंध में अपना प्रस्तावित प्रस्तुत कर दिया।

उन्होंने कहा कि मुझे हमेशा से संदेह रहा है कि लेबनान की सरकार अपने हितों के अनुसार सही निर्णय ले पाएगी। हम इस मुद्दे में महत्वपूर्ण दिन देख रहे हैं, आने वाले दिनों में लेबनानी सरकार की स्थिति निर्धारित की जाएगी और हमें उम्मीद है कि अंत में चीजें ठीक होंगी और लेबनान और लेबनान के लोगों के लिए अच्छा होगा।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि यदि परीक्षण सफल होता है, तो लेबनान के लिए एक नया और बेहतर दृष्टिकोण सामने आएगा जो सहयोग और राष्ट्रीय एकता का परिणाम है।

सैयद हसन नसरुल्लाह ने राष्ट्रपति के चयन के लिए संसद की बैठक के बारे में कहा कि राष्ट्रपति के चयन के लिए संसद की पिछली बैठक से सिद्ध होता है कि संसद में किसी भी दल को बहुमत हासिल नहीं है और इस बैठक ने यह भी सिद्ध कर दिया कि अगर राष्ट्रपति चुनना चाहते हैं तो उन्हें टकराव की शैली के बजाए तर्क संगत परामर्श की शैली पर चलना होगा। उन्होंने कहा कि अमरीका ने दाइश को पैदा किया और अमरीका की ख़ुफ़िया और जासूस संस्थाएं आज भी उसक समर्थन और उसका बचा कर रही हैं और इस आतंकी गुट में ज़्यादा से ज़्यादा लड़ाकुओं को भरने का रास्ता साफ़ कर रही हैं।