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अरब डायरी : तीन दिवसीय युद्ध का अस्ली विजेता कौन है?

इस्राईली मीडिया का कहना है कि इस्राईल के अधिकारी इस बात से डरे हुए हैं कि अगर पश्चिमी देश ईरान के परमाणु समझौते में वापसी कर लेते हैं यह इस्राईल के लिए बड़ी चिंता की बात होगी।

यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रभारी जोज़ेप बोरेल ने हाल ही में कहा है कि समझौते का अंतिम मसौदा तैयार हो गया है। इस एलान के बाद इस्राईली अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है। अमरीका में डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार के ज़माने में परमाणु समझौता हुआ था और वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन इस समझौते के समर्थक माने जाते हैं।

इस बीच इस्राईली अधिकारी यह भी कह रहे हैं कि परमाणु समझौता बहाल होने की संभावना कम है। अधिकारियों ने इस्राईली मीडिया से बातचीत में कहा कि अंतिम मसौदा तैयार हो जाने की बातें तो हो रही हैं लेकिन सच्चाई यह है कि समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना कम है।

इस्राईली अधिकारी यह बयान भी दे रहे हैं कि अगर पश्चिमी देशों ने ईरान से समझौता कर लिया तो इस्राईल तत्काल इस समझौते को ख़ारिज नहीं करेगा बल्कि इस बारे में बातचीत करेगा।

टीकाकार कहते हैं कि इस्राईल के लिए चिंता की यही बात है कि वह परमाणु समझौते के बारे में जो सोच रखता है पश्चिमी देश यहां तक कि इस्राईल के क़रीबी घटक भी उस सोच से सहमत नहीं हैं यानी इस मसले में इस्राईल अलग थगल पड़ा हुआ है। इसी लिए इस्राईल चाहता है कि परमाणु समझौता हो जाने की स्थिति में वह तत्काल इस समझौते को ख़ारिज न करे।

इस्राईल के एक अधिकारी ने मीडिया को इतमीनान दिलाने की कोशिश की कि ईरान ख़ुद भी परमाणु समझौते की बहाली नहीं चाहता।

दोस्तो जैसाकि आपको ज्ञात है कि जायोनी सेना ने गत शुक्रवार को ग़ज्ज़ा पट्टी पर हमला करके दर्जनों फिलिस्तीनियों को शहीद व घायल कर दिया था।

फिलिस्तीन से जो सूचनायें मिली हैं उनके अनुसार इस तीन दिवसीय युद्ध में 45 फिलिस्तीनी शहीद और 360 से अधिक घायल हुए हैं। शहीद होने वालों में 15 बच्चे भी शामिल हैं।

जायोनी शासन अपने संचार माध्यमों के ज़रिये इस बात का प्रचार कर रहा है कि इस तीन दिवसीय युद्ध में हमास ने जेहादे इस्लामी का साथ नहीं दिया किन्तु जायोनी शासन जिस वास्तविकता की अनदेखी कर रहा है वह यह है कि इस युद्ध में जेहादे इस्लामी ने अकेले इस्राईल के अपराधों का मुंहतोड़ जवाब दिया इस प्रकार से कि हमलावर इस्राईल तीन दिन के भीतर ही होश में आकर युद्ध विराम कर लिया।

यही नहीं जेहादे इस्लामी ने युद्धविराम की अपनी शर्तों को इस्राईल को मानने पर बाध्य कर दिया। इस आधार पर जो प्रचार किया जा रहा है उसके विपरीत इस तीन दिवसीय युद्ध का परिणाम कोई विशेष इस्राईल के हित में नहीं रहा विशेषकर इसलिए कि जेहादे इस्लामी ने इस आंदोलन के एक वरिष्ठ कमांडर को स्वतंत्र करने पर भी इस्राईल को बाध्य कर दिया।

इसी प्रकार इस तीन दिवसीय युद्ध से इस्राईल के कार्यवाहक प्रधानमंत्री याइर लैपिड के वास्तविक चेहरे से विश्व जनमत अधिक स्पष्ट हो गया। चूंकि लैपिड का कोई सैनिक अतीत नहीं है इसलिए बहुत से लोग यह सोचते थे कि लैपिड दूसरे जायोनी नेताओं से भिन्न हैं और वे अतिवादी सोच नहीं रखते हैं परंतु तीन दिवसीय युद्ध ने स्पष्ट कर दिया कि लैपिड न केवल नेतनयाहू और दूसरे अतिवादी जायोनी नेताओं से भिन्न नहीं हैं बल्कि उनसे भी बदतर और अतिवादी हैं क्योंकि जायोनी सेना ने उन्हीं के आदेश से तीन दिवसीय युद्ध आरंभ किया था जिसके दौरान 15 मासूम बच्चों सहित 45 फिलिस्तीन शहीद हो गये और 360 से अधिक घायल हो गये। घायल होने वालों में सबसे अधिक संख्या बच्चों की है।

इसी प्रकार इस तीन दिवसीय युद्ध के दौरान फिलिस्तीनियों के एक हज़ार मकानों को नुकसान पहुंचा। चूंकि ग़ज्जा पट्टी का क्षेत्रफल 350 वर्ग किलोमीटर है और उसकी जनसंख्या लगभग 20 लाख से अधिक है इस बात के दृष्टिगत वहां की अधिकांश जनसंख्या जवान, नौजवान और बच्चे हैं इसलिए घायल होने वालों में अधिकांश बच्चे ही हैं और ग़ज़्ज़ा पट्टी में सैनिक एवं गैर सैनिक लक्ष्यों को अलग करना बहुत कठिन बल्कि संभव नहीं है। इसी वजह से जब भी इस्राईल गज्ज़ा पट्टी पर हमला करता है उसके पाश्विक हमलों में अधिकतर आम लोग और बच्चे अधिक मारे जाते हैं।

यद्यपि याइर लैपिड इस्राईल के भीतर स्वंय को विजयी समझ रहे हैं और अतिवादी जायोनियों के मध्य उनकी लोकप्रियता अधिक हो गयी है परंतु वास्तविकता यह है कि इस तीन दिवसीय युद्ध में भी जायोनी शासन को मुंह की खानी पड़ी है और उसके अंदर जेहादे इस्लाम के जवाबी मिसाइलों व राकेटों को सहन करने की अधिक ताकत नहीं थी इसलिए तुरंत जेहादे इस्लामी की मांगों को स्वीकारते हुए उसने युद्ध विराम कर लिया।

कुल मिलाकर सैनिक और नैतिक दृष्टि से लैपिड युद्ध हार गये और अगर लैपिड अच्छी पोज़िशन में होते तो वे कभी भी युद्ध विराम न करते और इस्राईली सेना के अपराधों के जारी रहने पर बल देते परंतु मिस्र की मध्यस्थता में उन्होंने जेहादे इस्लामी आंदोलन की शर्तों को स्वीकार करके विश्व जनमत के सामने अपनी हार कबूल कर ली। लेबनान के इस्लामी आंदोलन हिज्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह के उस बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि इस्राईल के अंदर इससे अधिक जेहादे इस्लामी के मिसाइलों को बर्दाश्त करने की ताक़त नहीं है।

सज़ा न मिलने के कारण इस्राईल दुस्साहसी हुआ हैः ह्यूमन राइट्स वाॅच

ह्यूमन राहट्स वाच का मानना है कि जबतक इस्राईल को दंडित नहीं किया जाता उसके अत्याचार जारी रहेंगे।

मानवाधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ह्यूमन राइट्स वाच ने इस बात पर बल दिया है कि इस्राईल को सज़ा न देने के कारण ही आज वह फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध खुलकर अपराध कर रहा है।

मंगलवार को ह्यूमन राइट्स वाच की ओर से किये गए ट्वीट में लिखा गया है कि पिछले तीन दिनों के दौरान ग़ज़्ज़ा में इस्राईल और फ़िलिस्तीनियों के बीच झड़पों में दसियों फ़िलिस्तीनी शहीद हुए हैं जिनमें 15 बच्चे शामिल हैं। उसके अनुसार जबतक इस्राईल को दंडित नहीं किया जाता उस समय तक उसकी हिंसक कार्यवाहियां जारी रहेंगी।

ह्यूमन राहट्स वाच की ओर से किये गए इस ट्वीट से पहले कई फ़िलिस्तीनी गुट और संगठन, ज़ायोनियों के अत्याचारों पर विश्व समुदाय की चुप्पी की आलोचना कर चुके हैं। उनका यह मानना है कि विश्व समुदाय की इसी चुप्पी ने अवैध ज़ायोनी शासन को अधिक दुस्साहसी बना दिया है।

ज्ञात रहे कि शुक्रवार की शाम से ज़ायोनियों ने ग़ज़्ज़ा पट्टी पर फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध हमले आरंभ किये। बाद में मिस्र की मध्यस्थता से होने वाले संघर्ष विराम के बावजूद ज़ायोनी शासन अपनी हिंसक एवं अमानवीय कार्यवाहियों को जारी रखे हुए है।

इस्राईल ने फ़तह आंदोलन के तीन कमांडरों को नाबलुस में मारा

ज़ायोनी शासन ने फ़तह आंदोलन की सैनिक शाखा अलअक़सा ब्रिगेड के तीन कमांडरों को शहीद कर दिया। मारे गए कमांडरों का नाम इब्राहीम नाबलुसी, इस्लाम सबूह और हुसैन ताहा है।

इस्राईली सेना ने एक बयान में कहा कि नाबलुस में इब्राहीम नाबलुसी के घर को उसने घेर लिया जिसके बाद फ़ायरिंग शुरु हो गई और फ़ायरिंग में घर के भीतर मौजूद तीन कमांडर मारे गए।

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में बताया है कि इस्राईल ने आपराधिक हरकत करते हुए तीन कमांडरों को शहीद कर दिया है।

इस्राईली सेना इब्राहीम नाबलुसी को इससे पहले भी कई बार क़त्ल करने की कोशिश कर चुकी थी मगर वह कामयाब नहीं हुई।

इस्राईली सेना का कहना है कि इब्राहीमी कई बार इस्राईली सेना पर फ़ायरिंग कर चुके थे।

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के प्रमुख की आशूर की तक़रीर से तहलका

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के प्रमुख सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी ने आशूर के दिन अपनी तक़रीर में चार महत्वपूर्ण बिंदुओं को बयान करके तहलका मचा दिया है।

सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी ने कहा कि दुश्मन धार्मिक विषयों में उलटफेर की कोशिश में है और यह बड़ा ख़तरा है। इससे पहले ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई भी अपनी तक़रीर में इस बिंदु को उठाया था। इसका मतलब यह है कि कुछ ताक़ते हैं जो धार्मिक विषयों और धार्मिक विमर्श को उनके असली रूप से हटाकर किसी अन्य शक्ल में पेश करने की कोशिश करती हैं। धार्मिक विषयों के साथ ही सामाजिक मुद्दों और ज़मीनी सच्चाई को भी बदलने की कोशिश की जाती है और यह दुश्मन की साफ़्ट वार का हिस्सा है।

दुश्मनों को यह पता है कि धर्म इस्लामी समाज को एकजुट करने में बड़ी प्रभावी भूमिका रखता है इसलिए उनकी कोशिश होती है कि धर्म को निशाना बनाएं। सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी ने कहा कि दुश्मन इस कोशिश में है कि धार्मिक शिक्षाओं और उसूलों को समाज में हाशिए पर डाल कर मुसलमानों को गुमराह करे और फिर उन पर अपना वर्चस्व स्थापित कर ले।

सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी की तक़रीर का दूसरा बिंदु यह था कि आशूर से दूसरा बड़ा सबक़ यह मिलता है कि ज़ुल्म का विरोध करना चाहिए। अगर प्रतिरोध की बात की जाए तो ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद से यह विचार प्रबल रूप से फैला है और इसका असर स्पष्ट रूप से नज़र आया है। मगर प्रतिरोध का सबसे अच्छा सबक़ आशूर की घटना से ही मिलता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला में आशूर के दिन प्रतिरोध की जो मिसाल क़ायम की है वह हर दौर में और हर समाज के लिए प्रासांगिक है। इस रास्ते पर चलकर हर दौर में बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। इमाम हुसैन इसी रास्ते पर चलते हुए शहीद हो गए। सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी का कहना था कि अन्याय और ज़ुल्म की जब बात आ जाए तो हमें इमाम हुसैन के रास्ते पर चलना चाहिए और हरगिज़ सर नहीं झुकाना चाहिए।

सैयद अब्दुल मलिक की तक़रीर का तीसरा बिंदु यह था कि कुछ अरब सरकारें इस्राईल से रिश्ते स्थापित कर रही हैं। यह काम औपचारिक और अनौपचारिक दो तरीक़े चल रहा है। इमारात और बहरैन ने सितम्बर 2020 में एलान करके इस्राईल से संबंध स्थापित कर लिए और यह सिलसिला अब तक जारी है वहीं दूसरी ओर सऊदी अरब ने इस्राईल से अपने रिश्तों का एलान तो नहीं किया है लेकिन सऊदी अरब और इस्राईल के बीच सहयोग चल रहा है। सैयद अब्दुल मलिक अलहौसी ने कहा कि सऊदी अरब ने एक ज़ायोनी को मक्के में जाने की अनुमति दी जो इस्लामी पवित्र स्थलों का खुला अपमान है। इसके अलावा इस्राईली विमानों के लिए सऊदी अरब ने अपनी वायु सीमा खोल दी है।

चौथा बिंदु यह है कि दुश्मनों का अस्ली लक्ष्य इस्लामी जगत पर वर्चस्व स्थापित करना है। इस विषय पर पश्चिमी देश और ज़ायोनी ताक़तें कई दशकों से काम कर रही हैं। उनके सामने सबसे बड़ी रुकावट वे देश और संगठन हैं जो स्वाधीनता पर ज़ोर देते हैं और स्वाधीनता के लिए दुश्मन से जंग करन पर तैयार हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वाधीनता की रक्षा का रुजहान लगातार बढ़ता जा रहा है जिसके कारण पश्चिमी ताक़तों और ज़ायोनियों पर अब मायूसी छा रही है।