साहित्य

ज़रूर पढ़ें रूबी सत्येन्द्र कुमार की एक लघुकथा – ठूंठ

रूबी सत्येन्द्र कुमार की कविता मंजरी
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एक लघुकथा निवेदित है।
लघु कथा:-ठूंठ
हाँ! मैं अब ठूंठ हूं।
आज मेरे पास कोई नहीं आता ,ना तो मेरी डालियों पर चिड़ियों के बसेरे हैं, और ना ही मेरी छाया में बैठे अनगिनत लोग ,जो अपने अपने किस्सों को एक दूसरे के साथ बड़ी स्नेह से देर तक बैठे बांटा करते थे।
पर क्या करूं यह वक्त है, यह तो चलता ही रहता है।
मेरी भी अपनी एक कहानी है ,बड़ी ही प्यारी बड़ी ही निराली मैं भी कभी एक बरगद का पेड़ था।
मेरे नीचे पूरे गांव के बच्चे खेला करते थे, और पास ही कुएँ पर हर घर की औरतें, कन्याएं सब पानी भरने आया करती थी ।शाम को जब थक हार के किसान खेतों से आते थे, तो मेरी नीचे बैठ के सारी थकान खत्म कर लेते थे।
बहुत सारी चिड़िया घोंसला बनाकर अपने बच्चों को पाला करती थी ।
और कभी-कभी तो विषधर भी मुझ में लिपट कर अपने सारे विष की पीड़ा को भूल जाया करते थे।
मैं बड़ा गौरवान्वित महसूस करता था। मेरी खुद की दुनिया थी ,जो सुबह सूरज उगने से पहले शुरू होकर के अगले सूरज उगने तक चला करती थी ।
मैं भी बड़ा इतराता था खुद पर, खुद पर नाज होता था जैसे कितने सारे लोगों की मैं जरूरत था ।
और वे लोग मेरी जरूरत बन गए थे।
मेरी बड़ी-बड़ी जड़ों से खेलते हुए बच्चे,एक-दूसरे के साथ झूला झूलते रहते थे। लेकिन समय चलता रहा समय के गति के साथ मैं भी धीरे-धीरे थकने लगा।
मेरी कुछ टहनियों को तूफानों ने तोड़ दिया। और कुछ यूं ही धीरे-धीरे सुख करके टूट बन गई। अब तो मेरे जीवन में बसंत आने भी बंद हो गए ।ना ही पुरानी पत्तियां गिरती ना ही नयी आती,क्योंकि पत्तियां भी अब धीरे-धीरे सूखने लगी थी।
शायद यही वक्त है, यही जीवन है ,सब कुछ ऐसे ही चलता रहता है ।
और मैं सूख कर ठूंठ बन रह गया ।
बस अब इंतजार करता हूँ, कि एक दिन कोई बड़ी तूफान आएगी और मुझे जड़ों समेत उखाड़ करके इस धरती पर गिरा देगी।
और फिर मैं किसी चूल्हे में जलकर राख बन जाऊंगा ।अथवा धरती पर पड़े पड़े सड़कर मिट्टी मे समाहित हो जाऊंगा।
बस यही मेरी कहानी है।
हाँ यही मेरी कहानी है।
रूबी गुप्ता कुशीनगर उत्तर प्रदेश भारत