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अरब डायरी : ईरान में इस्राईल के चार आतंकी एजेंटों को दी गयी फांसी : अमेरिका ने कहा-ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है!

ईरान में इस्राईल के लिए जासूसी करने वाले चार अपराधियों को फांसी दे दी गई है।

ईरान की इस्लामी क्रांति फ़ोर्स आईआरजीसी के जनसंपर्क विभाग ने ज़ायोनी शासन की जासूसी एजेंसियों के लिए जासूसी करने वाले चार एजेंटों की गिरफ़्तारी की सूचना दी थी।

जिस जासूसी टीम का ईरान की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने फंडाफोड़ किया था, उसे इस्राईल की जासूसी एजेंसियों ने देश में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुक़सान पहुंचाने, अपहरण करने और शांति व्यवस्था को भंग करने का आदेश दिया गया था।

जिन चार इस्राईली एजेंटों को फांसी दी गई है, इनकी गिरफ़्तारी में आईआरजीसी की ख़ुफ़िया युनिट ने भी अहम भूमिका निभाई थी।

यह एजेंट इस्राईली जासूसी एजेंसियों के अधिकारियों से दिशा निर्देश प्राप्त कर रहे थे। ज़ायोनी शासन इन एजेंटों को क्रिप्टो करेंसी के ज़रिए पैसा पहुंचा रहा था।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, इस्राईल के लिए जासूनी करने वाले इन एजेंटों का पहले से ही पुलिस रिकार्ड ख़राब था और उनके ख़िलाफ़ कई मुक़दमे दर्ज थे।

ईरान के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार, इस्राईल के चार एजेंटों हुसैन उर्दूख़ानज़ादे, शाहीन ईमानी महमूदाबाद, मीलाद अशरफ़ी और मनूचेहर शहबंदी को इस्राईल के लिए जासूनी करने और लोगों का अपहरण करने के जुर्म में दोषी पाया गया था।

पश्चिम किन कारणों से ईरान पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप मढ़ रहा है?

ईरानी संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति आयोग के एक सदस्य ने कहा है कि परमाणु वार्ता को पटरी से हटाने के लक्ष्य पश्चिम तेहरान पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगा रहा है जबकि पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के हनन के संबंध में सबसे लंबा और काला इतिहास जायोनी शासन, अमेरिका और यूरोप का है।

जलाल रहीमी जहानाबादी ने पत्रकारों से वार्ता में कहा कि ईरान के साथ पश्चिम की परमाणु वार्ता का नतीजा उसकी इच्छा के अनुसार नहीं रहा क्योंकि पश्चिम परमाणु वार्ता में ईरान पर अपने दृष्टिकोणों को थोपने की चेष्टा में था कि ईरान अपनी परमाणु गतिविधियों और मिसाइल कार्यक्रम को सीमित कर दे।

जानकार हल्कों का मानना है कि जब अमेरिका, पश्चिम और यूरोपीय देशों ने देख लिया कि परमाणु वार्ता में न तो ईरान पर अपने अतार्किक दृष्टिकोणों को थोप सकते हैं और न ही कोई विशिष्टता ले सकते हैं तो उन्होंने मानवाधिकार को ईरान पर दबाव डालने का बेहतरीन हथकंडा समझा और इसी को वे इस समय पूरे ज़ोर शोर से उठा रहे हैं।

रोचक बात यह है कि पश्चिमी व यूरोपीय देश ईरान में उपद्रवियों का समर्थन कर रहे हैं और उन्हें क्रांतिकारी और बहादुर बता रहे हैं पर जब अपने ही देशों में होने वाले प्रदर्शनों की बात आती है तो इन देशों की पुलिस बड़ी की निर्ममता से प्रदर्शनकारियों को मारती और उनका दमन करती है। फ्रांस और ब्रिटेन में सरकार विरोधी होने वाले प्रदर्शनों और प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्यवाहियों को इसी दिशा में देखा जा सकता है।

यही नहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कहते हैं कि कानून का उल्लंघन करने वाले प्रदर्शनकारियों को पुलिस की शक्ति का आभास होना चाहिये। साथ ही उन्होंने कहा कि मैं पुलिस का समर्थन करता हूं। दूसरे शब्दों में जब पश्चिमी देशों में प्रदर्शन वहां की सरकारों के खिलाफ होते हैं तो वहां के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति प्रदर्शनकारियों की मांगों पर ध्यान देने के बजाये उनके दमन के लिए पुलिस के समर्थन पर बल देते हैं और स्वंय को मानवाधिकारों की रक्षा और आज़ादी का ठिकेदार बताते हैं।

अमेरिका ने वर्ष 1945 में जापान के दो नगरों हीरोशीमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी करके दो लाख से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया और आज तक उसने इस जघन्य अपराध के लिए माफी तक नहीं मांगा, इराक और अफगानिस्तान पर आतंकवाद और सामूहिक विनाश के हथियारों से मुकाबले के बहाने हमला करके दसियों हजार लोगों की हत्या कर दी। इसी प्रकार अमेरिका सीरिया में आतंकवाद से मुकाबले के बहाने वहां का तेल निकाल रहा है और इस देश में अमेरिका और आतंकवादियों के हमलों में एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और इस देश के बहुत से इलाके खंडहर बन गये हैं। यह सब अमेरिकी मानवाधिकार और उसके क्रियाकलापों के मात्र कुछ नमूने हैं।

जायोनी शासन 73 साल से अधिक समय से फिलिस्तीनियों का खून बहा रहा है, उनकी अधिकांश ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है, लगभग एक लाख फिलिस्तीनियों की हत्या कर चुका है और चालिस लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को उनकी मातृभूमि से निकाल दिया है और उन्हें स्वदेश वापस आने की अनुमति भी नहीं दे रहा है।

इसी तरह मानवाधिकारों के हनन में पश्चिम और यूरोपीय देशों का अतीत बहुत लंबा है। ब्रिटेन ने दुनिया के कितने देशों पर कब्ज़ा किया, वहां के स्रोतों को खूब लूटा और वहां के स्थानीय लोगों की हत्यायें की। भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटेन की करतूतों को एक छोटे से नमूने के तौर पर देखा जा सकता है।

बहरहाल अमेरिका, जायोनी शासन और यूरोपीय देशों ने मानवाधिकारों के हनन में अपना एक रिकार्ड कायेम कर रखा है और ईरान पर दबाव डालने के लक्ष्य से उस पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप मढ़ रहे हैं।

ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा हैः अमेरिका

अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेन्स डायरेक्टर ने कहा है कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो इस बात का सूचक हो कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है।

समाचार एजेन्सी इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार शनिवार को अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेन्स डायरेक्टर एवरल हीन्स ने कहा कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो इस बात का सूचक हो कि ईरान ने परमाणु हथियार बनाने का निर्णय किया हो।

हीन्स ने अपने बयान के एक भाग में उत्तरी कोरिया के संबंध में कहा कि यह देश जानता है कि चीन इस बात को पसंद नहीं करता है कि परीक्षण करने के कारण प्यंगयांग को दंडित किया जाये। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि चीनी राष्ट्रपति इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि कोरोना से मुकाबले के लिए पश्चिमी देशों से किसी बेहतर वैक्सीन को कबूल करें।

उन्होंने मॉस्को और बीजींग के मध्य सहयोग के बारे में भी कहा कि चीन यूक्रेन युद्ध में रूस की मदद कर रहा है परंतु बीजींग मास्को का सैन्य समर्थन नहीं कर रहा है। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि हम यूक्रेन में युद्ध के कम होने के साक्षी हैं।

अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेन्स डायरेक्टर एवरल हीन्स ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति विलादिमीर पुतीन ने अपने राजनीतिक लक्ष्यों को परिवर्तित नहीं किया है और कम से कम जिस चीज़ को मैं देख रही हूं वह यह है कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरी भविष्यवाणी यह है कि अगले महीनों में धीमी गति से यूक्रेन युद्ध जारी रहेगा।

इराक़ में अब भी आतंकियों के समर्थन कर रहा है अमरीका

इराक़ के सुरक्षा अधिकारी ने बताया है कि देश में अमरीकी आज भी आतंकियों का समर्थन कर रहे हैं।

इराक़ की संसद की सुरक्षा समिति के एक सदस्य अहमद रहीम ने बताया है कि इराक़ के दियाला प्रांत के कुछ क्षेत्रों विशेषकर हमरीन और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में घात लगाकर बैठे आतंकवादियों का अमरीका समर्थन कर रहा है। यह आतंकवादी इन क्षेत्रों से इराक़ के सुरक्षाबलों पर हमले करते हैं।

इसी बीच इराक़ के एक सांसद शअलान अलकरीम ने बताया है कि अमरीकी सैनिक इराक़ में सक्रिय आतंकी गुटों का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस वास्तविकता को इराक़ के सलाहुद्दीन प्रांत में बहुत ही स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है जहां पर अमरीकी सैनिक हेलिकाप्टरों के माध्यम से आतंकी गुटों की सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त अमरीकी सैनिक सादे कपड़ों में आतंकवादियों के साथ दिखाई दिये जो आतंकवादियों की स्वतंत्रता के लिए दबाव बना रहे थे।

सीरिया से मिलने वाली इराक़ की सीमा पर अमरीकी सैनिकों की उपस्थति के संदर्भ में एक इराक़ी टीकाकार सबाह अलअक़ीली का कहना है कि इन अमरीकी सैनिकों की वहां पर उपस्थति सीरिया के लिए बहुत अधिक ख़तरनाक है क्योंकि वर्तमान स्थति में वह सीमारेखा पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित करने में अक्षम है।

ज्ञात रहे कि इराक़ में मौजूद अमरीकी सैनिकों की वापसी के मुद्दे पर बग़दाद और वाशिग्टन के बीच होने वाली कई चरणों की वार्ता के बावजूद अमरीका अब भी इराक़ के भीतर वहां के क़ानून का हनन करता रहता है और वह अवैध ढंग से वहां पर मौजूद है।

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