भारत का बँटवारा धर्म के आधार पर हुआ था. पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बना, वहीं भारत के नेताओं ने सेक्युलर रास्ता चुना, लेकिन आज़ादी के 75 वर्ष बाद सेक्युलर शब्द को एक तबक़ा अपशब्द की तरह इस्तेमाल करने लगा है क्योंकि उनके मुताबिक़ भारत एक ‘हिंदू राष्ट्र’ है.
पिछले कुछ समय में सत्ता से जुड़े ज़िम्मेदार लोगों और निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों के ऐसे अनेक बयान टीवी चैनलों पर देखने को मिले जिन्हें कुछ साल पहले तक लोग निजी बातचीत में भी कहने से परहेज़ करते थे.
इन सभी बयानों में मुसलमानों के खान-पान, रहन-सहन और धार्मिक गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी की गई थी.
इसमें दंगाइयों को कपड़े से पहचानने वाला बयान हो, गोली मारो *** को , हाइवे पर नमाज़ पढ़ने वालों का ज़िक्र हो या राशन पहले अब्बा-जान वाले ले जाते थे … ऐसे बयानों की लंबी लिस्ट है. इस तरह के बयानों की भरमार चुनाव के आसपास अधिक होती है लेकिन इनकी झड़ी पूरी तरह बंद कभी नहीं होती.
भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक दरार आज़ादी से पहले से रही है, लेकिन यह भी सच है कि आज़ादी की लड़ाई दोनों ने साथ मिलकर लड़ी थी.
इस दरार की ही वजह से समय-समय पर दंगों की शक्ल में दोनों समुदायों के बीच टकराव भी होते रहे हैं. ये भी सच है कि पिछले कुछ सालों में कानपुर-मुंबई (1992), मेरठ (1987), राँची (1967), भागलपुर (1989) और अहमदाबाद (2002) जैसे भीषण दंगे नहीं हुए हैं, 2020 के दिल्ली दंगों के अपवाद को छोड़कर.
लेकिन दोनों समुदायों के बीच की दरार पहले से अधिक गहरी होती दिख रही है जिसके पीछे रोज़-रोज़ उछाले जाने वाले ऐसे मुद्दे हैं जिनका सीधा संबंध देश के मुसलमानों से है. यहाँ हम उन्हीं मुद्दों पर नज़र डाल रहे हैं जो दरार को रोज़-ब-रोज़ गहरा करते जा रहे हैं
ऐसा नहीं है कि ये सारे बयान केवल राजनीतिक तबके़ से आ रहे हैं, समाज के हर हिस्से में, सोशल मीडिया पर, पार्टियों के प्रवक्ताओं से लेकर व्हाट्सऐप ग्रुप के रिश्तेदारों के बीच हिंदू-मुसलमान तकरार से जुड़े मुद्दों पर बहस और कड़वाहट फैल रही है.
कभी धर्म-संसद के नाम पर, तो कभी भड़काऊ भाषण देकर, कभी माँस की दुकानों को लेकर, कभी पार्क- मॉल में नमाज़ पढ़ने को लेकर, तो कभी हिजाब पहनने पर हंगामा खड़ा करके, तो कभी लाउडस्पीकर से अज़ान को मुद्दा बनाकर यह सिलसिला किसी-न-किसी रूप में चलता रहा है.
हंगामा-दर-हंगामा. ये जो सिलसिला चल रहा है, इसमें अगर दो पक्ष हैं तो एक पक्ष वो तबक़ा है जो भारत को हिंदू राष्ट्र के तौर पर देखता है, और दूसरी ओर देश के मुसलमान नागरिक हैं.
यूपी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान को याद करिए जिसमें उन्होंने 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत की लड़ाई की बात कही थी.
हालांकि उन्होंने बाद में सफ़ाई दी थी कि 80 और 20 से उनका मतलब हिंदू और मुसलमान से नहीं था, बल्कि देशभक्त और देशविरोधी ताक़तों की ओर उनका इशारा था.
कश्मीर और सावरकर पर चर्चित किताबें लिख चुके अशोक कुमार पांडेय कहते हैं, “चुन-चुनकर ऐसे मुद्दों को उछाला गया है जिनका मक़सद 80 प्रतिशत हिंदुओं को ताक़तवर होने का एहसास दिलाना और 20 प्रतिशत मुसलमानों में अलगाव या परायेपन का भाव भरना है.”