साहित्य

हम इतने बेवकूफ़ नही…..जाओ मौज करो…..

Tajinder Singh
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हम इतने बेवकूफ नही…..
एक दिन एक मित्र दो नारियल खरीद कर घर जा रहा था। एक बड़ा नारियल घर मे चटनी बनाने के लिए और एक छोटा नारियल ऊपरवाले पर चढ़ाने के लिए।
आपने भी देखा होगा धर्म स्थलों के बाहर कभी अच्छे और बड़े नारियल नही मिलते। यही हाल देसी घी का है। खाने के लिए अलग और ऊपरवाले का दिया जलाने के लिए अलग।
मुझे याद नही बचपन मे कभी मां ने दिवाली पर दिए जलाने के लिए अलग तेल मंगाया हो। खाने वाले सरसों तेल से ही दिए जलाए जाते थे। मुझे कुछ साल पहले ही पता लगा कि दिए जलाने के लिए अलग तेल होता है।
6 साल पहले मुम्बई की मशहूर हाजी अली दरगाह पर गया। लोगों ने बताया कि यहां चादर चढ़ाने का रिवाज है। इससे सवाब मिलता है। यहां 70 रुपये में चादर मिल जाती है। मैंने सोचा 70 रुपये में ढंग का तौलिया नही मिलता और यहां चादर मिल रही है। सवाब जब इतने सस्ते में मिल रहा हो तो कौन नही लूटना चाहेगा।
सब तरह लूट ही लूट है। कहीं लोग सवाब लूट रहे हैं तो कहीं राम नाम की लूट है।
धर्म स्थल पर चादर/रुमाला चढ़ाना, दर्शनों के लिए पैसे देना, बोली लगा कर आरती का अधिकार प्राप्त करना। एक लाख, दो लाख दिए जलाने का रिकॉर्ड बना देना। पैसे पर लोगों को बुला कर कथा/पाठ करवा देना। धार्मिक कथाएं सुनना। व्रत, उपवास, रोजा….रखना।
मुझे हैरानी होती है कि कैसे लोगों के दिमाग मे ये बात घर कर गयी कि इस सब से पुण्य/सवाब मिलेगा।
हमने पुण्य भी लूटना है और धेला भी कम खर्च करना है। आखिर हम किसे बेवकूफ बना रहे हैं?
खुद को? या उस ऊपर वाले को? जिसकी उपस्थिति से ही बुद्ध ने इनकार किया।
मेरा विश्वास है कि धार्मिक स्थलों से अपनी रोजी रोटी कमाने वाला हर शख्स बाहर से भले जिस भी धर्म का हो लेकिन अंदर से वो एक बौद्ध ही होता है। क्योंकि वो बुद्ध की इस बात को अच्छी तरह जानता है कि….
“कहीं कोई ईश्वर नही है”
क्योंकि अगर कहीं कोई होता तो सबसे पहले उसकी दुर्गति करता जो उसके नाम का मनमाना और बेजा इस्तेमाल करता है। अफसोस तो इस बात का है कि जिस बुद्ध ने ऊपरवाले के अस्तित्व से इनकार किया। उसे भी इन्होंने भगवान बना डाला…. 10वां अवतार।
आज बुद्ध पूर्णिमा है, महात्मा बुद्ध का जन्म दिवस और उनकी ज्ञान प्राप्ति का दिन भी। बुद्ध को, महावीर को और नानक जैसे महापुरुषों को ज्ञान मिला। लेकिन उनके बाद ये ज्ञान की गंगा कहाँ विलुप्त हो गयी।
दरअसल हमने उनके ज्ञान को किनारे रख उनका जन्मदिन मनाने की परम्परा विकसित कर ली। उनके ज्ञान की तरफ तो हम, भूल कर भी, झांकते तक नही हैं।
इस कलयुग में हम उनके ज्ञान की तरफ देंखे, उसके अनुसरण की बात करें…….हम इतने बेवकूफ नही।
HAPPY BUDDHA PURNIMA

Tajinder Singh
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जाओ मौज करो…..
एक बार की बात है कि हमारे साहब बहादुर यानी वड्डे साहब अपने लाव लश्कर के साथ कहीं से गुजर रहे थे। उनका पूरा अमला और कैमरा मैनों की टोली भी साथ चल रही थी।
एक जगह वड्डे साहब की नजर किसी खास दृश्य पर अटक गई। उन्होंने तत्काल हाथ उठा कर इशारा किया। पूरा लश्कर रुक गया…कैमरा मैन सजग हो गए। साहब गाड़ी से उतरे और रोड से कुछ दूरी पर बैठे हुए एक आदिवासी परिवार की तरफ चल दिये।
कैमरा रोल होना शुरू हो चुका था। क्योंकि चाटुकार मीडिया जरूरत पड़ने पर लाइव भी जा सकता था।
साहब बहादुर अब उस आदिवासी परिवार के पास पहुंच चुके थे। कैमरा अब पूरी तरह से उन पर केंद्रित था। उस गरीब परिवार को देख साहब का मन द्रवित हो उठा। उनकी आंखें भर आईं।
उफ, इतनी गरीबी! ये परिवार खुले में लगी सूखी घास खाकर अपना पेट भर रहा था। साहब से ये दृश्य देखा नही गया। उनका दिल पसीज आया। उनके मन मे दया आ गयी।
उन्होंने परिवार के मुखिया के कंधे पर एक आश्वस्ति भरा हाथ रखा और अपने सहायकों से कहा “मुझसे इसका दर्द देखा नही जा रहा। इन्हें पिछली गाड़ी में बैठाओ और मेरे घर ले चलो।”
साहब की बात सुन परिवार के मुखिया की आंखों में आंसू आ गए। उसने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा “आप बहुत दयालु हैं।”
चाटुकार मीडिया अब लाइव आ चुका था। साहब की छवि चमकाने का इससे सुनहरी मौका और क्या मिलना था। मीडिया अपने काम मे लग गया।
साहब का पूरा लश्कर अब वापस घर की तरफ लौट रहा था। मुख्य गेट से साहब और उनके पीछे उस परिवार को लिए गाड़ी ने प्रवेश किया। पोर्टिको में अपनी खड़ी गाड़ी से उतर साहब ने पीछे खड़ी गाड़ी का दरवाजा खोल परिवार के मुखिया को बाहर आने के लिए कहा।
कैमरे के फ्रेम में अब केवल साहब और वो व्यक्ति था। सभी लोग उत्सुकता से साहब के अगले कदम का इंतजार कर रहे थे।
साहब ने उस कृशकाय से व्यक्ति के कंधे पर प्यार से हाथ रखा और बोले “मेरे यहां तुम्हे खाने की कोई दिक्कत नही होगी। आराम से रहो और जितना चाहो खाओ।”
फिर उन्होंने अपने विशाल लॉन में लगी लम्बी लम्बी हरी घास की तरफ इशारा करते हुए कहा
“जाओ, मौज करो!”