– कुछ महीनों में राज्य में बहुत बड़ी संख्या में जन-आक्रोश रैलियाँ
– कई हिंदूवादी संगठन एकजुट होकर कर रहे हैं आयोजन
– भड़काऊ भाषण और मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की बातें
– कथित लव जिहाद और ‘भूमि जिहाद’ का मुद्दा उठाया जा रहा है
– सत्ताधारी बीजेपी और शिंदे गुट का रणनीतिक समर्थन
– इन रैलियों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में 30 मार्च को एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ की टिप्पणी पर महाराष्ट्र से कई प्रतिक्रियाएँ आईं.
अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा था, “राज्य सरकार नपुंसक है. राज्य सरकार शक्तिहीन है, वह वक़्त पर कार्रवाई नहीं करती. अगर सरकार ख़ामोश ही रहती है, तो फिर हमें इसकी ज़रूरत ही क्या है?”
जस्टिस जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना की बेंच, महाराष्ट्र के अधिकारियों के ख़िलाफ़ अवमानना के एक मामले की सुनवाई कर रही थी. ये अर्ज़ी केरल के रहने वाले एक व्यक्ति ने दाख़िल की थी.
इस याचिका के दाख़िल करने की वजह ये थी कि हाल में महाराष्ट्र में हिंदू संगठनों की रैलियों में जो भाषण दिए गए थे, उनके ख़िलाफ़ अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की थी. याचिकाकर्ता का दावा था कि इन रैलियों में बहुत भड़काऊ भाषण दिए गए थे.
राज्य भर में दर्जनों रैलियाँ कर कौन रहा है?
इस वक़्त ‘हिंदू जन-आक्रोश मोर्चा’ के नाम से आयोजित की गई कई रैलियों पर बहस छिड़ी हुई है. पिछले कुछ महीनों में महाराष्ट्र में ऐसी कई रैलियां का आयोजन हो रहा है.
इनका आयोजन ‘सकल हिंदू समाज’ नाम का एक संगठन कर रहा है. यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने इस पर बेहद तीखी टिप्पणियाँ कीं.
पिछले छह महीनों के दौरान महाराष्ट्र में लगभग 50 ऐसी रैलियाँ आयोजित हो चुकी हैं. अलग-अलग हिंदू संगठनों के नेता और कार्यकर्ता ‘सकल हिंदू समाज’ के झंडे तले इकट्ठे होकर इन रैलियों में शामिल हुए हैं.
राजधानी मुंबई समेत महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों और क़स्बों में हुई इन रैलियों में काफ़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया.
किस तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं?
इन रैलियों में नेताओं और वक्ताओं ने अपने भाषण में कई विवादित धार्मिक मुद्दों को उठाया है.
रैलियों में ‘लव जिहाद’ या फिर ख़ास तौर से हिंदू लड़कियों और मुस्लिम लड़कों के बीच प्रेम विवाह और ‘ज़मीन जिहाद’ यानी खुली ज़मीन पर धार्मिक इमारतों का निर्माण करने जैसे विवादित विषय शामिल हैं.
इसके अलावा, इन रैलियों में मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की अपील भी की गई.
वैसे, सत्ताधारी संगठन के कुछ सदस्यों, जैसे कि बीजेपी और शिवसेना (शिंदे) के नेताओं और कुछ चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भी इन रैलियों में शामिल होते देखा गया है.
मगर, आधिकारिक रूप से बीजेपी और शिंदे गुट ने ख़ुद को इन रैलियों से दूर ही रखा है. कई सामाजिक संगठनों और मुस्लिम समूहों ने इन रैलियों की ये कहते हुए आलोचना की है कि ये सामाजिक सौहार्द्र के ख़िलाफ़ हैं.
क्या ये विधानसभा चुनाव की तैयारी है?
महाराष्ट्र में अगले एक-डेढ़ साल में कई चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में राज्य का सामाजिक और सियासी माहौल बहुत बुरी तरह ध्रुवीकरण का शिकार हो गया है.
ऐसे में कई पर्यवेक्षक सवाल उठा रहे हैं कि आख़िर ये धार्मिक रैलियां इस वक़्त क्यों आयोजित की जा रही हैं.
इन कार्यक्रमों का संचालन बहुत योजनाबद्ध तरीक़े से किया जा रहा है. ये रैलियां न तो अचानक हो रही हैं और न ही कोई छोटा-मोटा संगठन इन्हें इतने बड़े पैमाने पर आयोजित कर सकता है.
मशहूर लेखक और राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशिकर कहते हैं कि ऐसा लगता है कि इसका मुख्य मक़सद गुजरात या कर्नाटक की तरह ‘हिंदू एकता’ क़ायम करना और यहां भी वैसा ही ध्रुवीकरण करना है.
कैसे शुरू हुईं ये रैलियाँ?
‘सकल हिंदू समाज’ ने मुंबई के अलावा, नवी मुंबई, पुणे, कोल्हापुर, नासिक, कराड, सोलापुर, लातूर, नागपुर, छत्रपति संभाजीनगर, धुले, पिंपरी चिंचवाड़, अहमदनगर, जलगांव और दूसरे छोटे क़स्बों में विशाल ‘हिंदू जन आक्रोश मोर्चा’ आयोजित किए हैं.
लेकिन इन सबकी शुरुआत मराठवाड़ा क्षेत्र के परभणी से हुई थी. राज्य में पहली ऐसी रैली पिछले साल 20 नवंबर को परभणी में ही हुई थी.
हालांकि ये रैलियाँ अचानक ही नहीं शुरू हुईं. इसकी शुरुआत श्रद्धा वालकर हत्याकांड के बाद हुई जिसमें मुख्य अभियुक्त एक मुसलमान युवक है.
श्रद्धा, मुंबई के पास वसई की रहने वाली थीं और वो आफताब के साथ लिव-इन में रह रही थीं. दिल्ली पुलिस ने आफ़ताब को पिछले साल नवंबर में ही गिरफ़्तार किया था.
ये संगठन पहली बार ‘सकल हिंदू समाज’ के बैनर तले इकट्ठे हुए थे. पहला जन आक्रोश मोर्चा परभणी में आयोजित किया गया था, जिसका घोषित मक़सद ‘लव जिहाद’ के प्रति जागरुकता पैदा करना था.
पहली रैली में जुटी भीड़ से उत्साहित होकर और मौक़ा मुफ़ीद देखकर, इसके आयोजकों ने पूरे महाराष्ट्र में ऐसी ही रैलियाँ आयोजित करने का फ़ैसला किया.
क्या है बड़े संगठनों की भूमिका?
विश्व हिंदू परिषद के नेता श्रीराज नायर ने फरवरी में बीबीसी मराठी को बताया था, “महाराष्ट्र में लव जिहाद के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. जब हम ज़मीनी स्तर पर काम करते हैं तो कई माँ-बाप हमारे पास शिकायतें लेकर आते हैं.”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद भी ‘सकल हिंदू समाज’ का हिस्सा है यानी इन आयोजनों को आरएसएस और बीजेपी का समर्थन हासिल है.
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन रैलियों में जमा होने वाली भीड़, इनमें लगने वाले नारे, मोर्चा निकाले जाने का रास्ता और इनमें दिए जाने वाले भाषण, सबकी योजना काफ़ी सोच-समझकर तैयार की गई थी.
स्थानीय वक्ताओं के अलावा, महाराष्ट्र के बाहर से भी कई लोग इन रैलियों में भाषण देने के लिए बुलाए गए थे.
तेलंगाना के निलंबित बीजेपी विधायक और भड़काऊ भाषण देने के लिए चर्चित टी राजा सिंह, गुजरात स्थित सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर काजल हिंदुस्तानी, ‘सुदर्शन’ न्यूज़ चैनल के संस्थापक सुरेश चव्हाणके और विवादित धार्मिक नेता कालीचरण महाराज को भी अलग-अलग जगहों पर निकाले गए मोर्चों में आमंत्रित किया गया था.
‘सकल हिंदू समाज’ क्या है?
ये रैलियां ‘सकल हिंदू समाज’ नाम के मंच पर आयोजित की जा रही हैं. ‘जन आक्रोश मोर्चा’ शुरू होने से पहले इस संगठन का नाम शायद ही किसी ने सुना होगा.
इससे पहले महाराष्ट्र में ‘सकल मराठा समाज’ की चर्चा ज़रूर हुई थी, जिसने मराठा समुदाय को आरक्षण की मांग लेकर रैलियां निकाली थीं लेकिन ‘सकल हिंदू समाज’ एक नया मंच है जो इसी उद्देश्य के लिए खड़ा किया गया है.
‘सकल हिंदू समाज’ कई हिंदू संगठनों का एक संयुक्त मंच है. इनमें से कई संगठन आरएसएस से जुड़े हुए हैं. इस मोर्चे में शामिल संगठनों में विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जनजागृति समिति, सनातन संस्था, दुर्गा वाहिनी, बजरंग दल, हिंदू प्रतिष्ठान, श्रीराम प्रतिष्ठान हिंदुस्तान शामिल हैं.
इन सभी को उनके आक्रामक हिंदुत्ववादी नज़रिए के लिए जाना जाता है, और पहले भी कई विवादों में इन संगठनों का नाम आ चुका है.
हिंदू जनजागरण समिति भी सभी हिंदू संगठनों के इस मंच का हिस्सा है. समिति के नेता सुनील घनवत ने बीबीसी मराठी को बताया, “अलग अलग हिंदुत्ववादी संगठनों ने मिलकर सभी ज़िलों में सकल हिंदू समाज का गठन किया है.”
घनवत बताते हैं, “इसमें संघ से जुड़े विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हमारी हिंदू जनजागरण समिति, श्रीराम सेना, शिव प्रतिष्ठान और बहुत से अन्य संगठन शामिल हैं. हमारी कोई केंद्रीय समिति नहीं है, जो कार्यक्रम तय करती हो. अलग अलग ज़िलों में अलग संगठन अपने हिसाब से ज़िम्मेदारी लेते हैं.”
सुनील घनवत इस बात से इनकार करते हैं कि ये रैलियाँ योजनाबद्ध तरीक़े से आयोजित की जा रही हैं.
वो कहते हैं, “कुछ भी योजनाबद्ध नहीं है. सब कुछ अपने-आप हो रहा है. जहाँ तक मेरी जानकारी है, पहले से कुछ भी तय नहीं था.”
“जब सबने परभणी में हुई पहली रैली को मिला समर्थन देखा तो सभी संगठन, समुदाय और राजनेता अपनी भूमिका और पद को छोड़कर बस एक ‘हिंदू’ के तौर पर एक साथ आए. ये नुस्खा कारगर साबित हुआ और फिर हमने इसे दूसरी जगहों पर दोहराया.”
रैली में भाषण देने वाले कौन हैं और वो क्या कह रहे हैं?
इन रैलियों में जो मांगें उठाई जा रही हैं, उनकी तीखी आलोचना की गई है. रैलियों में मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए और रैलियों में भाषण के दौरान भड़काऊ भाषा इस्तेमाल करने के लिए भी इनकी आलोचना की गई है.
जब काफ़ी हो-हल्ले के बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया, तो कुछ वक्ताओं के ख़िलाफ़ राज्य के अलग-अलग हिस्सों के पुलिस थानों में कई एफआईआर दर्ज की गई.
वैसे तो ‘सकल हिंदू समाज’ का कोई आधिकारिक फेसबुक पेज या यू-ट्यूब चैनल नहीं है. मगर इस मंच में शामिल संगठनों के अलग-अलग सोशल मीडिया पेज पर रैलियों में दिए गए कुछ भाषण और उनकी ख़बरें पोस्ट की गई हैं. इनकी बारीक़ी से पड़ताल करने पर हमें भाषणों में कही गई बातों का सार समझ में आ जाता है.
22 दिसंबर को धुले शहर में आयोजित की गई रैली में सुरेश चव्हाणके भी शामिल हुए थे.
अपने भाषण में उन्होंने कहा, “अगर पुलिस इसकी रिकॉर्डिंग करना चाहती है, तो उसे अपना कैमरा सुरेश चव्हाणके पर नहीं, बल्कि उन मस्जिदों पर लगाना चाहिए, जहाँ जिहादियों को ट्रेनिंग दी जा रही है. जहाँ से ‘लव जिहाद’ के लिए पैसा बांटा जा रहा है.”
उग्र हिंदुत्ववादी चैनल सुदर्शन टीवी के कर्ताधर्ता चव्हाणके ने कहा, “जहां से ‘लव जिहादियों’ को मोटरसाइकिलें मिलती हैं. जहां उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है कि वो हिंदू लड़कियों को कैसे फंसाएं. कैमरे तो मदरसों में लगाए जाने चाहिए जहां ये सिखाया जाता है कि मुसलमानों के सिवा बाक़ी सब ‘काफ़िर’ हैं.”
महाराष्ट्र में कई जगह पर आयोजन के बाद ऐसी ही एक रैली 29 जनवरी को राजधानी मुंबई में आयोजित की गई. ये रैली दादर के शिवाजी पार्क में हुई थी.
इनमें से एक, विवादित नेता और तेलंगाना से बीजेपी के निलंबित विधायक टी. राजा सिंह भी थे. मुंबई के अलावा राजा सिंह को महाराष्ट्र के लातूर और शोलापुर में हुई रैलियों में भी भाषण देने के लिए बुलाया गया था.
‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ रैली
मुंबई में अपने भाषण में टी राजा सिंह ने कहा, “महाराष्ट्र की पवित्र भूमि हिंदुओं की है. ये शर्म की बात है कि हिंदुओं की इस भूमि पर हमें लव जिहाद रोकने वाला क़ानून बनाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है. महाराष्ट्र के हर कोने में पैसे का लालच देकर हमारे दलित और आदिवासी बंधुओं का धर्म परिवर्तन किया जा रहा है. हमारे देवताओं का खुले तौर पर अपमान किया जाता है.”
मुंबई की रैली में एक महिला नेता साक्षी गायकवाड़ लव जिहाद पर लंबी तक़रीर करती दिखाई देती हैं.
वे मंच से मुसलमानों को सीधे संबोधित करते हुए कहती हैं, “होश में आ जाओ. इन हज़ारों हिंदुओं को देखो. वो बलिदान देने से डरेंगे नहीं. मैं अपने सभी नौजवानों से अपील करती हूं कि वो हमारी लड़कियों को वापस लाने के लिए तैयार रहें. अभी तो हमने शुरुआत ही की है.”
जब रैलियों का ये सिलसिला चल रहा था, तो 19 मार्च को एक रैली मुंबई के पास मीरा रोड में भी हुई थी. मीरा रोड मुंबई के उप-नगरीय इलाक़ों का पश्चिमी हिस्सा है. यहां पूरे देश से आए आप्रवासियों का बसेरा है. इनमें से काफ़ी तादाद मुसलमानों की भी है.
इस रैली में ‘सकल हिंदू समाज’ के कई नेता शामिल हुए. इनमें अपने उग्र भाषणों के लिए मशहूर गुजरात की काजल हिंदुस्तानी भी शामिल हुई थीं.
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने इस रैली के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि इसमें मीरा-भायंदर की निर्दलीय विधायक गीता जैन और बीजेपी विधायक नीतेश राणे भी शामिल हुए थे.
ख़बरों के मुताबिक़, इस रैली में खुलकर मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की अपील की गई.