विशेष

…अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें?

B B Singh
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अतुल्य भारत का प्राचीन वफादार मित्र
बचपन में हम देखते थे कि हल चलाते में अगर बैल गोबर मूत्र आदि करे तो किसान कुछ देर के लिए हल रोक देते थे ताकि बैल आराम से नित्यकर्म कर सके।

जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं! यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा!
उस जमाने का देसी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि 2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है ! उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था!

टिटहरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है…हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टिटहरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था! उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी!
सब आस्तिक थे! दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था…यह एक सामान्य नियम था !

बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिकअपराध की श्रेणी में आता था!

बूढाबैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था…मरने तक उसकी सेवा होती थी!
उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है…अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें? कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए?

जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था! माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे!
पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है?

वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवनव्यवहार में ही जीवनरस खोज लेता था । वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था