ना डोली सजी, ना दुल्हन बनी, ना शादी हुई। अपनी जिंदगी वीरान है, पर दुनिया को दिखाने के लिए सजना पड़ता है, संवरना पड़ता है। ढलती उम्र में भी गाढ़ा मेकअप लगाकर चेहरों की झुर्रियां छुपानी पड़ती हैं।
बच्चे हैं, लेकिन उनके पिता का नाम नहीं। पति के नाम की जगह भाई का नाम लिखने की मजबूरी। महफिल में लोग वाहवाह करते हैं, प्यार लुटाते हैं, पैसे लुटाते हैं। पर जैसे ही महफिल खत्म होती है, उन्हीं सभ्य लोगों के लिए हम अछूत हो जाती हैं, वेश्या का ठप्पा लग जाता है।
ये कहानी है UP के गाजीपुर जिले के बासुका गांव की। 15 हजार की आबादी वाले इस गांव में 50-60 घरों की महिलाएं नाच-गाकर अपना गुजारा करती हैं। उन्हें राह चलते कोई मां-बहन की गाली देता है, तो कोई जबरदस्ती करता है।
दोपहर 12 बजे का वक्त। गांव के बाहर एक दुकान पर कुछ लोग बैठकर बातें कर रहे थे। मैं भी उनके साथ बैठ गया। देश, दुनिया, राजनीति की बात होने लगी। इसी बीच मैंने बताया कि मुझे यहां की महिलाओं पर स्टोरी करनी है।
इतना सुनते ही कुछ लोग गुस्से से तमतमा गए। खुद को इज्जतदार और सभ्य बताने वाले ही मर्यादा भूल गए। उन महिलाओं को मां-बहन की गालियां देते हुए कहने लगे- उनकी वजह से गांव का नाम बदनाम हो गया है। दूसरे गांव के लोग कहते हैं कि तुम लोग अपनी बहनों के लिए ग्राहक ढूंढते हो।
ये लोग कहती हैं कि हम वेश्या नहीं हैं। आप ही बताइए वेश्या नहीं हैं, तो बिना शादी के इनके बच्चे कैसे हो गए। आप खबर छापकर हमारे गांव की बदनामी कराएंगे।”
यहां से मैं आगे बढ़ता हूं। पक्की सड़क के एक तरफ तालाब है, दूसरी तरफ सरकारी स्कूल। कुछ दूर चलने पर एक घर दिखता है। लोग बताते हैं कि ये तवायफ का घर है। मैं दरवाजा खटखटाता हूं।
कुछ देर तक कोई आवाज नहीं आती। फिर अंदर से जवाब मिलता है- ‘हमें कोई बात नहीं करनी। आप इंटरव्यू लेकर क्या करेंगे। लोग आते हैं और वीडियो बनाकर नेट (इंटरनेट) पर डाल देते हैं। वहां भी लोग हमें गालियां देते हैं।’
बहुत समझाने पर 50 साल की एक महिला बाहर निकलती हैं। अपना नाम रानीबाई बताती हैं। वे मुझे एक चेयर पर बैठने के लिए कहती हैं। फिर चाय-पानी लाती हैं। इसके बाद बातचीत शुरू होती है।
रानीबाई के साथ एक हफ्ते पहले गांव के प्रधान ने बदतमीजी कोशिश की थी। रानीबाई वो वाकया बताती हैं…
‘’हम 7 लोग थे। इसमें तीन नाचने वालीं। एक स्टेज प्रोग्राम करके बिहार के सीवान से लौट रहे थे। रात में निकले थे, गांव पहुंचते-पहुंचते सुबह के 4 बज गए। हमारे घर के बाहर गाड़ी रखने की जगह नहीं है। इसलिए अपनी गाड़ी प्रधान के घर के सामने पार्क करते थे।
उस दिन जैसे ही हमने गाड़ी लगाने की कोशिश की, प्रधान गालियां देने लगा। ऐसी गालियां जिसे मैं आपसे बता भी नहीं सकती। कहने लगा पैसा दो या मेरे साथ सोने चलो, तब यहां गाड़ी पार्क करने देंगे। कुछ देर बाद उसके घर वाले भी आ गए। उन लोगों ने हमारे साथ मार-पीट की, गलत तरीके से छूने की कोशिश की।
हमारे लिए यह कोई नई बात नहीं है। मां के साथ भी ऐसा ही हुआ। हमारे साथ भी हो रहा है। मैं नहीं चाहती मेरी बेटियां इस दल-दल में फंसे। पता नहीं कब तक उन्हें बचा पाऊंगी।’’
इसके बाद रानीबाई मेरे साथ घर के बाहर निकलती हैं। आसपास के घरों को दिखाते हुए कहती हैं- ‘ये सभी तवायफों के घर हैं। सामने वाले घर की नूरन बाई का लड़का फौज में है। बदनामी के चलते वो गया में रहती है। लड़का बाहर ही रहता है, वह यहां नहीं आता, लेकिन उसकी बहन अभी भी नाच-गाकर पेट पाल रही है।’
वे मुझे पायलरानी के घर लेकर जाती हैं। पायलरानी के घर शादियों में बुकिंग के लिए बिहार से कुछ लोग आए हैं। उनसे बातचीत के बाद पता चला कि वे लोग पायलबाई का नाम सुने हैं, लेकिन अभी वे दो घंटे पायलबाई और उनके ग्रुप की महिलाओं की परफॉर्मेंस देखेंगे। पसंद आने पर ही बुकिंग फाइनल करेंगे।
रानीबाई बताती हैं, ‘लोग बुकिंग से पहले लड़कियों का डांस देखते हैं, उनका रंग-रूप देखते हैं। सबको नई उम्र की लड़कियां ही पसंद आती हैं। जरा सी उम्र ढली या सांवला चेहरा हुआ, तो उसे ये लोग रिजेक्ट कर देते हैं।’
थोड़ी देर बाद तबला, हारमोनियम, ढोलक-झाल की धुन के साथ पायलबाई परफॉर्म करना शुरू करती हैं। एक के बाद एक तीन गानों पर 15 मिनट नाचने के बाद पायलबाई थोड़ा रुकती हैं। मुझसे उम्र का जिक्र करते हुए बताती हैं, ‘पहले एक बार में तीन-तीन घंटे तक परफॉर्म करती थी, लेकिन अब नहीं हो पाता।
कमर और घुटने में दर्द रहता है। कभी-कभी मन करता है कि ये काम छोड़ दूं, लेकिन नाचूंगी नहीं, तो खाऊंगी कहां से।
हम अपने ग्रुप के साथ शादी-ब्याह में जाते हैं। वहां परफॉर्म करते हैं। कई बार लोग स्टेज पर चढ़ जाते हैं। गलत तरीके से छूने की कोशिश करते हैं। भद्दे इशारे करते हैं। कपड़े के अंदर हाथ डाल देते हैं। पैसे देकर सेक्स की डिमांड करते हैं। गाड़ी के ड्राइवर भी तंग करते हैं। चलती गाड़ी में गलत तरीके से छूते हैं।’