इतिहास

सैयद हाफ़िज़ अहमद रज़ा ख़ान उर्फ़ नवाब सिकंदर जंग, जब गांधी जी पहली बार बिहार आए तब….

Ataulla Pathan
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10 अप्रैल 1917 को जब गांधी जी पहली बार बिहार चम्पारण के राजकुमार शुक्ल के साथ आए तब उनके ठहरने का इंतज़ाम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के घर पर किया गया। लेकिन वहाँ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नहीं थे। और उनके नौकरों ने गांधी जी के साथ अच्छा व्यावहार नहीं किया। जिसके बाद मज़हर उल हक़ उन्हें फ़्रेज़र रोड़ स्थित अपने घर ले आये। उस समय उस घर का नाम सिकंदर मंज़िल था।

इस घर को लेकर बड़ी मज़ेदार मज़ेदार बहस है। कुछ लोग ये कहते हैं की ये घर मज़हर उल हक़ ने बनवाया था, और 1920 के बाद जब वो सदाक़त आश्रम में रहने लगे तब उन्होंने किसी सिकंदर साहब को बेच दिया। कुछ लोगों का ये कहना है की मज़हर उल हक़ ने सिकंदर साहब से ये मकान ख़रीदा था।

बहरहाल, मैं इस बहस में नही पड़ रहा के ये किसका मकान था। पर मैं यहाँ पर ये ज़रूर बताने की कोशिश करूँगा के सिकंदर मंज़िल में जो सिकंदर शब्द आया है वो कहाँ से आया है। ये नाम असल में सैयद हाफ़िज़ अहमद रज़ा ख़ान के लक़ब से जुड़ा है, जो निज़ाम हैदराबाद के कोर्ट में एक ऊँचे ओहदे पर थे और जिन्हें वहीं नवाब सिकंदर जंग का ख़िताब हासिल हुआ था, वहाँ से लौटने के बाद वो पटना के फ़्रेज़र रोड़ के एक मकान में रहने लगे और वही मकान सिकंदर मंज़िल के नाम से मशहूर हुआ। आज भी उनके परिवार के लोग इस कैंपस में रहते हैं।

जहाँ अप्रैल 1917 यहाँ गांधी जी के आने के सबूत मिलते हैं, वहीं 1918 में यहाँ मज़हर अलीम अंसारी आए थे, जिन्होंने अपनी किताब ‘सफ़रनामा मज़हरी’ में लिखा कि अक्तूबर 1918 को बांकीपुर पहुँचा। सैयद महमूद से मिला, और उनसे ही मज़हर उल हक़ से मिलवा देने की दरख़ास्त की, वो लेकर गये भी। पर मज़हर उल हक़ घर पर नहीं थे। काफ़ी देर इंतज़ार भी किया, पर वो नहीं आए। मज़हर उल हक़ के घर के बग़ल में बैरिस्टर सैयद हुसैन रहते थे, जो सैयद हाफ़िज़ अहमद रज़ा ख़ान के वारिस थे। वो उनसे जाकर मिले भी।

इस हिसाब से इसका मतलब ये हुआ के सिकंदर मंज़िल और उसके एतराफ़ में 1918 के दौरान मज़हर उल हक़ और सैयद हाफ़िज़ अहमद रज़ा ख़ान उर्फ़ नवाब सिकंदर जंग के ख़ानदान के लोग एक साथ रह रहे थे। यानी जिन लोगों ने ये लिखा की मज़हर ने ख़रीदा या बेचा वो 1918 तक तो नहीं हुआ है। जो हुआ होगा उसके बाद का है। बाक़ी इस बात का हर जगह ज़िक्र मिलता है की सदाक़त आश्रम की स्थापना के बाद मज़हर उल हक़ ने सदाक़त आश्रम को छोड़ दिया था। बाक़ी 4 दिसंबर 1920 को गंधी जी ने बांकीपुर से अकबर हैदरी को लिखे ख़त में मज़हर उल हक़ की पत्नी के देशभक्ति के जज़्बे की तारीफ़ की थी। उस समय भी ये उसी मकान में रह रहे थे।

– तस्वीर सैयद हाफ़िज़ अहमद रज़ा ख़ान उर्फ़ नवाब सिकंदर जंग की है, जिनके नाम पर सिकंदर मंज़िल है।
~ Md Umar Ashraf