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सऊदी अरब देख रहा परमाणु शक्ति बनने का सपना- अमेरिका को हो रही है परेशानी

नई दिल्ली: सऊदी अरब अपने रेगिस्तान में दो बड़े परमाणु रिएक्टर बनाना चाहता है,इस वजह से कई बड़े देश अपनी कंपनियों को करोड़ों डॉलर का ये कॉन्ट्रैक्ट दिलाने की होड़ में उलझ गए हैं,अमरीका उन देशों में से एक है जो परमाणु योजनाओं में सऊदी अरब का मुख्य सहयोगी बनना चाहता है।

लेकिन उसके रास्ते में एक अड़चन ये है कि सऊदी अरब परमाणु हथियारों के बढ़ाने को लेकर लगाई जा रही बंदिशों को मानने से इनकार करता रहा है,इस वजह से डोनल्ड ट्रंप प्रशासन के लिए एक असहज स्थिति पैदा हो गई है जो परमाणु गतिविधियों को लेकर ईरान जैसे देश के ख़िलाफ़ सख़्त रवैया अपनाए हुए हैं,उम्मीद की जा रही है कि सऊदी अरब आने वाले हफ़्तों में इस योजना के लिए उम्मीदवार देशों की कंपनियों के नामों की घोषणा करेगा।

सुरक्षा या कॉन्ट्रैक्ट?

इनमें अमरीका के सहयोगी जैसे दक्षिण कोरिया और फ़्रांस भी शामिल हैं. हालांकि जिन देशों की कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट मिलने की उम्मीद ज़्यादा है, उनमें चीन और रूस आगे हैं और जिन्हें अमरीका अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानता है,अमरीका की तकनीकी दक्षता की वजह से वो इस काम के लिए एक बेहतरीन उम्मीदवार है,तेल का सबसे बड़ा निर्यातक देश सऊदी अरब इसके ज़रिए ऊर्जा के लिए तेल पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है,इसके अलावा जानकारों का मानना है कि सऊदी अरब के सामने उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी देश ईरान के परमाणु कार्यक्रम का मुद्दा है।

परमाणु सुरक्षा नियम

सऊदी अरब को लगता है कि परमाणु रिएक्टरों के ज़रिए वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी इज़्ज़त बढ़ा सकता है.लेकिन एक तथ्य ये भी है कि चीन और रूस के साथ सऊदी के अच्छे व्यापारिक संबंध हैं और वे सऊदी को अमरीका से कम शर्तों पर परमाणु कार्यक्रमों में सहयोग दे सकते हैं.

ख़ुद को मुक़ाबले में बनाए रखने के लिए अमरीका को अपने परमाणु सुरक्षा नियमों में थोड़ी ढील देने की ज़रूरत है.ये डील अमरीका की मर रही परमाणु रिएक्टर इंडस्ट्री को फिर से ज़िंदा करने के लिए एक अच्छा कदम साबित हो सकती है.ख़ासकर उस सूरत में जब पिछले साल ही अमरीका की परमाणु कंपनी वेस्टिंगहाउस बर्बाद हो गई थी।

अमरीका की दिक्कत

लेकिन अगर अमरीका इस ठेके के लिए अपने नियमों में ढील देता है तो ये परमाणु गतिविधियों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ उसकी प्रतिबद्धता को भी ख़तरे में डाल देगा.कुछ जानकार अमरीका के इस प्रोजेक्ट में शामिल होने पर सवाल तो उठाते हैं.लेकिन साथ ही वे ये मानते हैं कि अमरीका का इस प्रोजेक्ट से जुड़ना ज़्यादा फ़ायदेमंद है बजाय इसके कि कोई और देश ये हासिल कर ले जो अमरीका का सहयोगी नहीं है.

ट्रंप प्रशासन में परमाणु अप्रसार और हथियार नियंत्रण विभाग के पूर्व सलाहकार रॉबर्ट आइनहोर्न ने वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार से कहा, “मैं सऊदी अरब में रूस या चीन की बजाय अमरीका के परमाणु रिएक्टरों से जुड़ना ज़्यादा पसंद करूंगा.”