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इतिहास में पहली बार मोदी राज में रुपया पहुँचा सबसे निचले स्तर पर,आम आदमी पर पड़ेगी महँगाई की मार

नई दिल्ली: पिछले लगभग तीन महीनों से भारतीय रुपये में 7 फीसद तक कि गिरावट दर्ज हुई है,एशियाई देशों में रुपये को सबसे ज़्यादा नुक़सान का सामना करना पड़ रहा है,वहीं दुनियाभर की अन्य कई देशों की करेंसी भी डॉलर के सामने धड़ाम हैं।

नरेंद्र मोदी सरकार में रुपये ने डॉलर के मुकाबले गिरावट का एक नया रिकाॅर्ड बनाया है,आज भारतीय रुपया 34 पैसे की गिरावट के साथ 72.09 के नये निचले स्तर पर फिसल चुका है जो रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर है।जून 2018 के बाद अब तक रुपये में 7 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिला है। सभी एशियार्इ करेंसी की तुलना में बात करें तो रुपये में सबसे अधिक गिरावट देखने को मिल रही है। रुपये में इस भारी गिरावट से भारतीय बाजार पर खासा असर देखने को मिलेगा।

रुपये की गिरावट से आम आदमी की जेब बुरी तरह से कटेगी और इससे भारतीय बाज़ार को बड़ा झटका लगेगा भारतीय बाज़ार को कच्चे तेल के बिल को लेकर भारी नुक़सान होगा। पिछले पांच साल में कच्चे तेल के आैसत अायात की बात करें तो ये 5 फीसदी रहा है। इस हिसाब से 2018 कें अंत तक 3.6 फीसदी तक की बढ़ जाएगी। इसके साथ ही अब कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत को पहले से अधिक रुपये खर्च करने होंगे। एेसे में घरेलू तेल विपणन कंपनियां भी पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में इजाफा करेंगी। सबसे बड़ा असर डीजल के भाव में बढोतरी से देखने को मिलेगा।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआर्इ) के अनुसार भारतीय रुपये में 5 फीसदी की गिरावट से महंगार्इ दर में करीब 20 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी देखने को मिलेगा। आरबीआर्इ की इसी गणित के हिसाब से देखें तो यदि इस साल के अंत तक रुपये में 14 फीसदी की गिरावट होती है तो महंगार्इ दर में 56 बेसिस प्वाइंट का इजाफा देखने को मिल।

अगर रुपये में लगातार गिरावट का दौर जारी रहा तो आरबीआर्इ को मजबूरन रेगुलेटरी ब्याज दर में भी बढ़ोतरी करना होगा। ब्याज दरों में बढ़ोतरी से खपत आैर खर्च पर नाकारात्मक असर देखने को मिलेगा। खपत आैर खर्च में भी गैप बढ़ता जाएगा। वित्त वर्ष 2014 में भी ब्याज दरों में लगातार तीन बार बढ़ोतरी के बाद निजी खपत एवं खर्च में 2 फीसदी का इजाफा हुआ था।