विशेष

हसन खां मेवाती ने बाबर के बजाये राणा सांगा का साथ चुना और 10,000 मेवातियों के साथ शहीद हो गए, किस के लिए??

Syed Yahiya
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जिनके लिए हमारे बुज़ुर्गों ने जान दी आज वो हमारी जान के दुश्मन हैं.
कुछ लोग जो एकता का दम्भ भरते हैं, उनकी करतूतें सामने आ रही हैं. ख़ुद को राणा सांगा का वंशज बताने वाले आज उन मेवों को रास्ते बीच में हथियार दिखा कर परेशान कर रहे हैं जिनके बुज़ुर्गों राजा हसन खां मेवाती (खानज़ादा जादौन राजपूत) ने बाबर के लाख मज़हब का वास्ता देने पर भी अपने रक्त के भाई राणा सांगा का साथ चुना और 10,000 मेवातियों के साथ शहीद हो गए. किस के लिए?? इन्हीं के लिए जो आज सत्ता के लोभ में हमारा खून पीना चाहते हैं.

आज ख़ुद को राणा कहने वाले गरीब मेवों को हवाबाजी के लिए परेशान कर रहे हैं.

ये उनके नहीं हो पाए जिन्होंने इनके लिए हज़ारों सिपाहियों के साथ जान देदी, इस से सीख मिलती है कि आप इस झूठी एकता फरेब के भाईचारे पर जान भी देदें ये आपके कभी नहीं हो सकते. मुसलमान राजपूत इनकी आई में पेश पेश रहे हैं, हमेशा इनका साथ दिया है लेकिन इन्होंने हमेशा धोख़ा दिया है.
#हम_मेवात_के_साथ_हैं


Syed Yahiya
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जब चंगेज खान ने बुखारा की घेराबंदी की, तब उसने एक बार में ही शहर को नहीं रौंद डाला था बल्की उसने एक तरकीब अपनाई, उसने बुखारा शहर के लोगो के नाम एक खत लिखा: “वह लोग जो हमारा देंगे उनकी जान बख़्श दी जाएगी।” ये खबर सुनकर बुखारा शहर के लोग दो हिस्सों में बट गए थे। इनमे से एक गिरोह ने चंगेज खान की बात मानने से इनकार कर दिया, जबकि दूसरा चंगेज़ खान की बात से सहमत हो गया।
इसके बाद चंगेज खान ने अपने साथ हुए लोगो को खबर पहुंचाई की “अगर वह लोग उसके मुख़ालिफ़ हुए लोगो से लड़ने में उसकी मदद करते हैं तो हम आपका शहर आपको सौंप देंगे।”

ये खबर सुनकर उन लोगो ने चंगेज़ खान के आदेश का पालन किया और बुखारा शहर में अपने ही लोगों के बीच भयंकर जंग छिड़ गई। आखिर में, “चंगेज खान के समर्थकों” की जीत हुई।

लेकिन जीतने वाले गिरोह के होश तब उड़ गए जब चंगेज़ खान की फौज ने उनपर हमला बोल दिया और उनका क़त्ल ए आम शुरू कर दिया। और फिर चंगेज खान ने ये शब्द कहे: “अगर ये लोग सच्चे और वफादार होते, तो उन्होंने हमारे लिए अपने भाइयों को धोखा नहीं दिया होता, जबकि हम उनके लिए अजनबी थे”
अरब इतिहासकार इब्न अल-अथिर (1160-1234)
(सैय्यद याहिया)

Syed Yahiya
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पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं के बाद रिटायर्ड पोस्टमैन मनोहर गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र सुनील के बड़े से मकान में आये हुए हैं।
सुनील बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु मां ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि ‘कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे यहीं ठीक है

सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे ठीक है न’ बस बाबूजी की इच्छा मर जाती पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी , इसलिए मनोहर बम्बई आ ही गए हैं सुनील एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर है उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है

घर में घुसते ही मनोहर ठिठक कर रुक गए गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर सुनील बोला – “आइये बाबूजी, अंदर आइये”
“बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी”

– “बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।”

सहमें हुए कदमों में चलते हुए मनोहर जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी – अरे रे! मर गया रे!

उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे मनोहर चिहुँक कर चीख पड़े थे।

चाय पीने के बाद सुनील ने मनोहर से कहा – “बाबूजी, आइये आपको घर दिखा दूँ अपना।”

– “जरूर बेटा, चलो।”

– “बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।”
– “तो बच्चे क्या अपने माँ बाप के साथ नहीं रहते?”

– बाबूजी, यह शहर है और शहरों में मुंबई है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।”

थोड़ा ठहर कर सुनील ने आगे कहा,”बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है। कोई अतिथि आ जाए तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पालतू जानवरों के लिए है। कभी कोई कुत्ता आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।”

सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे सुनील ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा – “बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्र कर दी जाती हैं। और दीवाली- होली पर इसकी सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।”

मनोहर ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ है। मनोहर ने पलट कर सुनील की तरफ देखा किन्तु वह उन्हें वहां अकेला छोड़ सरपट नीचे जा चुका था।

मनोहर उस चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि ‘कैसा यह घर है जहाँ पाले जाने वाले जानवरों के लिए अलग कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। सुनील की माँ की सोच बिल्कुल सही था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।’

अगली सुबह जब सुनील मनोहर के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कक्ष को खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है उधर मनोहर टिकट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे उन्होंने कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर देखा कि उनके ‘अपने घर’ की चाभी मौजूद थी उन्होंने उसे कस कर मुट्ठी में पकड़ लिया चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी और घर पहुँच कर चैन की सांस ली

💐💐#शिक्षा💐💐
दोस्तों,जीवन मे अपने बुजुर्ग माता पिता का उसी प्रकार ध्यान रखे जिस प्रकार माता पिता बचपन मे आपका ध्यान रखते थे,क्योकि एक उम्र के बाद बचपन फिर से लौट आता है इसलिए उस पड़ाव पर व्यस्त जिंदगी में से समय निकाल कर उन्हें भी थोड़ा समय दीजिये,अच्छा लगेगा।
ये किसी का लिखा था मेने कापी किया(s,y, kazmi)

डिस्क्लेमर : लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है