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सरकार भोजपुरी सिनेमा को आगे लाने में कोई सहायता नहीं करती है : इम्पा अध्यक्ष

हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसा संभवत: पहली बार हुआ जब मुंबई में सक्रिय फिल्म निर्माताओं की सबसे संस्था इम्पा (इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन) के अध्यक्ष पद पर पिछले साल भोजपुरी सिनेमा के दिग्गज निर्माता और वितरक अभय सिन्हा आसीन हुए। अभय सिन्हा की कंपनी के साथ हाल ही में जियो स्टूडियोज ने मल्टी फिल्म्स करार किया है। इम्पा का चुनाव जीतने के समय किए गए वायदों, बुजुर्ग फिल्म निर्माताओं को लेकर चल रहे उनके प्रयास और भोजपुरी फिल्म निर्माताओं की अपनी अलग यूनियन के सवाल पर लंबी बातचीत की।

इम्पा का कार्यभार संभाले आपके एक साल हो गया है, इस दौरान कोई खास बदलाव जो आप साझा करना चाहें?
इस एक साल में इम्पा में कई बड़े बदलाव आए हैं। पहले फंड दो करोड़ रुपये होता था लेकिन इस एक साल में ही चार करोड़ रुपये आया है। इम्पा से जुड़े गरीब निर्माताओं की पेंशन, बच्चों की फीस, मेडिकल सब शुरू हो चुका है। हमारी एक कमेटी बनी हुई है जो इस बाबत मिले आवेदनों की जांच करती है और वांछित मदद करती है। दूसरे अब कोई भी यूनियन आकर फिल्मों की शूटिंग नहीं रोक सकती है।

इस समय पूरे देश में साउथ का सिनेमा छाया हुआ है तो कभी ऐसा हो सकता है कि भोजपुरी सिनेमा भी मुख्यधारा में आ सके?

बिल्कुल आ सकता है। अगर भोजपुरी सिनेमा को सरकार से मदद मिले तो जरुर आ सकता है। सरकार हमारे भोजपुरी सिनेमा को आगे लाने में कोई सहायता नहीं करती है। साउथ की फिल्में मल्टीप्लेक्स में लगती हैं लेकिन भोजपुरी की नहीं। इसी वजह से यह दिक्कत है। साउथ में फिल्मों का बजट बहुत ज्यादा है लेकिन यहां भोजपुरी सिनेमा में बजट ही बहुत कम है तो इसलिए भी असर पड़ता है। लेकिन वह दिन दूर नहीं, जब भोजपुरी सिनेमा भी इसकी बराबरी कर लेगा।

सब्सिडी के लिए भोजपुरी फिल्में इन दिनों लंदन में शूट हो रही हैं। लेकिन, भोजपुरी इंडस्ट्री के लिए इम्पा की तरह ही कोई अलग से एसोसिएशन क्यों नहीं है?

भोजपुर इंडस्ट्री की एसोसिएशन भी जल्दी ही बनेगी। इस समय इंडस्ट्री में लोगों की एकता पर काम हो रहा है। लोग एक साथ नहीं हैं। अगर भोजपुरी अभिनेताओं से मदद मिलेगी तो बहुत ही जल्द भोजपुरी के लिए भी एक एसोसिएशन बनेगा। लेकिन कब बनेगा यह तो समय बताएगा और इसकी पहल भी मैं ही करूंगा।

लंदन में भोजपुरी अवॉर्ड आयोजित करने की क्या वजह है?
लंदन में भोजपुरी अवॉर्ड हम वहां रह रहे उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के लिए करते हैं। देश से और अपनी मिट्टी से इतने दूर होने के कारण उन लोगों को भोजपुरी से जुड़ा इस तरह का कोई आयोजन नहीं देखने को मिलता है। लंदन में भारी तादाद में लोग इसे देखने आते हैं। भारत सरकार भी इस अवॉर्ड के लिए हमारी मदद करती है। कई चैनल भी मदद करते हैं। जितने बाहर के लोग इस अवॉर्ड से जुड़े हैं वह सभी मिल कर मदद करते हैं और इस अवॉर्ड को सफल बनाते हैं।

भोजपुरी सिनेमा में डिस्ट्रीब्यूशन की सबसे बड़ी दिक्कत है, यह सुधार कब तक आ पाएगा?
नहीं ऐसा नहीं है। जो अच्छी फिल्में हैं, वे सब जगह रिलीज होती हैं और जो फिल्में देखने दर्शक आते ही नहीं हैं तो उनको लगा कर कोई भी डिस्ट्रीब्यूटर अपना नुकसान नहीं करेगा। उत्तर प्रदेश में कंपाउंडिंग टैक्स सिस्टम है तो जब सिनेमाघर वालों का नुकसान होता है तो वे फिल्म उतार देते हैं। लेकिन, बड़ी फिल्में चलती हैं। अभी खेसारी लाल यादव की ‘फरिश्ते’ खूब अच्छे से चली। पवन सिंह की फिल्म ‘मेरा भारत महान’ ने भी अच्छी कमाई की है।

एक यह भी धारणा है कि भोजपुरी सिनेमा का स्तर आए दिन गिरता जा रहा है…
जो लोग बिहार की, उत्तर प्रदेश की मिट्टी की खुशबू को नहीं पहचानते हैं या फिर नहीं जानते हैं कि वहां की संस्कृति क्या है। वही लोग इस तरह का कॉन्टेंट बनाते हैं। जो वहां के स्थानीय लोग हैं वे अच्छी तरह से जानते हैं कि एक बिहारी को क्या चाहिए। सेंसर बोर्ड सिनेमा को देखता है और उसके हिसाब से फिल्में ठीक लगती हैं तभी रिलीज होती हैं। फिर भी हम लोगों से कहते हैं कि अच्छी फिल्में बनाइए, पारिवारिक फिल्में बनाइए।

भोजपुरी सिनेमा का रिकॉर्ड कहीं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध क्यों नहीं है?
सारा रिकॉर्ड आपको जब चाहिए हमारे पास मिल जाएगा। और अगर आपको हिट और फ्लॉप की लिस्ट चलिए तो वह सब भी हमारे पास मिल जायेगा। अभी तो सारी जानकारियां हमसे ही मिलेंगी लेकिन इनको ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए कैसे सुलभ बनाया जाए, इस पर काम हो सकता है।