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हमारे बैंकिंग सेक्टर ने पिछली सरकार के दौरान बर्बादी को देखा, झेला और अनुभव किया है : PM मोदी

शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फ़िर पिछली यूपीए सरकार पर हमलावर हुए. उन्होंने रोज़गार मेले को संबोधित करते हुए कहा कि उसके दौर में बैंकिंग सेक्टर ने बर्बादी को देखा, झेला और अनुभव किया.

उन्होंने कहा, “जब सत्ता का स्वार्थ राष्ट्र हित पर हावी होता है तब कैसी बर्बादी होती है, कैसा विनाश होता है इसके देश में कई उदाहरण हैं. ये हमारे बैंकिंग सेक्टर ने तो पिछली सरकार के दौरान इस बर्बादी को देखा, झेला और अनुभव किया है.”

वे बोले, “अर्थव्यवस्था के विस्तार में हमारे बैंकिंग सेक्टर की बहुत बड़ी भूमिका होती है. आज भारत उन देशों में से है जहां का बैंकिंग सेक्टर सबसे मजबूत माना जाता है. लेकिन 9 वर्ष पहले ऐसी स्थिति नहीं थी.”

“आज डिजिटल युग है, मोबाइल बैंकिंग करते हैं लेकिन आज से 9 साल पहले फ़ोन बैंकिंग की कल्पना, रिवाज़, तरीक़े, इरादे अलग थे. उस जमाने में ये फ़ोन बैंकिंग मेरे आपके जैसे सामान्य नागरिकों के लिए नहीं था. देश के 140 करोड़ देशवासियों के लिए नहीं था. उस समय एक ख़ास परिवार के क़रीबी, कुछ ताक़तवर नेता बैंकों को फ़ोन कर के अपने चहेतों को हज़ारों करोड़ रुपये के लोन दिलवाया करते थे. ये लोन कभी चुकाया नहीं जाता था. और क़ाग़जी कार्रवाई होती थी. एक लोन को चुकाने के लिए फ़िर बैंक से फ़ोन कर के दूसरा लोन, दूसरा लोन चुकाने के लिए फ़िर तीसरा लोन दिलवाना. ये फ़ोन बैंकिंग घोटाला पिछली सरकार के सबसे बड़े घोटालों में से एक था.”

पीएम मोदी ने कहा कि इसकी वजह से देश के बैंकिंग व्यवस्था की क़मर टूट गई थी. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने सरकारी बैंकों के मैनेजमेंट को सशक्त किया है ताकि आम नागरिकों का विश्वास पक्का हो.

उन्होंने कहा, “पहले की सरकार के इस घोटाले की वजह से देश की बैंकिंग व्यवस्था की क़मर टूट गई थी. 2014 में आप सब ने हमें सरकार में आ कर देश की सेवा करने का अवसर दिया. 2014 में सरकार में आने के बाद हमने एक के बाद एक क़दम उठा कर इस स्थिति से बैंकिंग सेक्टर और देश को मुसीबतों से निकालने का काम शुरू किया. हमने सरकारी बैंकों के मैनेजमेंट को सशक्त किया.”

पीएम मोदी ने कहा, “हमने देश में छोटे छोटे बैंकों को जोड़ कर बड़े बैंकों का निर्माण किया. हमने ये सुनिश्चित किया कि बैंक में सामान्य नागरिक की पांच लाख रुपये तक की राशि कभी न डूबे. कई कोऑपरेटिव बैंक डूबने लगे थे. आम नागरिकों के मेहनत का पैसा डूब रहा था. लिहाजा बैंकों के प्रति सामान्य नागरिकों का विश्वास पक्का करना बहुत ज़रूरी हो गया था.”