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हरियाणा हिंसा की कहानी : “उन्होंने हमसे पूछा कि हम हिंदू हैं या मुस्लिम? जब हमने कहा कि हम मुस्लिम हैं, तो….!!!

“उन्होंने हमसे पूछा कि हम हिंदू हैं या मुस्लिम? जब हमने कहा कि हम मुस्लिम हैं, तो वे नाराज़ हो गए और उन्होंने हमें शहर छोड़ने की धमकी दी. उन्होंने हमसे कहा- शाम चार बजे तक शहर छोड़ दो.”

ये कहना है हरियाणा की औद्योगिक नगरी गुरुग्राम के सेक्टर 70ए में रहने वाली अकलीमा का.

अकलीमा उन तमाम प्रवासी मज़दूरों के परिवारों में से एक हैं जिनका आरोप है कि इलाक़े में सक्रिय कट्टर दक्षिणपंथी समूहों से उन्हें शहर छोड़ने की धमकी मिल रही है, इसलिए वे पलायन को मजबूर हैं.

उनके मुताबिक डराने-धमकाने की ये घटनाएं, सोमवार को गुरुग्राम से 50 किलोमीटर दूर नूंह ज़िले में भड़की हिंसा के बाद शुरू हुईं. दूसरे दिन तक ये हिंसा गुरुग्राम तक फैल गई थी.

मंगलवार को शहर के सेक्टर 57 की एक मस्जिद में आग लगा दी गई और भीड़ के हमले में मस्जिद के नायब इमाम की मौत हो गई.

लोगों का आरोप है कि मंगलवार को ही सेक्टर 70 में पालदा गांव के पास लगभग 20-25 लोग एक झुग्गी-बस्ती में आए और उन्होंने इलाक़ा खाली करने की चेतावनी दी.

हालांकि पुलिस अधिकारियों का दावा है कि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इलाक़े में गश्त को बढ़ा दिया है.

पुलिस अधिकारियों ने पलायन की ख़बरों का खंडन करते हुए कहा, “किसी ने भी जगह नहीं छोड़ी है और लोग अपनी जगहों पर रुके हुए हैं.”

नूंह से शुरू हुई इस सांप्रदायिक हिंसा में छह लोगों की मौत की पुष्टि हुई जिनमें होमगार्ड के दो जवान भी शामिल हैं.

‘यहां रहना सुरक्षित नहीं’
गुरुग्राम के जिन इलाक़ों में प्रवासी मजदूर रहते हैं, गुरुवार को जब बीबीसी ने वहां दौरा किया तो ऐसे लोग मिले जो अपना घर छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे थे.

हमें पांच सदस्यों वाला एक प्रवासी मुस्लिम परिवार मिला जो टैक्सी में अपने घर का सामान रख रहा था और यहां से जाने की तैयारी कर था.

परिवार की महिला सदस्य ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, “हम जा रहे हैं क्योंकि अभी यहाँ हम असुरक्षित हैं. हम नहीं जानते कि क्या होगा और हम किसी भी हालत में हमले का शिकार नहीं होना चाहते.”

परिवार के एक अन्य सदस्य ने बताया कि वे पश्चिम बंगाल के मालदा स्थित अपने घर वापस जाने के लिए ट्रेन लेंगे.

इस झुग्गी-बस्ती के लगभग सभी निवासी पश्चिम बंगाल के गांवों से हैं. झुग्गी में ये परिवार लकड़ी के तख्तों और एस्बेस्टस शीट से बने घरों में रहते हैं.

इस छोटी-सी कॉलोनी के बीच खुला मैदान है जहां लोग अपने रिक्शा और अन्य वाहन खड़ा करते हैं.

‘इलाक़ा खाली करने की धमकी’
यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि अभी पलायन शुरू होने से पहले यहां प्रवासी मज़दूरों के लगभग 600 परिवार रहते थे, जिनमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे.

जो परिवार यहां से जा चुके हैं, उनके अस्थायी घरों पर ताला लटका है और उनके रिक्शे और अन्य वाहन उन्होंने खुले में रख छोड़े हैं.

कई लोगों ने बताया कि इलाक़े में डर का माहौल है और अधिकांश लोग काम पर नहीं जा पा रहे.

पास के अपार्टमेंट में हाउसकीपर के रूप में काम करने वाले 29 साल के मसीरुल कहते हैं, “पिछली रात कई बाइक सवार हाथों में लाठियां और हथियार लेकर यहां आए थे. वे चिल्ला रहे थे कि हमें इलाक़ा खाली कर देना चाहिए. मेरा काम पूरी तरह से ठप हो गया है. मैं भी जाना चाहता हूँ.”

मसीरुल की मां परवीना ने बताया कि परिवार ने फिलहाल गुरुग्राम से दूर जाने का फ़ैसला किया है, “मैं अपने बेटे को इसमें नहीं फंसा सकती, इसलिए हम यहां से दूर किसी रिश्तेदार के यहां चले जाएंगे.”

‘डर की वजह से काम पर नहीं जा रहे’

लेकिन दिहाड़ी या छोटे-मोटे काम करने वालों में कम ही लोग ऐसे हैं जो अपने गांव तक की लंबी यात्रा के लिए पर्याप्त पैसा जुटा सकें. बहुत से ऐसे लोग हैं जो इतने सक्षम नहीं हैं.

कूड़ा बीनने वाले तुफ़िज़ुल का कहना है कि उनके परिवार के पास घर जाने के लिए पैसे नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “सोमवार को जबसे हिंसा शुरू हुई, हम हमला होने के डर से काम नहीं कर पा रहे हैं. हमारे पास खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं, घर वापस जाना तो भूल ही जाइए.”

वहीं, 23 साल के कैब ड्राइवर रकीबुल का कहना है कि गुरुवार को जब वह काम पर जा रहे थे तो कुछ लोगों ने पहचान के आधार पर उनके साथ मारपीट की.

रकीबुल कहते हैं, “उन्होंने मुझसे मेरी पहचान पूछी. जब मैंने उन्हें अपना नाम बताया तो उन्होंने मुझे थप्पड़ और लात मारना शुरू कर दिया. मेरे पास फिर से घर वापस भागने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.”

ऐसा नहीं है कि इन हमलों के बारे में प्रशासन बेखबर है.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने एक व्यक्ति को पीटने के मामले में चार-पांच लोगों पर एफ़आईआर दर्ज की है. उस पर हमला तब हुआ जब वो काम के बाद पास की सोसायटी वापस लौट रहे थे.

एफ़आईआर बादशाहपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी, जो सेक्टर 70ए से आठ किलोमीटर दूर एक छोटा सा इलाका है. यहां भी एक बड़ी झुग्गी-बस्ती है.

‘कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है’
बादशाहपुर की झुग्गी-बस्ती में रह रहे हिंदू और मुसलमान दोनों परिवारों का कहना है कि वे सद्भाव से रहते हैं. दोनों को ही अब इन हमलों का डर सता रहा है.

यहां रहने वाले रंजीत पेशे से पेंटर हैं. वो कहते हैं, “अगर बात बढ़ी तो हम भी घर जाने के बारे में सोचेंगे. मैं सड़कों पर जाने से भी डरता हूं क्योंकि उनका कहना है कि कुछ लोग इस इलाक़े को छोड़ कर चले जाएं.”

यहां रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें उनके मालिक की ओर से सुरक्षा का आश्वासन दिया जा रहा है.

राजमिस्त्री रहमान का कहना है कि इलाक़े में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद की मौजूदगी को देखते हुए उनकी कंपनी के मालिक ने सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पुलिस से दरख़्वास्त की है.

बीबीसी ने मालिक से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

बस्ती में रहने वाले एक हिंदू निवासी तपस कहते हैं, “हम चाहते हैं कि यह स्थिति सुलझ जाए, ताकि हम काम पर वापस जा सकें. हम सभी ने एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है और हम चाहते हैं कि हालात पटरी पर लौटे.”

गुरुग्राम दिल्ली एनसीआर का ही नहीं बल्कि देश का प्रमुख औद्योगिक शहर है. देश की अग्रणी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजु़की और दुपहिया वाहन निर्माता कंपनियों होण्डा, हीरो, सुज़ुकी बाइक आदि के यहां बड़े-बड़े प्लांट हैं.

गुड़गांव में देश-विदेश की कई जानी-मानी कंपनियों के मुख्यालय भी हैं. यहां प्रवासी मज़दूरों की भी अच्छी खासी आबादी है जो आजीविका के लिए देश के कोने-कोने से यहां आकर रहते हैं.

लॉकडाउन में भारी परेशानी उठा चुके इलाक़े के प्रवासी मज़दूरों को इस सांप्रदायिक हिंसा से एक बार फिर दर-बदर होने का डर सता रहा है.

गुरुग्राम तक कैसे फैली हिंसा?
नूंह ज़िले में झड़प की शुरुआत तब हुई जब ये अफ़वाह फैल गई कि 31 जुलाई को एक हिन्दू धार्मिक जुलूस में फ़रार गौ रक्षक मोनू मानेसर भी शामिल होने वाले हैं.

मोनू मानेसर भिवानी में दो मुस्लिम युवकों जुनैद और नासिर की हत्या के मुख्य अभियुक्त हैं. यह हत्या इसी साल फ़रवरी महीने में हुई थी. मोनू मानेसर बजरंग दल से जुड़े हुए हैं.

जुलूस में मोनू मानेसर के शामिल होने की अफ़वाह के बाद स्थिति बिगड़ गई और पत्थरबाज़ी शुरू हो गई. इसके बाद कई दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया.

सोमवार शाम को गुरुग्राम के सोहना इलाक़े में भी हिंसा हुई और यहां अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोगों की दुकानों को निशाना बनाया गया.

सोमवार को गुरुग्राम की जिस मस्जिद पर हमला हुआ उसके नायब इमाम मोहम्मद साद की हत्या कर दी गई.

नूंह में शुरू हुई सांप्रदायिक हिंसा के शिकार दोनों समुदायों के लोग बने हैं.

नूंह में बजरंग दल से जुड़े एक युवक की भी मौत हो गई. अभिषेक नाम का यह युवक मूल रूप से पानीपत का रहने वाला था और अपने चचेरे भाई के साथ जुलूस में शामिल हुआ था.

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सेराज अली
पदनाम,बीबीसी संवाददाता