धर्म

हक़ीक़त को समझ लेने के बाद कौन है जो आमाल के नतीजों से इंकार करेगा और रसूल (स०) की तालीम को झुठलाएगा!

Farooque Rasheed Farooquee
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. सूरै अत्तीन (मक्की) – 95 (आयतें-8)
अल्लाह के नाम से जो रहमान और रहीम है।

इंजीर और ज़ैतून, सैना का पहाड़ और अमन वाला शहर मक्का गवाह हैं कि हमने इंसान को बेहतरीन सूरत में पैदा किया। फिर उसको बुरे से ज़्यादा बुरी ( बद् से बद्तर) हालत में फेंक दिया। मगर वह लोग जो ईमान लाए और (जिन्होंने) नेक अमल तो उनके अमल के नतीजे सिर्फ़ बेहतरी ही के लिए हैं। उनके नेक अमल का बदला कभी ख़त्म न होगा, हमेशा फल देगा। इसलिए इस हक़ीक़त को समझ लेने के बाद कौन है जो आमाल के नतीजों से इंकार करेगा और उसके बारे में रसूल (स०) की तालीम को झुठलाएगा। क्या सबसे बड़ा हुक्म देने वाला ख़ुदा ही नहीं है? (जिसके इनाम और सज़ा के क़ानून में कभी बदलाव नहीं हो सकता।) (1 – 😎

तफ़्सीर – अल्लाह ने फ़रमाया कि इंसान मुकम्मल नेकी है और कोई ताक़त उसमें ऐसी नहीं रखी गई जिसमें बुराई का बीज हो। वह सिर्फ़ नेकी ही लेकर दुनिया में आता है, नेकी के लिए पैदा किया गया है और सिर्फ़ नेकी के लिए उसको सब कुछ दिया गया है। नेकी इंसान की फ़ितरत है और बुराई बाहरी असर है। वह अस्वभाविक है, ग़ैर- फ़ितरी है। बीज एक ही दिया गया है। जब वह उभरता है तो उसे नेकी कहा जाता है और जब उस बीज को दबा दिया जाता है तो बुराई पैदा होती है।

इस सूरत में इंसान के ऊंचे दर्जे और भलाई का एलान है। इंसान की हस्ती ऐसी नहीं है कि वह कायनात के हर वुजूद के आगे सर झुकाए और किसी के चमत्कार के आगे ख़ुद को बेबस समझ ले। अगर इंसान अपनी सच्ची फ़ितरत को बुरे अमल से ख़राब न करे तो वह दुनिया की बड़ी-से-बड़ी कामयाबी और इज़्ज़त हासिल कर सकता है।

अल्लाह का क़ानून है कि बीज फल लाता है। इसी तरह इंसान के आमाल का भी नतीजा होता है। अगर आमाल अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ हैं तो बड़ाई और नेकी हासिल होगी। लेकिन अगर उसने अपनी फ़ितरत को खो दिया है तो बद् से बद्तर हो जाएगा। नेक अमल करने वाले अपनी फ़ितरत को चमकाने वाले हैं। नेक अमल का दरख़्त हमेशा फल देगा।

इंजीर और ज़ैतून के ज़रिए मुल्क-ए- शाम की सरज़मीन की तरफ़ इशारा है जहां हज़रत ईसा वुजूद में आए और जो बहुत-से नबियों की जगह है। सीनीन का मतलब सैना का पहाड़ है जिसमें हज़रत मूसा की दावत की तरफ़ इशारा है। बलद-ए-अमीन यानी हमेशा अमन में रहने वाला घर ख़ाना-ऐ-काबा है और इसमें हज़रत इब्राहीम की दावत की तरफ़ इशारा है।
(फ़ारूक़ रशीद फ़ारुक़ी)

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. ईमान वालों से एक सवाल

‘वंदेमातरम् ‘ का अर्थ है, “हे मातृभूमि मैं तेरी पूजा करता हूॅं।” एक अल्लाह पर ईमान रखने वाले और एक अल्लाह की पूजा या इबादत करने वाले मुसलमान ख़ुद फ़ैसला करें कि क्या वो ‘वन्देमातरम्” कहने के बाद और ‘वंदेमातरम’ पर ईमान लाने के बाद मुसलमान या ईमान वाले रह जायेंगे???

‘وندے ماترم’ کا مطلب ہے، “ایے مادر وطن میں تیری عبادت کرتا ہوں۔’ ایک اللہ پر ایمان رکھتے والے اور ایک اللہ کی عبادت کرنے والے مسلمان خود فیصلہ کریں کہ ‘وندے ماترم’ کہنے کے بعد اور ‘وندے ماترم’ پر ایمان لانے کے بعد کیا وہ مسلمان یا ایمان والے رہ جائیں گے؟؟؟