साहित्य

स्वार्थी भाई : ● उधेड़ कर रख दिया

Komal Kumari
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स्वार्थी भाई
बाबू जी छः भाईयों में सबसे छोटे थे। एक एक करके सभी भाई अलग हो गए,पर बड़े भाई साथ में ही रहते थे। वो कानपुर में रेल्वे में नौकरी करते थे। उनका परिवार बाबूजी के साथ ही रहता था। बाबू जी ने उनके दो बेटों और एक बेटी को पढ़ाया लिखाया। उनकी शादी भी करवाई। अब दोनों बेटे भी अलग रहने लगे। अपनी मां को नहीं ले गये। वो बाबू जी के साथ ही रहतीं थीं। अब मेरी शादी की तैयारी चलने लगी।

बड़े पिता जी रिटायर्ड हो कर घर आ गए। बाबू जी ने बड़ी मुश्किल से उनके परिवार और अपने परिवार का पालन पोषण किया था। उन्होंने कभी भी बाबू जी की पैसों से मदद नहीं की।

अब बाबू जी ने उनसे अपनी बेटी की शादी के लिए मदद करने को कहा तो उन्होंने कहा, तुम्हारी बेटी, तुम जानो। क्यों इतना पढ़ाया। बहुत दहेज देना पड़ेगा। मैं बंटवारा चाहता हूं। बाबू जी ये सुनकर अवाक रह गए। भैया, मैंने अपना सब कुछ आपके बच्चों मे खर्च कर दिया। मैं आज खाली हाथ हूं। पर उन पर किसी बात का असर नहीं हुआ, पंचायत बुलाई गई और सबसे बढ़िया खेत,बगीचा सब अपने हक में करवा लिया। बाबू जी ने कोई विरोध नहीं किया, उनके धोखेबाजी और स्वार्थ पर आंसू बहाते रहे।

बाबू जी ने रोते रोते कहा, मैंने तो इन्हें राम जैसा भाई माना था। हमारी राम लक्ष्मण की जोड़ी सब मानते थे। ये तो आस्तीन का सांप निकले। इन्होंने मुझे डस लिया, मुझे ही नहीं मेरे विश्वास, श्रद्धा, आस्था सबको सांप बन कर डस लिया। मैं तो बरबाद हो गया, मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
#आस्तीन का सांप।


अनिल कौशिश
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● उधेड़ कर रख दिया
Harshall Khairnar Ji जिन बंधुओं को मोबाइल स्क्रीन पर आपका यह लेख दिखायी नहीं दिया होगा उनके लिये मैं इसे यहाँ चिपका रहा हूँ।
वाह Harshali Ji वाह। इसे पढ़ कर तो मजा आ गया।
तो भाई जी जरा एक बात बताओः
आपने आज सुबह ऐसा क्या खाया था कि आपने इस लेख में अच्छे-अच्छों को घंटाघर के चौराहे पर नंगा ही कर दिया है।

✍️ अनिल कौशिश

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साठ, सत्तर के दशक में जन्मे क्रिकेट के दीवानों को उस समय के भारत पाकिस्तान के कई मैच बहुत याद होंगे, तब भी और अब भी भारत पाक के मैचों में दीवानगी आज भी चरम पर ही रहती है।

लेकिन तब पाकिस्तान की टीम के पास अतिरिक्त शक्ति भी होती थी और वो होती थी पाकिस्तानी अंपायर्स की, तब कहा जाता था कि पाकिस्तान की टीम 11 नहीं 13 खिलाड़ियों के साथ खेलती है।

उस समय पाकिस्तान में और शारजाह में खेले गए अधिकांश मैचों में पाकिस्तानी अंपायर खुलकर पक्षपात करते थे, पाकिस्तानी खिलाड़ियों को केवल अपील भर करनी होती थी और पाकिस्तानी अंपायर तत्काल ऊँगली उठा देते थे। अधिकांश क्रिकेट प्रेमियों को 1991 में भारत पाकिस्तान मैच में आक़िब जावेद की हैट्रिक भी याद होगी जब तीन लगातार एलबीडब्लू दिये गए थे जिसमें से दो निर्णय बिलकुल गलत थे।

पाकिस्तान के इन दो अतिरिक्त खिलाड़ियों के भी मैदान में खेलने से कई विदेशी टीम्स पाकिस्तान में खेलने से कतराती थीं और इन्हीं घटनाओं ने तठस्थ अंपायरिंग की शुरुआत करवाई, पाकिस्तान के साथ खेले जाने वाले मैच भी तीसरे देश में खेले जाने लगे, इसके बाद थर्ड अंपायर ने तो क्रिकेट में अंपायरिंग को लेकर होने वाले विवादों को लगभग खत्म सा कर दिया है और पाकिस्तान में श्रीलंकाई टीम पर हुए आतंकी हमले ने पाकिस्तान में क्रिकेट को हमेशा के लिये खत्म कर दिया।

परंतु ये भी सच है कि उस समय की पाकिस्तानी टीम भारतीय टीम से ज़्यादा सशक्त होती थी और भारतीय टीम विश्वस्तरीय खिलाड़ियों के होने के बावजूद भी एक मनोवैज्ञानिक दबाव में होती थी। समय के साथ पाकिस्तानी टीम में धुरंधर खिलाड़ी भी कम होते चले गए और एक दो खिलाड़ी के अलावा शायद ही किसी और का नाम क्रिकेट प्रेमियों को याद होगा।

इसी तरह जब मई 2014 में जब देश में पहली बार एक कांग्रेस मुक्त सरकार बनी तब उसका भी सामना कांग्रेस की लंबे समय से सत्ता में रहते हुए खड़ी की गई अतिरिक्त, अदृश्य शक्तियों से होना शुरू हुआ और देश को पहली बार पता चला कि एक इकोसिस्टम भी देश में काम कर रहा है और वो इतना मज़बूत था कि उसने शुरुआती पाँच साल तो मोदी सरकार को भी लोहे के चने चबवा दिये थे।

तबसे लेकर अब तक कांग्रेस के इस तथाकथित इकोसिस्टम की सबसे ज़्यादा पोल सोशल मीडिया पर सक्रिय साधारण लोगों ने ही खोली है, इसी सोशल मीडिया ने मेनस्ट्रीम मीडिया में बैठे कांग्रेसी पत्रकारों, न्यूज़ चैनलों को गरियाना शुरू किया, इनके कांग्रेस के ज़माने के और मोदी सरकार के समय के एक ही विषय पर अलग अलग विचार वायरल करना शुरू किये, इसका परिणाम ये हुआ कि इन पत्रकारों की झूठ की दुकान ज़्यादा दिनों तक चल नहीं पाई और आज अधिकांश ईमानदार (?) पत्रकार यूट्यूबर बनकर रह गए हैं और अपने पुराने दिनों को याद करते हुए रात दिन मोदी सरकार को कोसते हैं, झूठ, भ्रम फैलाते हैं, फ़र्ज़ी आंकड़े लाते हैं फिर भी कहते हैं कि हमारी आवाज़ को दबाया जा रहा है जबकि किसी भी पत्रकार पर सरकार की तरफ से सीधे तौर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

जहाँ इन पत्रकारों की, तथाकथित लेखकों, बुद्धिजीवीयों की धार कुंद पड़ने लगी तो कांग्रेस के इकोसिस्टम का एक सबसे मज़बूत स्तंभ उठ खड़ा हुआ और इसने अपनी बेहिसाब शक्तियों के चलते अपनी मनमानी दिखानी शुरू कर दी और सोशल मीडिया के इस दौर में इस मनमानी की ख़बरें भी तेजी से आम जनता के सामने आने लगी जो कि इसके पहले इस शक्ति की मनमानियों से एकदम अनजान थी।

इस अतिरिक्त शक्ति का नाम है सुप्रीम कोर्ट, एक आतंकी के लिये सुप्रीम कोर्ट आधी रात को खुलवाया गया, कुछ जाने मानें वकील जिनकी फीस करोड़ों में होती है वो आधी रात को काले चोगे पहने सुप्रीम कोर्ट पहुँचे और हरसंभव प्रयास किया कि मुंबई बम ब्लास्ट के आरोपी को फाँसी की सज़ा ना हो परंतु ये संभव नहीं हो पाया।

सुप्रीम कोर्ट ने कभी सोशल मीडिया को इतनी तवज्जो नहीं दी परंतु जब नूपुर शर्मा के केस में सुप्रीम कोर्ट ने ऑफ रिकॉर्ड जो बातें कहीं उससे देश में रोष फ़ैल गया और तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की धज्जियाँ उड़ा दी गईं और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट पहली बार सोशल मीडिया के दबाव में आई और नूपुर शर्मा को राहत तो दी ही, साथ ही सोशल मीडिया के इस बेलगाम, बेखौफ़ व्यवहार पर तल्ख़ टिप्पणी भी की गोयाकि पहली बार सुपर पॉवर को सामान्य पॉवर ने टक्कर दी थी।

यही सुप्रीम कोर्ट शाहीन बाग पर मौन रहा, सिंघु बॉर्डर पर किसानों के जमावड़े पर मौन रहा, उदयपुर में कन्हैयालाल की हत्या पर मौन रहा, लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ को शनिवार की रात को कोर्ट बंद होने के बावजूद तुरंत बेंच गठित करके ज़मानत दे देता है, पवन खेड़ा को देश के प्रधानमंत्री का अपमान करने पर हाथोंहाथ ज़मानत दे देता है, सरकार द्वारा कॉलेजियम सिस्टम को समाप्त करने की कोशिशों पर सरकार को गरियाता है और अब सुप्रीम कोर्ट स्वयं को कार्यपालिका से ऊपर समझने और सरकार को नीचा दिखाने के हरसंभव प्रयास कर रहा है।

धारा 370 समाप्त करने का भारतीय जनता पार्टी का वर्षों पुराना चुनावी वादा था जो कि उसने पूरा करके दिखाया, 370 समाप्त होने के बाद से जम्मू कश्मीर में अब हालात सामान्य हो चले हैं, वहाँ टूरिस्ट वापस आने लगे हैं, बाज़ार, होटल, शिकारे फिर से गुलज़ार होने लगे हैं, जिस व्यक्ति ने कभी 370 हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी वो अपनी याचिका वापस ले चुका है और ट्वीट कर रहा है अब कश्मीर में सब कुछ सामान्य हो रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसी हफ्ते इस मुद्दे पर फिर से सुनवाई करेगा।

इसी तरह दिल्ली सरकार को अपने अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने, सबूत मिटाने के लिये ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार चाहिए थे, वो भी उसे दे दिये गए थे लेकिन केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिससे बौखलाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री के उलजलूल, निहायती बदतमीज़ी भरे बयान आए दिन देखने को मिल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर भी 10 जुलाई को दिल्ली सरकार की रिव्यु पिटीशन पर सुनवाई करेगा।

ये देखना अब दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसले देता है और उन पर सरकार क्या एक्शन लेती है।

क्रिकेट में अंपायरिंग विवाद भले खत्म हो गए हों परंतु भारत के सिस्टम में इस मामले में थर्ड अंपायर की नियुक्ति होना बाकी है।

आगे आगे देखिये होता है क्या!!

ताकि सनद रहे, वक्त ज़रूरत काम आवै।
✍️ Harshall Khairnar