स्थानीय लोगों का कहना है कि हाल में विवादित जगह से सेनाओं के पीछे हटने के बाद उनकी आजीविका खतरे में है. लद्दाख के लोगों ने भारत पर अपने इलाके को बफर जोन में बदलने और चीन को बड़ी छूट देने का आरोप लगाया है.
इलाके के गांवों में रहने वाले लोगों का कहना है कि भारत और चीन की सेना पीछे हट गई हैऔर लद्दाख में कुगरांग वैली के करीब 120 वर्ग किलोमीटर के जिस इलाके को लेकर विवाद था वह बफर जोन बन गया है. यह जगह पश्मीना बकरियों के चारागाहों और ठंडे बियाबान के लिये जानी जाती है.
ये लोग भारत-चीन की सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा एलएसी की तरफ चीन की विस्तारवादी योजनाओं को रोकने में भारत के नाकाम रहने का आरोप लगा रहे हैं. लद्दाख के फोबरांग गांव के प्रमुख आखो स्टोबगाइस का कहना है, “हमें झटका लगा है. हमारे इलाके को सरकार कैसे छोड़ सकती है? ये सीमित चारागाह हमारी जीवनरेखा हैं. इनके बगैर हमारे मवेशी और उनके साथ ही हमारा रोजगार भी खत्म हो जायेगा.”
फोबरांग, लुकुम और उरगो गांव में रहने वाले 113 परिवारों की कम से कम 4500 पश्मीना बकरियां, 700 याक और दूसरे मवेशी कुगरांग वैली के चारागाहों पर निर्भर हैं. स्टोबागाइस का कहना है कि अब यह इलाका भारतीय सैनिकों और आम लोगों के जाने के लिये प्रतिबंधित हो गया है.
8 सितंबर को भारत और चीन ने घोषणा की कि वो अपने सैनिकों को पैट्रोल प्वाइंट 15 (पीपी-15) से पीछे हटा रहे हैं. पूर्वी लद्दाख के इलाके में यह जगह बीते दो साल से दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनाव में घिरी है.
शीर्ष स्तर पर बातचीत
गोगरा के उत्तर में पीपी-15 रणनीतिक लिहाज से अहम एक चंद्राकार रेखा पर एक बिंदु है जो एलएसी बनाता है. काराकोरम में प्वाइंट 1 से यह शुरू हो कर डेपसांग के मैदान और पेनगोंग लेक से गुजरता है.
कमांडर स्तर की 16 दौर की बातचीतके बाद पिछले हफ्ते उज्बेकिस्तान में शंघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक से ठीक पहले पीछे हटने पर सहमति बनी. संयुक्त बयान में कहा गया है, “भारत चीन कमांडर स्तर के 16 दौर की बातचीत के बाद बनी सहमति के मुताबिक भारत और चीन के सैनिकों ने गोगरा हॉटस्प्रिंग के इलाके से सहयोग और योजनाबद्ध तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है, जो सीमावर्ती इलाके में उथलपुथल को घटाने और शांति में सहयोग करेगा.”
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची का कहना है, “इस बात पर सहमति बन गई है कि इलाके में दोनों तरफ के अस्थायी निर्माण और दूसरे बुनियादी ढांचे को खत्म किया जायेगा और आपसी तौर पर इसकी पुष्टि की जायेगी. दोनों तरफ इलाके की जमीन को विवाद शुरू होने से पहले की स्थिति में लाया जायेगा.”
क्या लद्दाख में पीछे हटने से चीन को फायदा हुआ है?
स्टोबगाइस 2019-20 में भारतीय सेना के लिये ड्राइवर के रूप में काम करते थे. वो भारत सरकार के इस दावे को चुनौती दे रहे हैं कि इलाके को अप्रैल 2020 में विवाद शुरू होने से पहले की स्थिति में लाया जा रहा है.
उनका कहना है कि भारत ने अपने इलाके में असैन्य क्षेत्र बना कर नामालूम कारणों से चीन को बड़ी छूट दे दी है. स्टोबगाइस ने कहा, “मैं करम सिंह हिल से भारतीय सेना के लिये राशन उठाने जाता था, कुगरांग के मुहाने पर करीब 30 किलोमीटर की ड्राइव के बाद पीपी-16 था वहां वहां भारतीय सेना का बेस कैंप था. वहां से मैं भारतीय सेना को कई बार गलवान घाटी की तरफ 11 किलोमीटर दूर पीपी-15 तक ले कर गया.”
स्टोबगाइस ने साथ ही यह भी कहा कि 2011 में भारतीय सीमा प्रहरी पीपी-15 से 8 किलोमीटर आगे एलएसी की तरफ अल्फा-3 पास तक गश्त लगाते थे. स्टोबगाइस का कहना है, “अब पूरी कुगरांग वैली को छोड़ दिया गया है. सबसे ज्यादा चौंकाऊ तो यह है कि सरकार ने पीपी-16 के पास 1962 से मौजूद भारतीय सीमा प्रहरी के बैरकों को भी हटाने की मंजूरी दे दी है और करम सिंह हिल तक पीछे चली गई है.”
हाल की घटनाओं से चिंतित नजर आ रहे स्टोबगाइस ने कहा, “अगर भारत इसी तरह चीन को एकतरफा छूट देता रहा तो वह समय दूर नहीं है जब पीएलए (चीन की सेना) हमारे गांवों तक फैल जायेगी.”
स्टोबगाइस ने भारत से आग्रह किया है कि वो चीन के साथ बातचीत में स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी शामिल करे क्योंकि वे विवादित पहाड़ी इलाके में भारतीय क्षेत्र की सीमाओं को जानते हैं.
भारत के रणनीतिक विश्लेषक प्रवीन सावने स्थानीय लोगों का समर्थन करते हैं उनका कहना है कि पीछे हटने के लिये बफर जोन भारतीय इलाके में इसलिये बनाया गया है क्योंकि भारत वहां से पीएलए को नहीं हटा सकता.
सावने ने कहा, “चीन ने साफ तौर पर कहा है कि वह अप्रैल 2020 की स्थिति में पीछे नहीं जायेगा और पीछे हटने की प्रक्रिया उनकी शर्तों और समय के हिसाब से होगी. बफर भारत के क्षेत्र में बनाये गये हैं और उन्होंने भारत को कह दिया है कि डेपसांग के मैदान पर कोई समझौता नहीं होगा.”