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अमरीका अब ज़ेलेन्स्की को गड्ढे में ढकेल कर भागना चाहता है, अमरीका ने पुतीन के साथ बातचीत का ख़ुफ़िया चैनल खोला : रिपोर्ट

बढ़ती ठंड में अमेरिकी प्रतिबंधों की पिघलती बर्फ़! ऐसा क्या हुआ जो बदले-बदले से सरकार नज़र आ रहे हैं?

अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि अमेरिका ने अन्य देशों के लिए रूसी तेल के निर्यात पर प्रतिबंध नहीं लगाया है और भारत की तरह कोई भी देश रूसी तेल का निर्यात कर सकता है।

समाचार पत्र डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक़, कुछ दिन पहले भारतीय मीडिया ने यह दावा किया था कि रूस से सबसे ज़्यादा तेल ख़रीदने वाले देशों की सूची में भारत का नाम शामिल हो गया है। इससे पहले भारत अपने पारंपरिक विक्रेता सऊदी अरब और इराक़ से सबसे ज़्यादा तेल आयात करता था, लेकिन यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस द्वारा तेल के दाम में दी गई छूट के बाद भारत ने रूस से तेल आयात अभूतपूर्व तरीक़े से बढ़ा दिया है। भारत रूस से ख़रीदे गए तेल की क़ीमत को सीमित करने के लिए G7 देशों द्वारा प्रस्तावित योजना का भी पालन नहीं कर रहा है, जहां इन देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध का उद्देश्य मास्को की आय को सीमित करना बताया गया है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया है कि अमेरिका ने अन्य देशों के लिए रूसी ऊर्जा के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। लेकिन यह सब जानते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के आरंभ में ही अमेरिका ने रूसी तेल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। वहीं जब अमेरिकी अधिकारी से पूछा गया कि क्या पाकिस्तान और अन्य देश भी भारत की तरह रूस से तेल आयात कर सकते हैं? तो उन्होंने जवाब में कहा कि हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि सभी देश ऊर्जा आयात के आधार पर अपने देश की स्थिति को देखते हुए खुद निर्णय ले सकते हैं।


इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि हम यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन के युद्ध के प्रभाव को कम करने के लिए भविष्य में भारत, यूरोपीय संघ और अन्य भागीदारों और सहयोगियों के साथ काम करना जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि अमेरिकी ट्रेज़री विभाग ने पहले ही रूसी बैंकों के साथ ऊर्जा से संबंधित लेनदेन की अनुमति देने के लिए एक सामान्य लाइसेंस जारी कर दिया है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी युद्ध के दौरान इस साल अमेरिकी प्रतिबंधों में ऊर्जा, व्यापार और परिवहन भुगतान शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इन प्रतिबंधों की मदद से अमेरिका ने रूसी ऊर्जा के आयात पर प्रतिबंध लगाया है। वहीं अमेरिका के बदले-बदले सुर को लेकर जानकारों का कहना है कि प्रतिबंधों की बर्फ़ जो पिघल रही है उसका मुख्य कारण पश्चिमी देशों में बढ़ती ठंड है। क्योंकि अगर यूरोपीय देशों ने रूस से तेल और गैस नहीं लिया तो आने वाले महीनों में यूरोपीय देश में हाहाकार मच जाएगा।

क्या अमरीका अब ज़ेलेन्स्की को मजधार में ढकेल कर भागना चाहता है? अमरीका ने क्यों कहा कि पुतीन के साथ बातचीत के ख़ुफ़िया चैनल खुल गए हैं?

अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन अपनी लोकप्रियता का ग्राफ़ बुरी तरह नीचे आ जाने की वजह से बौखलाए हुए हैं। जबकि दूसरी तरफ़ युक्रेन की जंग में भी उनकी सरकार नाकाम ही रही। जंग को नवां महीना शुरू होने वाला है और अब तक जो नज़र आ रहा है वह रूस की सैनिक और राजनैतिक कामयाबियां ही हैं।

अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सोलिवान ने इक़रार किया है कि उन्होंने अपने रूसी समकक्ष निकोलाय पैट्रोशेफ़ से बात की ताकि यूक्रेन जंग का दायरा न बढ़े और परमाणु युद्ध का ख़तरा क़रीब न आए। उनके बयान से लगता है कि अमरीका ने धीरे धीरे युक्रेन जंग में अपनी कमज़ोरी स्वीकार करना शुरू कर दिया है और अब शांतिपूर्ण समाधान की तरफ़ बढ़ना चाहता है। इस प्वाइंट पर समाधान का मतलब यह है कि रूस ने जिन भागों का विलय किया है उसे रूस के भाग के तौर पर मान्यता देनी होगी।

राष्ट्रपति पुतीन की परमाणु हमले की धमकी और सारे हथियारों के साथ किए गए रूसी सेना के अभ्यास में उनकी शिरकत साथ ही रूस की तरफ़ से यह बयान कि यूक्रेन डर्टी बम से हमला करने की कोशिश कर रहा है इन सारी चीज़ों ने मिलकर अमरीकी नेतृत्व के रोंगटे खड़े कर दिए।

मास्को के साथ वार्ता का चैनल खोलने पर अमरीका को मजबूर करने वाली एक बड़ी चीज़ जंग के मैदानों में रूस का पलड़ा भारी हो जाना था। हालिया हफ़्तों में रूस ने मिसाइलों और ड्रोन विमानों से हमले करके समीकरणों को बिल्कुल बदल दिया। बहुत सारे लोगों की पानी की सप्लाई कट गई, बिजली की सप्लाई कट गई, इंफ़्रास्ट्रक्चर ध्वस्त होकर रह गया। सर्दी का मौसम भी आ पहुंचा है और लाखों यूक्रेनी नागरिकों को शिविरों में शरण लेनी पड़ी है।

अमरीका में होने वाले चुनावों के नतीजे युक्रेन और वहां के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की के हित में नहीं हैं क्योंकि मज़बूत स्थिति हासिल करने वाली रिपब्लिकन पार्टी को इस बात पर एतेराज़ है कि अमरीका का बड़ा बजट युक्रेन जंग में स्वाहा होता जा रहा है। अब तक चालीस अरब डालर से ज़्यादा रक़्म ख़र्च हो चुकी है।

वाशिंग्टन पोस्ट ने एक रिपोर्ट में लिखा कि बाइडन प्रशासन ने यूक्रेन के नेतृत्व पर भारी दबाव डाला है कि जंग रुकवाने के लिए रूस के साथ बातचीत का रास्ता खोलें। मगर ज़ेलेंन्स्की ने यह दबाव स्वीकार नहीं किया है और वे जंग से पीछे हटना नहीं चाहते।

ज़ेलेन्स्की को अच्छी तरह पता है कि वे अमरीकी सपोर्ट से ही सत्ता में बने हुए हैं इसलिए आख़िरकार उन्हें अमरीकी दबाव के सामने झुकना पड़ेगा और रूस की शर्तों पर युद्धविराम करना होगा।

जैसे ही सर्दी का मौसम शुरु हुआ है अमरीका और यूरोपीय देश एक एक करे इस जंग से पीछे हटने लगे हैं। अब अगर ज़ेलेन्स्की को यह उम्मीद है कि रूस के भीतर पुतीन के ख़िलाफ़ बग़ावत हो जाएगी या कैंसर की बीमारी में ग्रस्त होकर पुतीन की मौत हो जाएगी तो यह सब उनका भ्रम है। उन्हें भी सबक़ लेना चाहिए कि अमरीका ने क्यों रूस के साथ बातचीत के चैनल खोल लिए हैं।

हम तो लगता है कि जो बाइडन इंडोनेशिया में होने वाली जी 20 की बैठक में पुतीन से मुलाक़ात न करने के अपने एलान से भी पीछे हट सकते हैं। जैसे वे सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान से मुलाक़ात न करने अपने एलान से पीछे हटे थे और रियाज़ की यात्रा पर जाकर बहुत अपमानित होने के बाद वहां से लौटे थे। यह बात हम इस संभावना की बुनियाद पर कह रहे हैं कि हो सकता है कि पुतीन जी 20 की बैठक में हिस्सा लें वरना अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पुतीन इसमें भाग लेंगे या नहीं।

आख़िर में बस यह कहना है कि पुतीन और रूस को झुकाने का पश्चिम का एजेंडा बुरी तरह धराशायी हो चुका है।

अब्दुल बारी अतवान

लेखक अरब जगत के जाने माने लेखक और पत्रकार हैं