इतिहास

सुभाष चन्द्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना के नायक, स्वतंत्रता सेनानी कर्नल महबूब अहमद

Ataulla Pathan
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19 मार्च यौमे पैदायिश
सुभाष चन्द्र बोस के भारतीय राष्ट्रीय सेना के नायक, स्वतंत्रता सेनानी कर्नल महबूब अहमद
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बिहार से तालुक़ रखने वाले कर्नल महबुब अहमद ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जंग में कई मोर्चों पर फ़तह हासिल की थी। उनकी जंगी सलाहियत देख कर नेताजी सुभाष चंद्रा बोस ने उनकी ख़ूब तारीफ़ की। कर्नल अहमद जिन्होंने अपनी मातृभूमि को आजाद करवाने में इंडियन नेशनल आर्मी में एक अहम रोल अदा किया और स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अमिट छाप छोड़ी

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कर्नल महबूब अहमद का जन्म चौहट पटना (बिहार) में 19 मार्च 1920 में हुआ था । उनके मा नाम बेगम असमत जहाँ और पिता का नाम खान बहादूर डॉ वली अहमद था।उन्होंने IMA, देहरादून से शिक्षा ग्रहण करने के बाद सन 1939 में अंगरेजि सेना मे बतौर कॅप्टन जॉईन किया।

जब नेताजी ने भारतीय सैनिकों को देश सेवा में आगे आने का आहवान किया तो कर्नल अहमद ने आगे बढकर ब्रिटिश सेना की नौकरी छोड़ दी और नेताजी के साथ हो गये। उन्होने INA में बतौर कर्नल का पद ग्रहण किया।

1943 मे सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से रंगून आये तो आपने भारतीय राष्ट्रीय सेना की बागडोर संभाली।बाद मे उन्हे आय एन ए मे सेना सचिव के रूप मे नियुक्त किया गया।उन्होने भारतीय राष्ट्रीय सेना, आजाद हिंद सरकार और उसके नेता के बीच एक समन्वयक के रूप मे महत्वपुर्ण भूमिका निभाई।

जब आई एन ए विश्वयुद्ध मे जपान की वापसी के कारण बर्मा युद्ध मे प्रतिकूल वातावरण मे अनकही पीडावो का सामना कर रहा था उस बुरे वक्त में उन्होंने 24 घंटे कार्य करते हुए अपने साथी सिपाहियों को खाना, यूनिफॉर्म मुहैया करवाई तथा बीमार व जख्मी साथियों को स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध करवाई। इस प्रकार वे सुभाष चंद्र बोस के एक विश्वास पात्र साथी के रूप में उभरकर सामने आए।

*23 जनवरी 1944 का दिन था, जब आजाद हिंद फ़ौज की एक टुकड़ी ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया। इस टुकड़ी के नायक कर्नल मेहबूब अहमद ने भारतीय सीमा में घुसने के साथ ही आजाद हिंद फ़ौज का झंडा फ़हराया था। बाद में लड़ाई के दौरान वह नायक और उसकी दल के सभी सदस्य अंग्रेज सैनिकों द्वारा गिरफ़्तार कर लिये गये। दल के उस नायक को फ़ांसी की सजा सुना दी गई। लेकिन इससे पहले कि उन्हें फ़ांसी दी जाती, भारत आजाद हो गया और उन्हें रिहा कर दिया गया।*

आजादी के बाद उन्हें इराक में राजनयिक के तौर पर नियुक्त किया गया जहां उन्हें हिंदुस्तानी लोग और नेताओं से अपनी कुशल क्षमताओं के कारण बहुत प्रशंसा मिली। सेवानिवृत्ति होने के बाद महबूब अहमद पटना में बस गए किंतु वह जीवन पर्यंत सक्रिय रहे । 9 जून 1992 को उनका निधन हो गया। कर्नल अहमद द्वारा कहे गए शब्द ‘अगर मुझे हजार जन्म मिलते तो मैं उन सभी जन्मों को सुभाष चंद्र बोस को उनके लक्ष्य प्राप्ति के लिए समर्पित कर देता’ उनके राष्ट्र के प्रति उच्चतम समर्पण को दर्शाते हैं जो धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठते हुए प्रत्येक भारतीय के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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संदर्भ- 1)THE IMMORTALS
लेखक syed naseer ahamed
2) heritage times

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अनुवादक तथा संकलक लेखक *अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी तालुका संग्रामपूर जिल्हा बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726