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हमास के ख़िलाफ़ अंधा समर्थन नहीं देने के लिए चीन से नाराज़ हैं इस्राईल और अमरीका : रिपोर्ट

हमास के अल-अक़सा स्टॉर्म ऑप्रेशन के बाद, अमरीका और पश्चिमी देशों ने हमेशा की तरह ज़ायोनी शासन का अंधा समर्थन किया और इस्राईल को सैन्य उपकरणों और अधिक हथियारों की आपूर्ति शुरू कर दी।

इसके बावजूद, विश्व की दो प्रतिद्वंद्वी महाशक्तियों रूस और चीन ने अलग ही स्टैंड लिया और फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों की उपेक्षा को मौजूदा स्थिति के लिए ज़िम्मेदार क़रार दिया है।

रूस के विदेश मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान जारी करके कहाः मास्को का मानना है कि फ़िलिसतीनी प्रतिरोधी गुटों और इस्राईल के बीच तनाव में वृद्धि का कारण, संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का नज़र अंदाज़ किया जाना है।

वहीं चीन ने भी अल-अक्सा स्टॉर्म ऑपरेशन की निंदा करने से इंकार कर दिया है। हालांकि पश्चिमी देशों ने बीजिंग पर दबाव बनाया, लेकिन चीनी अधिकारियों ने इस पर निष्पक्ष रूख़ अपनाया है। रविवार को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने फ़िलिस्तीन में मौजूदा तनाव और हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया था कि संकट से निकलने का मुख्य रास्ता दो-राष्ट्रों के निर्माण का कार्यान्वयन और एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना है।

इस प्रकार, रूस की तरह, चीन ने भी एकपक्षीय रुख़ अपनाने के बजाय, फ़िलिस्तीनी मुद्दे के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के आधार पर समाधान करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

चीन के विदेश मंत्रालय ने हमास और इस्राईल के बीच तुरंत युद्ध विराम और शांति की स्थापना पर बल दिया है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने फ़िलिस्तीनी मुद्दा, मध्यपूर्व के विवादों की जड़ है और इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित फ़िलिस्तीनी जनता हो रही है।

चीन के इस रुख़ पर ज़ायोनी अधिकारियों ने निराशा जताई है। इस संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ सू-युंग का कहना हैः इस्राईलियों को आशा है कि हमास के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया उनके पीछे आकर खड़ी हो जाए, हालांकि पिछले 7 दशकों से ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों का किसी तरह का कोई सम्मान नहीं किया और उनके मौलिक अधिकारों की पैरों तले रौंद दिया। ज़ायोनी अधिकारियों ने अमरीका और पश्चिम के समर्थन से फ़िलिस्तीनियों की आवाज़ को हमेशा के लिए दबाने का अथक प्रयास, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो पाए।

आज दुनिया की स्थिति पूर्व दो दशकों की तरह नहीं है। इसमें कोई शक नहीं है कि अमरीका कमज़ोर पड़ता जा रहा है और शक्ति का संतुलन, पश्चिम से पूरब की ओर झुक रहा है। ज़ायोनी अधिकारी अब अमरीका की तरह चीन और रूस को ब्लैकमेल नहीं कर सकेंगे और स्वतंत्र रूप से फ़िलिस्तीनियों का दमन नहीं कर सकेंगे। उन्हें अब अपने हर अपराध का जवाब देना होगा और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन करना सीखना होगा।

चीन के इस रुख़ की वजह से न सिर्फ़ इस्राईल, बल्कि अमरीका भी उससे नाराज़ है। लेकिन बीजिंग ने उनकी नाराज़गी की परवाह किए बिना फ़िलिस्तीन को लेकर वही रुख़ अपनाया है, जो सही है और इस तरह से उसने साबित कर दिया कि वह इतिहास की सही दिशा में खड़ा है।