साहित्य

“साहब! जंगल में शेर न होने के कारण ये चिंता मुक्त हो गए हैं इसलिये यह कुरूप हो गए हैं!

Ale Hasan Khan ·
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लघुकथा – चिंता लेखक- आले हसन खां
अचानक वह बेंच से उठा और मेरे हाथों को चूमने लगा, तो वहां पर उपस्थिति सभी अचरज से उसे देखने लगे ।
“आपने मेरी जान बचा ली साब !” कहकर वह अपनी नम आंखें गर्दन में पड़े अंगोछे से पोंछने लगा, तो मैंने ढाढ़स बंधाया,” पहले आप आराम से बैठ जायें फिर बतायें क्या बात है ।”

“क्या बताऊं! चिंताओं से परेसान हूं दोबार आत्महत्या का प्रयास कर चुका हूं …अभी सोच रहा था इस बार फांसी लगा ही लूंगा किंतु आपकी बात सुनकर विचार बदल दिया…परसों पेड़ की डाल पर रस्सी बांधी और मृत्यु के भय से गर्दन पर उसे लपेटने से पहले पेड़ से उतर आया जबकि कल तो गर्दन में भी बांध ली थी किंतु जीवन मोह से उसे खोल दिया परन्तु आज अपने जीवन को समाप्त करने का पूरा निश्चय कर लिया था कि तभी साक्षात भगवान रूप में आप प्रकट हो गए और वकील साहब से बातें करने लगे जो मेरे मन को भा गयीं ।

वास्तव में हुआ यह कि मैं अपने एक साथी अधिवक्ता से मिलने उसके चेम्बर में आया जो किसी गहरे सोच में डूबा हुआ था।

” लगता है किसी गहरे सोच में डूबे हो! ”
मेरी बात पर वह हौले से मुस्कुराया, “कुछ नहीं! बस यूहीं मन तनिक चिंतित था और चिंता तो सभी को लगी रहती है।”
उसका मूड सही करने को मैं भी मुस्कराया,” भाई ! जबतक चिंता है तबतक जीवन है चिंता नहीं तो जीवन नहीं फिर उससे घबराना क्या ।”
“नहीं भाई! चिंता बहुत बुरा रोग है जो आदमी को चिता तक ले जाता है…किंतु आप नहीं मानोगे, अभी बहस करने लगोगे ।” कह कर उसने मुझे देखा और मुस्कराया तो मैंने भी हंसकर जवाब दिया,” भाई! मानने वाली बात मानी जाती है और वकील तो हमैशा तर्क से बात करते हैं..ख़ैर आज बहस न करो और एक कहानी याद आगई है वह सुनो!”

“हां! हां! सुनाओ…तुम तो कहानीकार भी हो, सुनाओ अपनी झूठी सच्ची मनगढ़ंत कहानियाँ ।”

“भाई! झूठी सच्ची ही सही सुनो तो सही! एक जंगल में बहुत ही सुंदर हिरन रहते थे जो वहां दिन और रात उछलते कूदते थे उनकी धमा चौकड़ी का एक कारण जंगल के शेर भी थे जिनसे वह भयभीत होकर दौड़ते भागते रहते थे एक दिन जंगल में एक अधिकारी आया उसने सरकारी अमले को आदेश दिया कि शेरों को यहां से हटा दिया जाये क्यूंकि इनके कारण हिरन हर समय चिंताग्रस्त रहते हैं। अधिकारी के आदेश का तुरंत पालन किया गया।

कुछ समय बाद वही अधिकारी हिरनों को देखने पुन: आया परन्तु उसे कोई हिरन दिखाई नहीं दिया, जंगल में घास, झाड़ियाँ भी बहुत बड़ी हो गयीं थीं देर तक खोज करने पर हिरनों का झुंड एक पेड़ की छाया में लेटा मिला, जिनके पास जाने पर मालूम हुआ कि वह बहुत मोटे, भद्दे और आलसी हो गये थे घास भी कम खाते थे । इसपर अधिकारी को चिंता हुई उसने अपने अधीनस्थों से पूछा,”यह सब क्या है ये हिरन तो उछलना कूदना ही भूल गए , इनकी सुंदर काया, रंग रूप सब बिगड़ गया, यह तो भद्दे और भैंस के बच्चे नज़र आ रहे हैं।”

उस पर मातहतों ने बताया,”साहब! जंगल में शेर न होने के कारण ये चिंता मुक्त हो गए हैं इसलिये यह कुरूप हो गए हैं और इनका जीवन बर्बाद हो गया है।”

ये सुनते ही अधिकारी ने तुरंत शेरों के पिंजरों को लाकर उन्हें जंगल में छोड़ देने को कहा और शेरों के छूटते ही उनकी दहाड़ जैसे ही हिरनों के कानों में पड़ी । उन्होंने पहले अपने कान खड़े कर फड़ फड़ाए .. दहाड़ जब और क़रीब महसूस हुई तो वह उठकर बैठे और शेरों की उपस्थिति का आभास होते ही गिरते पड़ते भागना शुरु कर दिया । चिंताग्रस्त होते ही हिरन फिर हिरन हो गए, उनकी सुंदरता वापस आगई। क्या समझे! चिंता से कभी मत घबराना क्यूंकि चिंता है तो जीवन है, चिंता नहीं तो जीवन भी नहीं ।”__________

लेखक- आले हसन खां

Sukhpal Gurjar
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कामकाजी औरतें हड़बड़ी में निकलती हैं रोज सुबह घर से
आधे रास्ते में याद आता है सिलेंडर नीचे से बंद किया या नहीं
उलझन में पड़ जाता है दिमाग
कहीं गीजर खुला तो नहीं रह गया
जल्दी में आधा सैंडविच छूटा रह जाता है टेबल पर
कितनी ही जल्दी उठें और तेजी से निपटायें काम
ऑफिस पहुँचने में देर हो ही जाती है
खिसियाई हंसी के साथ बैठती हैं अपनी सीट पर
बॉस के बुलावे पर सिहर जाती हैं
सिहरन को मुस्कुराहट में छुपाकर
नाखूनों में फंसे आटे को निकालते हुए
अटेंड करती हैं मीटिंग
काम करती हैं पूरी लगन से
पूछना नहीं भूलतीं बच्चों का हाल
सास की दवाई के बारे में
उनके पास नहीं होता वक्त पान, सिगरेट या चाय के लिए
बाहर जाने का
उस वक्त में वे जल्दी-जल्दी निपटाती हैं काम
ताकि समय से काम खत्म करके घर के लिए निकल सकें.
दिमाग में चल रही होती सामान की लिस्ट
जो लेते हुए जाना है घर
दवाइयां, दूध, फल, राशन
ऑफिस से निकलने को होती ही हैं कि
तय हो जाती है कोई मीटिंग
जैसे देह से निचुड़ जाती है ऊर्जा
बच्चे की मनुहार जल्दी आने की
रुलाई बन फूटती है वाशरूम में
मुंह धोकर, लेकर गहरी सांस
शामिल होती है मीटिंग में
नजर लगातार होती है
घड़ी पर
और ज़ेहन समीकरणोती है बच्चे की गुस्से वाली सूरत
साइलेंट मोड में पड़े फोन पर आती रहती हैं ढेर सारी कॉल्स
दिल कड़ा करके वो ध्यान लगाती हैं मीटिंग में
घर पहुंचती हैं सामान से लदी-फंदी
देर होने के संकोच और अपराधबोध के साथ
शिकायतों का अम्बार खड़ा मिलता है
घर पर
जल्दी-जल्दी फैले हुए घर को समेटते हुए
सबकी जरूरत का सामान देते हुए
करती हैं डैमेज कंट्रोल
मन घबराया हुआ होता है कि कैसे बतायेंगी घर पर
टूर पर जाने की बात
कैसे मनायेंगी सबको
कैसे मैनेज होगा उनके बिना घर
ऑफिस में सोचती हैं कैसे मना करेंगी कि नहीं जा सकेंगी इस बार
कितनी बार कहेंगी घर की समस्या की बात
कामकाजी औरतें सुबह ढेर सा काम करके जाती हैं घर से
कि शाम को आराम मिलेगा
रात को ढेर सारा काम करती हैं सोने से पहले
कि सुबह हड़बड़ी न हो
ऑफिस में तेजी से काम करती हैं कि घर समय पर पहुंचे
घर पर तेजी से काम करती हैं कि ऑफिस समय से पहुंचे
हर जगह सिर्फ काम को जल्दी से निपटाने की हड़बड़ी में
एक रोज मुस्कुरा देती हैं आईने में झांकते सफ़ेद बालों को देख
किसी मशीन में तब्दील हो चुकी कामकाजी औरतों से
कहीं कोई खुश नहीं
न घर में, न दफ्तर में न मोहल्ले में
वो खुद भी खुश नहीं होतीं खुद से
‘मुझसे कुछ ठीक से नहीं होता’ के अपराध बोध से भरी कामकाजी औरतें
भरभराकर गिर पड़ती हैं किसी रोज
और तब उनके साथी कहते हैं
‘ऐसा भी क्या खास करती हो जो इतना ड्रामा कर रही हो.’
मशीन में बदल चुकी कामकाजी औरतें
एक रोज तमाम तोहमतों से बेजार होकर
जीना शुरू कर देती हैं
थोड़ा सा अपने लिए भी
और तब लड़खड़ाने लगते हैं तमाम
सामाजिक समीकरण l
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Baba garibnath mandal
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कभी-कभी विचार आता है कि अंग्रेज कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जिन्होंने एक ठण्डे से प्रदेश से निकलकर, अनजान रास्तों और अनजान जगहों पर जाकर लोगों को अपना गुलाम बनाया। देखा जाए तो ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल भारत के गुजरात राज्य के ही बराबर है। लेकिन उन्होंने दशकों नहीं शताब्दियों तक दुनिया को गुलाम बनाए रखा।

भारत की करोड़ों की जनसंख्या को मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने सदियों तक गुलाम बनाकर रखा, और केवल गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि खूब हत्यायें और लूटपाट भी की। उनको अपनी कौम पर कितना गर्व होता होगा कि हम मुठ्ठी भर लोग सदियों तक दुनिया के देशों को नाच नचाते रहे।
भारत के एक जिले में शायद ही 50 से अधिक अंग्रेज रहे होंगे। लेकिन लाखों लोगों के बीच, अपनी धरती से हजारों मील दूर आकर, अपने से संख्या में कई गुना अधिक लोगों को इस तरह गुलाम रखने के लिए उनमें अद्भुत साहस रहा होगा।

अरब के रेगिस्तान से कुछ भूखे लुटेरे और आततायी आए, और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा, और महिलाओं के साथ अन्य पैशाचिक कर्म किये। हम वहाँ भी नाकाम रहे, उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, स्त्रियों से बलात्कार किये, लेकिन हमने क्या किया? पहले दिन में विवाह होते थे, उनके भय से हम रात को चुपचाप विवाह करने लगे। जब वे कन्याओं को उठा ले जाने लगे तो हम बचपन में ही शादी करने लगे।

और…. अगर उसमें भी असुरक्षा होने लगी तो हम बेटी को पैदा होते ही मारने लगे, लेकिन यही कठोर सच्चाई है।

हमारे ऊपर जब आक्रमण हो रहे थे और जब हम युद्धकाल से गुजर रहे थे, हमारी बहुसंख्यक जनसंख्या इस मानसिकता में थी कि “कोउ नृप होइ हमें का हानी”। तात्पर्य कि आम आदमी को युद्ध से, राज्य से, राजा से कोई सरोकार नहीं था। उनकी यही सोच थी कि यह सब तो क्षत्रियों के काम हैं, उनको करना है तो करें, नहीं करना तो न करें।
आज इजरायल बुरी तरह शत्रुओं से घिरा हुआ है लेकिन सुरक्षित है, क्योंकि वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति पर देश और धर्म की सुरक्षा का दायित्व है।।।
डॉ. अम्बेडकर का वह कथन सोचने पर मजबूर का देता है कि यदि समाज के एक बड़े वर्ग को युद्ध से दूर नहीं किया गया होता तो भारत कभी गुलाम नहीं बनता।
आप स्वयं विचार करके देखिए कि आताताइयों, से जिस तरह क्षत्रिय लड़े, अगर पूरा हिन्दू समाज लड़ा होता तो क्या हम कभी गुलाम हो सकते थे?
आज भी कुछ नहींं बदला है, सेकुलर