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हरि की जगह….”निठल्ला चिंतन”,,,हिंदी में एक शब्द है…भड़वा! यानी औरतों का दलाल, इससे गिरा काम कौन कर सकता है!!

Tajinder Singh
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हरि की जगह….(निठल्ला चिंतन)

आज अगर कमाना है, कुछ बड़ा करना है तो कुछ उत्पादन करने की जरूरत नही, जरूरत है दलाली करने की। इन दलालों के नाम बड़े आकर्षक हो सकते हैं लेकिन इन सब का काम एक ही है।

खेती किसानी को देख लीजिए, किसानों की आय घट रही है और मंडी में बैठा दलाल बिना कोई मेहनत किये कमा रहा है। बाढ़ सूखे से भी दलाल को कोई दिक्कत नही। इसकी मार बेचारा किसान झेले।

ओयो होटल वालों का एक होटल नही लेकिन दलाली से मालामाल हैं। यही हाल उबेर और ओला का है। अगर दो चक्कीय वाहन चाहिए तो रपिडो दलाल से सम्पर्क कीजिये। दुनिया की सबसे मशहूर कम्पनी एप्पल का अपना कोई प्लांट ही नही। बने बनाये सामान को असेम्बल करवा कर अपना ठप्पा लगा दिया। लोग पागल हैं इसके लिए। क्या प्रतिष्ठा है भाई इस मिडिल मैन की??

बात अगर प्रतिष्ठा की हो तो पतंजलि से आगे कौन। अच्छे अच्छे धंधे के उस्तादों की इसने छुट्टी कर दी। लेकिन ये भी कुछ ऐसा ही करती है। सामानों का एक मानक तय कर सामान मंगवाती है और उसपर अपनी मोहर लगा अपनी गुडविल का लाभ उठाती है।

मनी और इन्शुरन्स मार्किट को ही लीजिए। इन्वेस्टमेंट एडवाइजर जैसे भारी भरकम नाम वाले आपके पैसे और जीवन की सुरक्षा कर अपना जीवन संवार लेते हैं। मजा ये की ये अपने लिए नही बल्कि आपके भविष्य के लिए मांगते हैं। खैर सब दलाली करें तो करें लेकिन अपनी तो सरकार भी यही कर रही है। रूस से सस्ता तेल खरीद यूरोप को बेच रही है। हर लगे न फिटकरी….। अब दलाली से बढ़िया और मजा कहाँ। इसीलिये अगस्ता वेस्टलैंड हो, बोफर्स हो या हो
राफेल। दलाली के छींटे तो हमारे माननीयों की खादी पर भी पड़े हैं।

हिंदी में एक शब्द है…भड़वा। यानी औरतों का दलाल। इससे गिरा काम कौन कर सकता है। इसे कभी मजबूर औरतों पर तरस नही आता। औरतों की मजबूरी ही इसकी कमाई है। जो स्त्री जितनी मजबूर..उतनी इसकी कमाई।

आप जन्म मृत्य प्रमाणपत्र या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे सामान्य काम के लिए किसी सरकारी कार्यालयों में चले जाइये। वहां आपको इन दलालों का विराट स्वरूप नजर आएगा। अपनी दिव्य शक्ति से ये आपका काम चुटकियों में करवा देंगे। आपको राग दरबारी का वो व्यक्ति याद है जो एक नकल निकलवाने के चक्कर मे कोर्ट में एड़ियां घिसते घिसते स्वर्ग सिधार जाता है। भले उसने कोर्ट में किसी दलाल को न पकड़ खुद नकल निकालने की जिद ठानी हो लेकिन मृत्यु के बाद इन दलालों से उसे मुक्ति नही मिली होगी।

अब क्या करें मौसी…दलाली है ही ऐसी गन्दी चीज। रहम और दलाली एक साथ सम्भव ही नही। घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या।
दरअसल मौसी दलाली तो हमारे तो खून में ही है। ये धंधा तो 5000 साल पुराना है। पैदा होने के दिन से लेकर मृत्यु तक दलालों से मुक्ति नही। येन केन प्रकारेण आपकी सीट स्वर्ग में पक्की कराने का हर हथकंडा इनके पास है। और अगर सचमुच में आप कहीं इस फानी दुनिया से कूच कर गए तो मृत्यु के बाद श्मशान घाट पर भी नही छोड़ेंगे और तो और हर साल पितृपक्ष पर स्वर्ग में अजर अमर आत्मा को भोजन खिलाने के नाम पर चले आएंगे।
मैंने इनकी महिमा का बखान कम ही किया है। लेकिन आप अधिक समझना। वो क्या कहते हैं…….
“सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।

धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ॥”

आप बस कबीर जी के इस दोहे में “हरि” की जगह वही लिख दीजिए।

मधुसूदन उपाध्याय
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सावन में यह कहानी सुनें दुबारा
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गायत्री बाबा प्रतिदिन सरयू स्नान के लिए जाया करते थे। मार्ग में एक गाँव पड़ता था। ब्राह्मण और क्षत्रिय कृषक लोग उसमें रहा करते थे। जिस रास्ते से गायत्री बाबा जाया करते थे, उसमें एक विधवा ब्राह्मणी की भी झोंपड़ी पड़ती थी। महामुनि जब भी उधर से निकलते विधवा या तो चरखा कातते मिलती या धान कूटते।
पूछने पर पता चला कि उसके पति के अतिरिक्त घर में आजीविका चलाने वाला और कोई नहीं था। वे किसी बंगालन जादूगरनी के पीछे प्राण गंवा बैठे और अब सारे परिवार का भरण-पोषण उसी को करना पड़ता है। एक ही पुत्र है, वह अभी अबोध है। अतीव वृद्धावस्था के सास-ससुर की सेवा सुश्रुषा की महती जिम्मेदारी भी है।
गायत्री बाबा को उसकी इस अवस्था पर बड़ी दया आई। उन्होंने उसके पास जाकर कहा,
“भद्रे! मैं इस आश्रम का अध्यक्ष हूँ। मेरे कई शिष्य राज-परिवारों से संबंध रखते हैं, तुम चाहो तो तुम्हारे लिए आजीविका की स्थायी व्यवस्था कराई जा सकती है। तुम्हारी असहाय अवस्था मुझसे देखी नहीं जाती।”
परन्तु कष्टों ने ब्राह्मणी का शरीर छीना था, उसका आत्मसम्मान और आत्मविश्वास अब भी वह्निशिखा के समान देदीप्यमान थे।
गंभीर स्वर में उसने बाबा को उत्तर दिया…
“महाराज! आपकी असीम कृपा और करुणा से आज भी दो जून की रोटी में कोई समस्या नहीं। और जिस दिन न मिले, एकादशी हो जाती है।
अब गायत्री बाबा पिघलने लगे….बोले
“पुत्र को बुलाओ..
तीन चार वर्ष का गौरांग बालक महात्मा के समक्ष समुपस्थित हुआ। बाबा ने सर पर हाथ फेरा,
“यहाँ से कुछ दूर पश्चिम दुग्धेश्वर शिव का निवास है वहाँ जा शिव से अपनी बात कह। कल्याण हो जाएगा।”
बालक की माता ने कहा ..”परंतु यह इतना छोटा है ना मंत्र जानता है ना प्रार्थना ना स्तुति और वहाँ छोटी काशी में विद्वानों का जमघट…इसकी बात शिव क्यों सुनेंगे?”
” अरी! मृत्युंजय शिव अघोर उन सभी को मूक आमंत्रण देते हैं,
— जिन्होंने कभी किसी तत्व से प्रेम किया है
— जो, प्रेम की तलाश में भटकते रहे हैं
— जिनके, स्वरों की प्रतिध्वनियाँ चट्टानों से टकराकर लौट आई हैं,
तुझे जो आता है वही बोल देना शिव प्रसन्न होंगे।”
बाबा चल पड़े..
छोटे ब्राह्मण पुत्र कुछ समय पश्चात दुग्धेश्वर शिव के दरबार में पहुंचे। स्तुति शुरू की—-
“अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ॡ
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़)
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
क्ष त्र ज्ञ”
किसी ने मजाक उड़ाया किसी ने मखौल कोई हंसते गिरा.. किसी ने दया दिखाई और तभी चमत्कार हुआ। साक्षात मृत्युंजय महाकाल ने बच्चे को अपने अंक में भर लिया।
यह दिव्य दर्शन मुख्य पुजारी माधवेन्द्र सरस्वती जी को भी उपलब्ध हुआ।
रुद्ध कंठ से सरस्वती जी एक प्रश्न पूछने से स्वयं को न रोक पाए…
“प्रभु वर्षों से रुद्राष्टकम् लिंगाष्टकम् शिवमहिम्नस्तोत्रम तांडवस्तोत्रम रुद्र सूक्तम् पुरुष सूक्तम् की आवृत्तियां करते रहे, यह अहैतुकी कृपा नहीं हुई और हिंदी वर्णमाला पर प्रकट हो गए?”
आकाशवाणी हुई…
“सरस्वती यह उसका सर्वस्व था जो उसने मुझे अर्पित कर दिया।”
माधवेन्द्र सरस्वती अवाक। सामुद्रिक का अद्भुत विद्वान। बालक के पिछले तीन जन्मों का हिसाब लगाने लगे।
अहो! देदीप्यमान साधक। पूर्वजन्मों में त्रिक दर्शन का अभ्यासी रहा।
अहा शैवी माया!
||तत्परं ब्रह्म यत्परं ब्रह्म स एकः य एकः स रुद्रः यो रुद्रः स ईशानः य ईशानः स भगवान् महेश्वरः||
डॉ मधुसूदन उपाध्याय
लक्ष्मणपुरी

डिस्क्लेमर : लेखक के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है