इतिहास

स्वतंत्रता सेनानी वैक्कम मोहम्मद बशीर – देश आज़ादी के लिये साढे सात वर्षे जेल मे गुजारे!

Ataulla Pathan
==============
5 जुलै- पुण्यतिथी
स्वतंत्रता सेनानी वैक्कम मोहम्मद बशीर – देश आजादी के लिये साढे सात वर्षे जेल मे गुजारे

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
विक्कम मोहम्मद बशीर साहेब की पैदाइश 1 जनवरी सन् 1908 को केरल के नार्थ त्रावणकोर ज़िले के थलायोला परम्भू कस्बे में हुई थी। शुरुआती तालीम मुक़ामी स्कूल से हासिल करके आप आगे की पढ़ाई के लिए विक्कम आ गये। यहां तालीम लेनेवालों में कुछ तादात स्वतंत्रता-आंदोलन में शामिल स्वतंत्रता सेनानी के घरवालों की भी थी, जिनकी सोहबत में बशीर साहब भी पूरी तरह कौमी जज्बे से लबरेज़ होकर एक दिन महात्मा गांधीजी से मिलने गये। गांधीजी से मिलकर आप बहुत जोश में आये और सन् 1924 में ही अपनी पढ़ाई छोड़कर कांग्रेस में शामिल होकर नेशनल मूवमेंट की मुहिम में लग गये। आपने सबसे पहले स्वदेशी तहरीक फिर नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया। आप नमक सत्याग्रह में गिरफ्तार हुए और आपको 9 महीने की सज़ा मिली।

काझिकोड की जेल में कैद रहने के दौरान आपकी मुलाकात वहां पहले से सजा काट रहे आज़ादी के दीवानों से हुई। उनसे राय मशवरा करने के बाद आपका मिज़ाज अहिंसक आंदोलन से हटकर सशस्त्र आंदोलन की तरफ बना। जेल से छूटने के बाद आंदोलन के गरमदल यानी नौजवानों की टीम के साथ मिलकर आप अंग्रेज़-अफ़सरों और सरकारी मशीनरी के खिलाफ छापामार लड़ाई में शामिल हुए। पकड़े जाने पर आपको एंटी ब्रिटिश रिव्यूलूशनरी एक्टीविटीज़ में सजाएं हुई, जिसमें कई जेलों में रहकर आपने कुल साढे सात साल कैद की सज़ा भुगती। बाद में आपने उज्जीवनम नाम से एक अख़बार निकालकर क्रांतिकारी ख्यालात और आंदोलन के हक़ में लिखने का काम किया। ब्रिटिश हुकूमत ने इस पर बैन लगाकर आपके ख़िलाफ़ सन् 1931 में वारंट गिरफ्तारी जारी किया। सीनियर नेताओं की सलाह पर आप अंडरग्राउंड हो गये और लगभग 6 सालों तक जगह बदल-बदलकर भूमिगत क्रांतिकारियो के साथ रहे, लेकिन इस बीच भी मुल्क की आज़ादी का ही काम किसी ने किसी तरह करते रहे।

सन् 1937 में विक्कम लौटकर आप फिर पूरी ताक़त और शिद्दत से अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ते रहे। अंग्रेज़ अफसरों ने आपको ख़तरनाक मुल्ज़िम कुरार करके सन् 1941 में कैद कर लिया और आपको तीन महीने की सजा हुई। इस तीन महीने में आपने अंग्रेज़ हुकूमत की ज़ुल्मो-ज़्यादती के बारे में एक किताब लिखी, जिसे जेल से आने के बाद घर-घर जाकर चुपके से बेचा या बांटा।

बशीर साहब ने कई किताबें लिखीं और उन्हें मुकामी भाषाओं में ट्रांसलेट कर छपवाया। बशीर साहब ने लिटरेचर के ज़रिये जंगे आज़ादी के लिए बहुत काम किया। आपकी लिखीं ज्यादातर किताबों को सरकार ने बैन कर दिया था। आपकी पूरी जिंदगी मादरे वतन की आज़ादी के लिए वक्फ रही। आज़ादी के बाद बशीर साहब की ख़िदमात के लिए मुकामी स्टेट सरकार ने उन्हें सम्मानित किया। फिर बाद में सन् 1982 में राष्ट्रपति ने भी आपको पदमश्री से सम्मानित किया। आपका इंतकाल 5 जुलाई सन् 1994 में बाआईपुर (केरल) में हुआ। आपका सफरे- आखिर पूरे राजकीय सम्मान के साथ हुआ।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
संदर्भ – 1)THE IMMORTALS
– SYED NASEER AHAMED
2) लहू बोलता भी है
– सय्यद शाहनावाज अहमद कादरी,कृष्ण कल्की

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
अनुवादक तथा संकलक लेखक- अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर
Tunki बुलढाणा महाराष्ट्र