उत्तर प्रदेश राज्य

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की राष्ट्रभक्ति पर मुख्तार अब्बास नकवी के बयान से मची खलबली

नई दिल्ली: देश में शिक्षा के क्षेत्र में इंक़लाब लाने का काम करने वाली अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी सांप्रदायिक राजनीति की भेंट चढ़ती हुई नज़र आरही है,भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रामण्यम स्वामी ने पिछले दिनों आतँकी विचारों का गढ़ बताकर अपमान किया था तो अब मोहम्मद अली जिन्नाह की फ़ोटो को लेकर विवाद खड़ा हुआ है।

बढ़ते विवाद पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों और प्रशासन से इस मुद्दे का संवेदनशील समाधान निकालने की अपील की है।

मुख़्तार अब्बास नकवी मीडिया से खास बातचीत में कहा कि जिन्ना भारतीय मुसलमानों और हिंदुस्तान के आदर्श नहीं हैं। यह एक संवेदनशील मुद्दा है, इसमें किसी तरह का विवाद करके संवेदनशीलता को खराब करने की जरूरत नहीं है।

मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, मुझे पूरा यकीन है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों और प्रशासन की राष्ट्रभक्ति पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता।

केंद्रीय मंत्री नकवी ने कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे का प्रशासन और छात्र मिलकर समाधान करेंगे। उन्होंने कहा, हम सभी चाहते हैं कि इसका समाधान जल्दी से जल्दी होना चाहिए।छात्र संघ के फोटो लगे रहने के तर्क पर नकवी ने कहा कि 1938 के बाद देश के अंदर बहुत कुछ बदला है. जो लोग तर्क दे रहे हैं उनको इस बात का एहसास करना चाहिए।

वहीं इस मामले पर योगी के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि राष्ट्र निर्माण में जिन महापुरुषों का योगदान रहा है उनपर अंगुली उठाना घटिया बात है। उन्होंने कहा कि देश के बंटवारे से पहले इस देश में जिन्ना का भी योगदान है। मौर्य ने ऐसा बयान देकर अब अपनी पार्टी के नेता को कटघरे में खड़ा किया।

अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने एएमयू के कुलपति तारिक मंसूर को लिखे अपने पत्र में विश्वविद्यालय छात्रसंघ के कार्यालय की दीवारों पर पाकिस्तान के संस्थापक की तस्वीर लगे होने पर आपत्ति जताई थी।

विश्वविद्यालय के प्रवक्ता शाफे किदवई ने दशकों से लटकी जिन्ना की तस्वीर का बचाव किया और कहा कि जिन्ना विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्य थे और उन्हें छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई थी।

प्रवक्ता ने कहा, ‘जिन्ना को भी 1938 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई थी। वह 1920 में विश्वविद्यालय कोर्ट के संस्थापक सदस्य और एक दानदाता भी थे। ’उन्होंने कहा कि जिन्ना को मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग किए जाने से पहले सदस्यता दी गई थी।