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सीरिया, इराक, लेबनान, अफ़्ग़ानिस्तान में मार खाने वाले अमेरिका का तबाही की ओर बढ़ता क़दम : रिपोर्ट

सीरिया, इराक , लेबनान में सीधी जंग में मार खाने के बाद अमरीका ने अब ईरान के भीतर वैचारिक जंग शुरू कर दी है।

अमेरिका, ईरान के सांस्कृतिक ढांचे को बुरी तरह प्रभावित करना चाहता है लेकिन ध्यान रहे ईरान की मौजूदा राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था विद्वानों के ख़ून के बलिदान और इस दुनिया के महानतम लोगों के आदर्शों पर टिकी हुई है जिसका नेतृत्व इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के हाथ में है। अमरीका शैतानी मंसूबे के तहत जिस बात (मानवाधिकार ) को आधार बनाकर ईरान में उथल पुथल करने की कोशिश कर रहा है वास्तव में वह उसका सबसे बड़ा उल्लंघनकर्ता है। जिसके काले कारनामों की शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध से ही होती है। जिसकी पराकाष्ठा द्वितीय विश्व युद्ध में नागासाकी और हिरोशिमा पर हुए परमाणु हमले से हो गई, जिसमें लाखों लोग अमरीका की निर्दयी इंसान विरोधी नीति के तहत मोत के मुंह में समा गए।

अमरीका संयुक्त राष्ट्र के विधानों को भी नहीं मानता है उसका लक्ष्य सिर्फ शैतानी आदर्शों को सामने रखते हुए दूसरे देशों के संसाधनों को लूटना है जिसका उदाहरण हमने ईरान के महान योद्धा शहीद क़ासिम सुलेमानी की हत्या के रूप में देखा जिनको अत्याचारी अमरीकी सेना ने अपने कायरतापूर्ण हमले में शहीद किया था। अमरीका अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भी अपने स्वार्थ के लिए ही इस्तेमाल करता है अंतर्राष्ट्रीय मामलों में गड़बड़ी का अमरीकी इतिहास पुराना रहा है। यही कारण है अमरीका 1920 में अस्तित्व में आने वाले राष्ट्र संघ से दूर रहा था, दुनिया को अमरीका के इन छल प्रपंचों से बचना चाहिए जिनको वह गुमराही के लिए इस्तेमाल करता रहता है इसी की कड़ी ईरान पर बार बार अमरीकी वैचारिक हमला है ताकि दुनिया ईरान से पूरी तरह अपना संपर्क तोड़ दे और अमरीका अपने लक्ष्य में सफल हो जाए जोकि अमरीका का अधूरा ख़्वाब रहेगा।

(मोहम्मद अफ़ज़ल दिल्ली विश्वविद्यालय)

* लेखक के विचारों से तीसरी जंग हिंदी का सहमत होना आवश्यक नहीं है*