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लोहे के फेफड़े में रहने वाले आख़िरी लोगों में से एक अलेक्सेंडर!

वाया : A Qayyum Hakim
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लोहे के फेफड़े में रहने वाले आखिरी लोगों में से एक अलेक्सेंडर।
6 साल की उम्र में, अलेक्सेंडर को पोलियो का पता चला था, जिसके कारण उनकी गर्दन के नीचे से लकवा हो गया था।

उनका कहना है कि मुझे महसूस होता है कि मेरी ज़िन्दगी परफेक्ट है। वो जब 6 साल के थे तब अचानक खेलते वक़्त उन्हें बीमार जैसा महसूस हुआ, जब घर पहुंचे तो उनके माँ ने देखकर कहा “ये मेरा बेटा पॉल नहीं है” कुछ दिनों बाद उनके जिस्म के भागों ने हरकत करना बंद कर दिया, यहां तक कि उनकी सांसे थम गयी, उनकी माँ ने डॉक्टर को बुलाया और उसने उन्हें अस्पताल में एडमिट करके लोहे के फेफड़े लगा दिए, आज वो 74 साल के हो गए हैं और उन्हें ज़िन्दा रखने के लिए वो आज भी आयरन लंग पर निर्भर हैं। तस्वीर में दिखने वाली ये मशीन छाती को दबाने के लिए बनायी गयी है।

वो कहते हैं कि लोग मुझे पसंद नहीं करते लेकिन मैं हारना नहीं चाहता, मैंने ज़िन्दगी की ये जंग जारी रखी है, वो रोज़ सुबह आम इंसान की तरह सुबह ब्रश करते हैं, चेहरा धोते हैं नाश्ता लेते हैं। किताबें पढने उनका शौक़ है और उनका ख्वाब था कि वो एक वकील बनें और ये सपना अभी कुछ सालों पहले पूरा हुआ। आज उनके पास वकालत की डिग्री है और कहते हैं कि मैं अब एक क़ाबिल वकील बन चुका हूँ। उन्होंने एक किताब भी लिखी है “My Life in an Iron Lung” जब किताब लिखने की वजह उनसे पूछी गयी तो उन्होंने कहा कि मैं लोगों को प्रभावित करना चाहता हूँ और ये पैगाम देना चाहता हूँ कि आपका अतीत कैसा भी हो, आप कैसे भी हो, आपको ज़िन्दगी में कितनी भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़े हिम्मत और हौसले के साथ कड़ी मेहनत करने से आपको ज़रूर कामयाबी हासिल होगी।
“डर और ख़ौफ़ जब दरवाज़े पर दस्तक दे और हिम्मत उठकर उस दरवाज़े को खोले तो दोनों भाग जाते हैं”