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सुप्रीम कोर्ट के बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद पर्सनल लॉ बोर्ड ने जताई ये उम्मीद-देखिए क्या कहा?

नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने सुप्रीम कोर्ट से आये हाल के फैसले के बारे में बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद की मिल्कियत के आधार पर तय होगा न कि आस्था और अक़ीदे की बुनियाद पर तय होगा,बोर्ड का हमेशा से स्टैंड है कि बाबरी मस्जिद का फैसला मिल्कियत की बुनियाद पर हो।

मौलाना रहमानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि बाबरी मस्जिद सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की जगह है या हिन्दू दावेदारों के मुताबिक हिंदुओं की जगह है,क्योंकि कोर्ट का काम ये नही है कि वो मुक़द्दस व्यक्तियों के जन्म स्थान को तय करे,क्योंकि इसका ज़िक्र हिन्दू धर्म की पुस्तकों में इसका कोई जिक्र नही है,और ना ही ऐतिहासिक पुस्तकों में इसका कोई सबूत है।

मौलाना रहमानी ने कहा कि अदलात को इस केस की जटिलता में नहीं पड़ना चाहिए,और सरकारी रिकॉर्ड की रोशनी में ये बात तय करनी चाहिए कि ये सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की मिल्कियत है या नही,अगर कोर्ट ने इस बात पर ध्यान दिया तो फैसला हमारे स्टैंड के मुताबिक आयेगा।

इसके अलावा इससे पहले बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने भी कहा था कि कुछ दिनों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की जगह नये चीफ जस्टिस आजाऍंग और वो बैंच तय करेंगे जिसके सामने इस पूरे मुकदमे की सुनवाई होगी,जहां तक आने वाले फैसले का ताल्लुक है तो इस सम्बंध कानूनी जानकारी ली जांएगी,और मीटिंग के बाद कोई फैसला लिया जाएगा।

बोर्ड कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि इस फैसले से दो बेहद सकारात्मक बातें निकलकर आई हैं। पहला, यह कि अयोध्या मामले की सुनवाई कतई तौर पर आस्था की बुनियाद पर नहीं होगी, बल्कि केवल स्वामित्व के विवाद के तौर पर होगी। दूसरा, इस्माइल फारूकी की अदालत का जो भी नजरिया था, उसका कोई भी असर अयोध्या मामले पर नहीं पड़ेगा।

मौलाना ने कहा कि अब 29 अक्तूबर से अयोध्या मामले की सुनवाई का एलान किया गया है, उससे उम्मीद जगी है कि मामले की अंतिम सुनवाई जल्द से जल्द हो जाएगी। उन्होंने एक सवाल पर कहा कि इस मामले में जहां तक मजहबी नजरिये का सवाल है तो मस्जिद का बुनियादी मकसद ही नमाज अदा करने का होता है। मस्जिद का होना जरूरी है। यह बात कुरान, हदीस और इस्लामी कानून से पूरी तरह साबित है।