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अमेरिका ने अरब व् फ़ार्स की खाड़ी के देशों को लूटने के लिए ”ये” नीति अपना रखी है : रिपोर्ट

अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जान कर्बी ने कहा है कि वाशिंग्टन दिन- प्रतिदिन बढ़ती ईरानी चुनौतियों से मुकाबले के लिए पश्चिम एशियाई देशों के साथ मिलकर एअर डिफेंन्स सिस्टम को मज़बूत बनाने के मार्गों की समीक्षा करेगा।

जॉन कर्बी के बयान की प्रतिक्रिया में ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने कहा है कि क्षेत्र में आतंकवाद और असुरक्षा में विस्तार के अलावा अमेरिकी उपस्थिति का कोई अन्य परिणाम नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका क्षेत्र की वास्तविकताओं पर ध्यान दिये बिना केवल अपने लक्ष्यों को साधने के लिए ईरानोफोबिया जैसे विषयों को पेश करता और फूट डालने की चेष्टा में रहता है और जो चीज़ अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है वह उसके अवैध हित और क्षेत्र में जायोनी शासन के अवैध हितों के लिए प्रयास करना है।

वर्षों से अमेरिका क्षेत्रीय देशों को ईरान से डराता रहा है उसके इस कार्य का लक्ष्य फार्स की खाड़ी के देशों के हाथों अरबों डालर का हथियार बेचना है। दूसरे शब्दों में अमेरिका यह नीति अपना कर जहां दूसरे देशों विशेषकर फार्स खाड़ी के देशों को ईरान से डरा कर उनके हाथों आधुनिकतम हथियारों को बेच रहा है वहीं पूरी दुनिया में ईरान की छवि को भी खराब करने की चेष्टा कर रहा है। अमेरिका ने फार्स की खाड़ी के देशों को अपने हथियारों की मंडी बना रखा है और इन देशों के हाथों अपने हथियारों को बेचकर धन उगाही करता और इन देशों का शोषण व दोहन कर रहा है।

जानकार हल्कों का मानना है कि अमेरिका ईरान के खिलाफ जो दुष्प्रचार करता है तो उसके इन कृत्यों का लक्ष्य वास्तविकताओं से आम जनमत का ध्यान भटकाना है और दूसरे देशों के लोगों को यह समझाना है कि ईरान खतरा है जबकि वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है। आज अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और यमन जैसे देशों में अमेरिकी हस्तक्षेप वहां अशांति जारी रहने का मुख्य व अस्ल कारण है।

अमेरिका ने शांति व सुरक्षा स्थापित करने और आतंकवाद से मुकाबले के बहाने वर्ष 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया था और 20 वर्षों तक वहां पर अमेरिकी और नैटो सैनिकों के तैनात रहने के बावजूद न तो शांति स्थापित हो पाई और न ही वहां से आतंकवाद का सफाया हो पाया। यही नहीं एक वक्त था जब अमेरिका तालेबान को आतंकवादी गुट कहता था पर जब उसने अपने हित तालेबान से संबंध बनाने में देखा तो अपना स्वर बदल कर कहने लगा कि आतंकवाद की दो किस्में हैं एक अच्छे आतंकवादी और दूसरे बुरे।

दूसरे शब्दों में जिससे भी अमेरिका के हित पूरे होते हों वह आतंकवादी नहीं है और अगर हो भी तो अच्छा आतंकवादी है। बहुत से लोग सवाल करते हैं कि किसे आतंकवादी कहा जाता है उसकी परिभाषा क्या है? इसी तरह लोग सवाल करते और पूछते हैं कि आतंकवादी दो प्रकार के होते हैं एक अच्छे और दूसरे बूरे। तो यह कब और किसने बताया और बनाया? अच्छे और बुरे आतंकवादी की परिभाषा क्या है? सारांश यह कि अमेरिका और अशांति दो पर्यायवाची शब्द हैं जहां भी अमेरिका होगा वहां अशांति ज़रूर होगी। सीरिया और इराक इसके जीवंत उदाहरण हैं।