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अमेरिकी दबाव में अफ़ग़ानिस्तान को लेकर बदल गयी पाकिस्तान की रणनीति, अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ रहा है तनाव : रिपोर्ट

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में चरमपंथी हमले तेज़ हो गए हैं. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने अपने कमांडरों से कहा है कि वो पाकिस्तान के हर हिस्से में हमले करें.

टीटीपी पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती इलाक़ों में सक्रिय एक चरमपंथी संगठन है जो लंबे समय से पाकिस्तान स्टेट के ख़िलाफ़ लड़ रहा है. टीटीपी क़बीलाई इलाक़ों से सेना की वापसी और अपने क़ैद लड़ाकों की रिहाई चाहता है.

पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस स्टडीज़ के मुताबिक साल 2021 में टीटीपी ने पाकिस्तान में 282 हमले किए जिनमें कम से कम 500 सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई. जनवरी 2022 में ही टीटीपी ने 42 हमले किए थे.

पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर अफ़ग़ान तालिबान और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच भी झड़पें हुई हैं. दिसंबर में काबुल में पाकिस्तान के दूतावास पर भी हमला हुआ है.

विश्लेषक दावा करते हैं कि ऐसे हमलों का बढ़ना ये बताता है कि ‘अफ़ग़ानिस्तान को लेकर लंबे समय से चली आ रही पाकिस्तान की नीति नाकाम हो रही है.’ पूर्ववर्ती तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) की सरकार भी पाकिस्तान की इस नीति की समर्थक थी.


सीमा पर क्यों बढ़ रहा है तनाव?
हाल के दिनों में ऐसा कई बार हुआ जब पाकिस्तान के सैन्यबल और अफ़ग़ान तालिबान सीमा पर आमने सामने आ गए. दोनों तरफ़ से गोलियां चलीं और कई लोगों की जानें भी गईं.

अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान के साथ लगी सीमा पर ‘डूरंड लाइन’ को नहीं मानता है. जब-जब पाकिस्तान ‘डूरंड लाइन’ पर अपनी मोर्चाबंदी या तारबंदी को मज़बूत करने की कोशिश करता है अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ से विरोध होता है.

पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार और पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती इलाक़ों की ग़हरी समझ रखने वाले अरशद युसूफ़ज़ई कहते हैं, “अफ़ग़ानिस्तान तालिबान की तरफ़ से सबसे बड़ा कारण ये है कि पाकिस्तान ने डूरंड लाइन पर जो तारें लगाई हैं, अफ़ग़ान तालिबान उसे नहीं मानते हैं. पाकिस्तान ने ड्रग्स, हथियारों और मानव तस्करी को रोकने के लिए ऐसा किया है.”

“सिर्फ़ तालिबान को ही नहीं बल्कि समूचे अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को ये स्वीकार नहीं है. जब भी पाकिस्तान वहां कोई चौकी बनाने या फिर तार बिछाने की कोशिश करता है तो अफ़ग़ान तालिबान की तरफ़ से इस पर प्रतिक्रिया होती है. अफ़ग़ानिस्तान के लोग ‘डूरंड लाइन’ को नहीं मानते हैं.”

वहीं सीमा पर बढ़ते तनाव की एक वजह ये भी है कि तालिबान के कई कमांडर स्थानीय स्तर पर अपना प्रभाव बनाने के लिए भी सीमा पर शक्ति प्रदर्शन कर देते हैं.

ब्रिटेन स्थित चरमपंथ विरोधी संगठन ‘इस्लामिक थियोलॉजी ऑफ़ काउंटर टेररिज़्म’ के डिप्टी डायरेक्टर और ‘मिडस्टोन सेंटर फॉर इंटरनेशनल अफ़ेयर्स’ के निदेशक फ़रान जाफ़री कहते हैं, “कई झड़पें तब हुईं जब तालिबान ने पाकिस्तान बॉर्डर पर सुरक्षा तारों को हटा दिया और उस ज़मीन पर किलेबंदी करने की कोशिश की जिसे पाकिस्तान अपना मानता है.”

“सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो हैं जिनमें तालिबान लड़ाके बॉर्डर पर दीवार को हटाते दिख रहे हैं. स्थानीय स्तर पर तालिबान लड़ाके जोशीले होते हैं और बात करने से पहले वो गोली चलाना ज्यादा पसंद करते हैं.”

लेकिन पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर तालिबान पहले इतने आक्रामक नहीं थे. तो अब क्यों हैं?

इसकी वजह बताते हुए अरशद यूसुफ़ज़ई कहते हैं, “हालांकि 1996 से 2001 तक तालिबान के पिछले शासन के दौरान वो इस तरह की प्रतिक्रिया तालिबान नहीं देते थे, लेकिन अब इस पर उनका नज़रिया बदल गया है क्योंकि उन्हें लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी हुई हैं.”

“इसलिए ‘डूरंड लाइन’ पर हलचल होने पर वो तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं. इससे तालिबान कमांडरों को घरेलू स्तर पर भी लोकप्रियता हासिल होती है.”

आर्थिक नुक़सान
पाकिस्तान के सीमाबंद करने से अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को आर्थिक नुक़सान भी होता है. अफ़ग़ानिस्तान का ये आरोप है कि पाकिस्तान के सीमा बंद करने से उसकी उपज ख़राब होती है और उसे सस्ते दाम पर उत्पाद बेचने पड़ते हैं.

अरशद युसूफ़ज़ई कहते हैं, “पाकिस्तान दबाव बनाने के लिए भी बॉर्डर बंद कर देता है. अफ़ग़ानिस्तान के लोग शिकायत करते हैं कि जब उनकी फसलें तैयार होती हैं और वो उसे विदेश भेजना चाहते हैं तो पाकिस्तान बॉर्डर बंद कर देता है. इससे या तो उनकी उपज ख़राब हो जाती है या उन्हें सस्ती दरों पर बेचना पड़ता है.”

“हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान में अनार की उपज के दौरान चमन बॉर्डर बंद होने की वजह से अनार के दाम कम हो गए, क्योंकि किसानों के लिए बॉर्डर बंद होने की वजह से उन्हें बेचना मुश्किल हो जाता है. अपने नुक़सान को बचाने के लिए वो सस्ती दरों पर फसल बेच देते हैं.”

विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान बॉर्डर बंद करने को अफ़ग़ानिस्तान पर दबाव बनाने के तरीक़े के रूप में भी इस्तेमाल करता है.

युसूफ़ज़ई कहते हैं, “अफ़ग़ानिस्तान की एक शिकायत ये भी रहती है कि पाकिस्तान बल सीमा पर अफ़ग़ान लोगों, ख़ासकर अफ़ग़ान महिलाओं के साथ बदसलूकी करते हैं जिसकी वजह से भी तनाव बढ़ जाता है.”

“अफ़ग़ान तालिबान इससे भी आक्रोशित होकर सीमा पर प्रतिक्रिया देते हैं. हालांकि ये विषय कभी सुर्खियों में नहीं आ पाता है”

पाकिस्तान की नीति पर सवाल
अफ़ग़ानिस्तान में जब तालिबान की सत्ता आई थी तब पाकिस्तान में ख़ुशी ज़ाहिर की गई थी. पाकिस्तान को लगा था कि वो तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकेगा लेकिन अब विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान नीति उल्टी पड़ गई है.

फ़रान जाफ़री कहते हैं, “टीटीपी के हमले बढ़ रहे हैं. टीटीपी ने आत्मघाती हमले तक शुरू कर दिए हैं. यही नहीं तालिबान और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच हाल के दिनों में बॉर्डर पर कई झड़पें हुई हैं, अगर हालात ऐसे ही रहे तो आगे दोनों देशों के बीच और भी तनाव बढ़ सकता है.”

अरशद यूसुफ़ज़ई कहते हैं, “पाकिस्तान को लेकर लंबे समय तक ये माना जाता रहा था कि उसका अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान पर ख़ासा असर और रसूख़ है, लेकिन हमने देखा है कि पिछले पंद्रह महीनों में वो रसूख़ एकदम से टूटता नज़र आ रहा है. पाकिस्तान का अफ़ग़ान तालिबान पर जो प्रभाव था वो ख़त्म सा हो गया है.”

अरशद मानते हैं कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच तनाव सिर्फ़ सत्ता की सतह तक ही नहीं है बल्कि आम लोगों के जज़्बात भी इससे प्रभावित हैं.

अरशद कहते हैं, “पिछले डेढ़ दो महीने में पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर जो झड़पें हुई हैं, ख़ासकर बलूचिस्तान के चमन बॉर्डर पर और कंधार की तरफ़ से स्पिन बोल्डक पर, इन झड़पों से पता चलता है कि दोनों तरफ़ विश्वास कितना टूट चुका है और छोटे स्तर से लेकर शीर्ष स्तर तक किस तरह जज़्बात हावी हो रहे हैं.”

जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान अमेरिका के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे थे तब उनका नेतृत्व पाकिस्तान में पनाह लेता था. तालिबान के अहम समूह हक्कानी नेटवर्क पर भी पाकिस्तान का प्रभाव था.

लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि अब हालात बदल चुके हैं.

फ़रान जैफ़री कहते हैं, “पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच मौजूदा रिश्ते जटिल हैं. पाकिस्तान अफ़ग़ान तालिबान में अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए हक़्क़ानी नेटवर्क पर निर्भर है.”

“लेकिन हक़्क़ानी तालिबान का सिर्फ़ एक समूह हैं और तालिबान के कई नेता पाकिस्तान के साथ नज़दीकी की वजह से हक़्क़ानियों पर अविश्वास ज़ाहिर कर चुके हैं. इसकी वजह से पाकिस्तान से दूरी दिखाना हक्कानी की मजबूरी हो गया है.”

तालिबान की शिकायत
विश्लेषकों का मानना है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद बदले हुए हालात में पाकिस्तान के साथ तालिबान के रिश्ते भी बदल गए हैं. पहले अफ़ग़ान तालिबान पाकिस्तान के प्रभाव में काम करते थे लेकिन अब वो पाकिस्तान के साथ बराबरी चाहते हैं.

अरशद युसूफ़ज़ई कहते हैं, “अफ़ग़ान तालिबान भी अब तंग आ गए हैं. पहले पाकिस्तान उनसे जो कहता था, उन्हें करना पड़ता था क्योंकि उस समय तालिबान के पास सुरक्षित ठिकाने नहीं थे. उनके परिवार और कारोबार सब पाकिस्तान में थे.”

“पिछले बीस-बाइस साल जो तालिबान ने अमेरिका के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान में लड़ाई लड़ी, उसमें भी पाकिस्तान के क़बीलाई इलाक़े का इस्तेमाल किया.”

“उस समय वो पाकिस्तान के हितों के ख़िलाफ़ काम नहीं कर पाते थे. अब तालिबान नेताओं के परिवार अपने देश वापस आ गए हैं या क़तर, तुर्की या यूएई जैसे देशों में है. अब वो पाकिस्तान के प्रभाव से बाहर हैं और अब अफ़ग़ान तालिबान चाहते हैं कि उनके साथ बराबरी का सलूक किया जाए.”

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कई देशों का दौरा किया है लेकिन वो अभी तक अपने पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान नहीं गए हैं. उन्होंने काबुल में तालिबान से बात करने के लिए अपनी डिप्टी हिना रब्बानी ख़ार को भेजा था. ये भी तालिबान को नागवार गुज़रा है.

अरशद कहते हैं, “अब तालिबान ये कहता है कि अगर उनका कोई मंत्री बात कर रहा है तो पाकिस्तान की तरफ़ से भी उनका समकक्ष ही बात करे ना कि कोई निचले दर्जे का अधिकारी.”

“तालिबान अब पाकिस्तान के अधिकारियों से निर्देश नहीं लेना चाहते हैं. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान अब भी ये चाहता है कि अफ़ग़ान तालिबान अभी भी पहले की तरह ही उसकी बात को मानें, जो हो नहीं पा रहा है.”

टीटीपी हुई आक्रामक
पाकिस्तान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के बीच नवंबर 2021 में संघर्ष विराम भी हुआ लेकिन ये एक महीने के भीतर ही टूट गया. दोनों पक्षों के एक दूसरे पर अपने-अपने आरोप थे.

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने के दो महीने बाद ही टीटीपी ने पाकिस्तान में हमले शुरू कर दिए थे.

संघर्ष विराम टूटने के बाद टीटीपी ने फिर से मज़बूत होना शुरू किया और साल 2021 के अंत में बॉर्डर के इलाक़ों में टीटीपी ने पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर हमले शुरू किए.

टीटीपी के आक्रामक होने की वजह बताते हुए अरशद युसूफ़ज़ई कहते हैं, “अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद बहुत से हथियार अफ़ग़ानिस्तान में ही रह गए थे जिन्हें टीटीपी ने बहुत सस्ते दामों में ख़रीद लिया.”

“अमेरिका की एम4 जैसी हाई कैलिबर बंदूकें टीटीपी के हाथ में आ गईं. इससे टीटीपी की मारक क्षमता बढ़ गई. इन हथियारों की वजह से टीटीपी के लिए बॉर्डर इलाक़ों में सुरक्षाबलों या नागरिकों को निशाना बनाना आसान हो गया.”

“सीमा पार से जब टीटीपी ने पाकिस्तान के इलाक़ों के भीतर हमले शुरू किए तो पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ी. टीटीपी बातचीत शुरू होने से पहले अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था.”

अरशद युसूफ़ज़ई कहते हैं, “इसलिए अप्रैल 2022 तक टीटीपी ने पाकिस्तानी सुरक्षाबलों पर कई हमले किए. कुछ हमले सीमापार से भी किए गए. टीटीपी लड़ाकों ने सीमा पार की, हमला किया और फिर वो वापस चले गए.”

पाकिस्तान की एक शिकायत ये भी है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या इस्लामिक स्टेट को रोकने के लिए अफ़ग़ान तालिबान कुछ ख़ास नहीं कर रहे हैं.

पाकिस्तान ये उम्मीद करता है कि अफ़ग़ान तालिबान बॉर्डर पर अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ से इनका आना जाना रोक दें. हालांकि पाकिस्तान इस समय अफ़ग़ान तालिबान पर दबाव बनाकर ये करवाने की स्थिति में नहीं है और गुज़ारिश अफ़ग़ान तालिबान मान नहीं रहे हैं. ये भी तनाव का मुद्दा बना हुआ है.

फ़रान जाफ़री कहते हैं, “तालिबान के लड़ाके पाकिस्तान या उसकी सरकार के प्रति कई वजहों से सकारात्मक नज़रिया नहीं रखते हैं. पाकिस्तान ये उम्मीद कर रहा था कि अफ़ग़ान तालिबान टीटीपी नेताओं को उन्हें सौंप दे या कम से कम उन्हें अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से पाकिस्तान पर हमले ना करने दे.”

“अफ़ग़ान तालिबान ने पाकिस्तान और टीटीपी के बीच शांति वार्ता में भूमिका निभाने पर तो सहमति जताई लेकिन ये वार्ता नाकाम होनी ही थी क्योंकि टीटीपी की मांगे मानना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं था.”

“टीटीपी चाहती है कि ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में उसके प्रभाव वाले इलाक़ों में शरिया क़ानून लागू किया जाए और फाटा (संघीय प्रशासन वाले क़बीलाई इलाक़ों) के विलय को वापस लिया जाए. अब शांति वार्ता नाकाम हो चुकी है और ऐसा कोई संकेत नहीं है कि तालिबान टीटीपी को किसी तरह से काबू में करना चाहते हैं.”

‘बदल रही है रणनीति’
जहां तक टीटीपी का सवाल है, इस समय उनका नेतृत्व अफ़ग़ानिस्तान में है. पहले वो बॉर्डर एरिया में पाकिस्तान के आसपास होते थे लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद वो अफ़ग़ानिस्तान चले गए हैं.

इसी बीच टीटीपी के स्लीपर सेल भी पाकिस्तान में मज़बूत हो गए. पाकिस्तानी सेना ने टीटीपी के ख़िलाफ़ ऑपरेशन किए और उसे नुक़सान पहुंचाया. वजीरिस्तान और उससे जुड़े ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के ज़िलों में पाकिस्तानी सेना ने टीटीपी को ख़ासा नुक़सान पहुंचाया है.

जनरल आसिम मुनीर अहमद 29 नवंबर को पाकिस्तान की सेना के नए प्रमुख बने. इसी दिन टीटीपी ने अपने लड़ाकों को पाकिस्तान में हमले करने का आदेश दे दिया.

विश्लेषक मानते हैं कि टीटीपी अपनी कार्रवाई तेज़ करके शांति समझौते के लिए बातचीत में मज़बूती के साथ जाना चाहती है.

अरशद यूसुफ़ज़ई कहते हैं, “टीटीपी भी चाहती है कि शांति समझौता हो और उसके तहत टीटीपी को कुछ इलाक़ा मिल जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. पाकिस्तानी सेना के हमलों के बाद बदले की कार्रवाई करते हुए टीटीपी भी आक्रामक हो गई और हमले तेज़ कर दिए.”

“टीटीपी नए सेना प्रमुख को ये संदेश देना चाहती है कि हम मौजूद हैं और हमें गंभीरता से लिया जाए. टीटीपी चाहती है कि उसके साथ बातचीत शुरू हो.”

“टीटीपी अब ख़ैबर और दूसरे इलाक़ों के अलावा राजधानी इस्लामाबाद तक पहुंच गई है. बलूचिस्तान में टीटीपी एक्टिव हुई है और कई हमले किए हैं. वो पंजाब और सिंध तक में अपनी मौजूदगी होने का दावा कर रहे हैं.”

पाकिस्तान में टीटीपी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है. हमलों में सुरक्षाबलों और आम लोगों की जानें जा रही हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है क्या पाकिस्तान की सेना टीटीपी के ख़िलाफ़ एक और अभियान चलाएगी.

फ़रान जैफ़री इस आशंका को ख़ारिज नहीं करते हैं.

वो कहते हैं, “पाकिस्तान में अभी राजनीतिक अस्थिरता है जिसकी वजह से पाकिस्तान की सेना टीटीपी के ख़िलाफ़ कोई बड़ा अभियान नहीं चला पा रही है क्योंकि ऐसे अभियान के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत होगी जो सिर्फ़ राजनीतिक स्थिरता से ही आ सकती है.”

“हालांकि आगे भविष्य में ये हालात बदल सकते हैं और पाकिस्तान में चरमपंथियों के ख़िलाफ़ एक और सैन्य अभियान शुरू हो सकता है और संभवतः अफ़ग़ानिस्तान मे भी.”

वो कहते हैं, “पाकिस्तान को ये अहसास हो रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में कूटनीतिक पकड़ बनाने की उनकी नीति नाकाम नहीं हुई है बल्कि उल्टी पड़ गई है. इसी वजह से अफ़ग़ानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की नीति में बदलाव आ रहा है.”

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दिलनवाज़ पाशा
बीबीसी संवाददाता