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इमरान ख़ान ने बनाया रिकॉर्ड, सात सीटों पर ख़ुद लड़े थे चुनाव 6 पर जीते, विपक्षी 13 पार्टियों के गठबंध उम्मीदवारों को अकेले हराया : रिपोर्ट

पाकिस्तान में रविवार को नेशनल असेंबली की आठ सीटों और प्रांतीय विधानसभा की तीन सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे. उपचुनावों में इमरान ख़ान की पार्टी ने आठ में से छह सीटों पर जबकि पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) ने दो सीटों पर जीत हासिल की.

पंजाब की तीन प्रांतीय सीटों में से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने दो और मुस्लिम लीग-नून ने एक सीट जीती.

पीटीआई के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ख़ुद नेशनल असेंबली की आठ सीटों में से सात के लिए उम्मीदवार थे. शाह महमूद कुरैशी की बेटी मेहर बानो कुरैशी ने मुल्तान सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वो पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी के बेटे अली मूसा गिलानी से चुनाव हार गईं.

अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) एनपी ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा, जमीयत उलेमा इस्लाम एफ़ (जेयूआईएफ़) ने एक सीट, पीपल्स पार्टी ने दो सीटों, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (पीएमएल-एन) ने दो सीटों और मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) ने एक सीट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन किसी भी पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई.

ज़्यादा आक्रामक अंदाज़ में दिखेंगे इमरान ख़ान?

इमरान ख़ान ने नेशनल असेंबली की आठ में से सात सीटों पर चुनाव लड़ा और अपने ही पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए छह में सफल रहे.

साल 2018 के आम चुनाव में उन्होंने नेशनल असेंबली की पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. इसलिए, यह कहा जा सकता है कि वे राजनीतिक लोकप्रियता की ऊंचाइयों को छू रहे हैं.

ख़ैबर पख्तूनख्वा में, पिछले साल के स्थानीय सरकार के चुनावों के परिणाम, खासकर पहले चरण में पीटीआई को एक बड़ा झटका लगा था, लेकिन उपचुनाव में तीन सीटों पर मिली सफलता ने पार्टी के विश्वास को बढ़ाया.

ख़ैबर पख्तूनख्वा के मोर्चे पर एएनपी, जेयूआईएफ और उनके सहयोगी पूरी तरह से हार गए. इसी तरह, पंजाब के दो सबसे महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्रों, फ़ैसलाबाद एनए 108 और ननकाना साहिब एनए 118 में इमरान ख़ान ने पीएमएल-एन के उम्मीदवारों को हराया है.

इस साल जुलाई में प्रांतीय निर्वाचन क्षेत्रों में हार के बाद पंजाब में पीएमएल-एन की यह हार एक बहुत ही चिंताजनक पहलू है. इसी तरह कराची के एक निर्वाचन क्षेत्र में इमरान ख़ान ने एमक्यूएम के उम्मीदवार को हराकर कराची में अपनी लोकप्रियता बनाए रखी है.

अब सवाल यह है कि चुनावी नतीजों की लोकप्रियता के बाद क्या इमरान ख़ान और आक्रामक रुख अख्तियार कर सकते हैं?

इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक सोहेल वराइच का कहना है कि ”इमरान ख़ान नेशनल असेंबली की छह सीटों पर जीत से खुश होंगे और इसे अपनी लोकप्रियता की जीत कहेंगे, जिसके बाद वह हवा के घोड़े पर सवार होंगे.”

चुनावी मामलों के विशेषज्ञ अहमद बिलाल महबूब ने कहा, ”नेशनल असेंबली की सीटों पर पीटीआई के शानदार प्रदर्शन ने इमरान ख़ान की लोकप्रियता पर मुहर लगा दी है. अब वे ऊंचे स्वर में निकलेंगे

Kamran Khan
@AajKamranKhan
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Imran Khan’s massive popularity way ahead of all other politicians. Pakistanis from Mardan Peshawer in KPK Faisalabad Nankana in Punjab Karachi in Sindh overwhelmingly voted Khan over 13 parties ruling alliance in bye elections today. IK tsunami now impossible to stop.

 

उपचुनाव की ख़ास बातें

पाकिस्तान में रविवार को नेशनल असेंबली की आठ सीटों और प्रांतीय विधानसभा की तीन सीटों के लिए उपचुनाव हुए.
इमरान ख़ान की पार्टी ने नेशनल असेंबली की आठ में से छह सीटों सीटों पर जीत दर्ज की.
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) ने दो सीटों पर जीत हासिल की.
पंजाब की तीन प्रांतीय सीटों में से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने दो सीटें जीती.
मुस्लिम लीग-नून को एक सीट पर जीत मिली.
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान खुद नेशनल असेंबली की आठ सीटों में से सात के लिए उम्मीदवार थे.
शाह महमूद कुरैशी की बेटी मेहर बानो कुरैशी ने मुल्तान सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव हार गईं.

इमरान ख़ान के मतदाताओं ने क्या साबित किया?

पीटीआई कार्यकर्ताओं के बारे में यह भी धारणा है कि वे इमरान ख़ान की रैलियों में भाग लेते हैं, लेकिन मतदान में चुनावी रैलियों की तरह उत्साह नहीं दिखाते हैं.

इसके अलावा इमरान ख़ान सोशल मीडिया पर काफ़ी लोकप्रिय हैं और मीडिया में रहने का हुनर जानते हैं. लेकिन इमरान ख़ान को अपने क्षेत्र की राजनीति और युवा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले उनके वोटर की समस्याओं को ज़रूर समझना चाहिए.

इमरान ख़ान लगातार भाषण देते हैं, सोशल मीडिया पर लिखते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनकी बातों का असर कम होता है. इसलिए यह संभव है कि मतदान केंद्र तक लोगों को अपने पक्ष में आकर्षित करने में अक्सर विफल हो जाते हैं, ऐसा जानकारों का मानना है.

हालांकि, रविवार को हुए चुनाव ने इमरान ख़ान के वोटरों को एक अलग ही रूप दे दिया है.

अब सवाल यह उठता है कि क्या इमरान ख़ान अपनी राजनीतिक श्रेष्ठता को हथियार की तरह इस्तेमाल करेंगे?

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इमरान ख़ान नवंबर में होने वाली सेना प्रमुख की महत्वपूर्ण नियुक्ति को प्रभावित करने के लिए अपने नेतृत्व का इस्तेमाल करेंगे.

उपचुनाव से पहले ही, यह पहलू राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा में था कि इमरान ख़ान पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी को यह एहसास कराना चाहते हैं कि वह सबसे लोकप्रिय नेता हैं. वक़्त और लोग उनके साथ हैं.

इसलिए उपचुनाव में ज़्यादा सीटें जीतने के बाद वे यह दिखावा करेंगे कि सत्ताधारी पार्टी अपनी ग़लती समझ गई है.

जीत के बाद क्या करेंगे इमरान
कुछ ऐसा ही असद उमर ने रविवार रात चुनाव परिणाम के समय कहा था. उन्होंने कहा, ”छह महीने में क्या हुआ, लोगों ने आज अपना गुस्सा निकाला, निर्णय लेने वालों को अपनी ग़लती समझनी चाहिए.”

उपचुनाव के नतीजों से इमरान ख़ान सत्ता पक्ष पर दबाव बनाकर अपने लिए राजनीतिक जगह बनाने की कोशिश कर सकते हैं.

इमरान ख़ान हाल के दिनों में कई बार लॉन्ग मार्च के संकेत दे चुके हैं, लेकिन इसी सिलसिले में उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से शपथ भी ली है.

उपचुनाव से पहले कहा जा रहा था कि अगर इमरान ख़ान जीते तो जनता उनके साथ है और अगर हार गए तो इस्लामाबाद में यह कहते हुए चुनाव आयोग की आलोचना करेंगे कि हमारे साथ धांधली हुई है.

अब जबकि उन्होंने ख़ुद सात में से छह सीटें औपचारिक और अनौपचारिक परिणामों के अनुसार जीत ली हैं, तो संभावित लॉन्ग मार्च कितना प्रभावी हो सकता है?

इस सवाल के जवाब में राजनीतिक विश्लेषक मुर्तजा सोलंगी ने कहा, ”इमरान ख़ान ने उपचुनाव जीतने के लिए अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल किया और इस सफलता की बदौलत उन्होंने इस्लामाबाद लॉन्ग मार्च को सही ठहराया और कुछ हद तक उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल किया.”

जबकि राजनीतिक विश्लेषक सलमान गनी इससे अलग राय रखते हैं. वो कहते हैं, ”मुझे लगता है कि इमरान ख़ान अपनी जीत के बाद एक लंबा मार्च नहीं करेंगे. वह फ़िलहाल अपने पुराने साथियों और वकीलों की सलाह पर भरोसा कर रहे हैं.”

पंजाब में PML-N की हार का क्या मतलब है?
पीएमएल-एन उम्मीदवारों को पीटीआई के अध्यक्ष इमरान ख़ान से मुकाबले में पंजाब में नेशनल असेंबली की दो सीटों एनए-108 और एनए-118 में हार का सामना करना पड़ा.

फ़ैसलाबाद की एनए 108 सीट पर आबिद शेर अली स्पष्ट रूप से हार गए थे जबकि ननकाना साहिब सीट पर शजरा मनसब अपनी सीट नहीं बचा सके.

अब सवाल यह है कि मुस्लिम लीग नून का वोटर कहां गया?

विश्लेषकों का मानना है कि पीएमएल-एन का मतदान प्रतिशत धीरे-धीरे कम हो रहा है और यह पहलू इस पार्टी के लिए बेहद चिंताजनक है.

सोहेल वड़ैच के मुताबिक़, ”ये चुनाव लोकप्रियता के बखान पर हुए थे. पंजाब से पीएमएल-एन की सीटों का नुक़सान उनके लिए चिंता का विषय होगा. मुस्लिम लीग-एन के पास वोट बैंक है, लेकिन अब यह घट रहा है. यह हार मुस्लिम लीग-एन पर दबाव बनाएगी.”

पंजाब में पीएमएल-एन की हार पर मुर्तजा सोलंगी ने कहा, ”पीएमएल-एन पंजाब में हार गई है. उपचुनाव की लड़ाई में इस पार्टी को सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ. मुस्लिम लीग-नून ने इस चुनाव में अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन नहीं किया.”

देखा जाए तो चुनाव लड़ रहे पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) में शामिल पार्टियों का प्रदर्शन बिल्कुल ख़राब रहा है, लेकिन क्या यह प्रदर्शन पीडीएम की एकता कायम रख पाएगा या उसमें दरार पड़ सकती है?

इस सवाल के जवाब में अहमद बिलाल महबूब ने कहा कि ”पीडीएम का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. यदि उनका प्रदर्शन अच्छा होता तो इस गठबंधन में शामिल दलों का विश्वास बढ़ जाता, लेकिन मौजूदा प्रदर्शन से उनका विश्वास टूट सकता है और गठबंधन कायम नहीं रह सकता है.”

विश्लेषक सलमान गनी ने कहा कि पीडीएम में शामिल पार्टियों पर दबाव जरूर है, लेकिन सरकार की सहयोगी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने नेशनल असेंबली में दो सीटें जीतकर दबाव कम किया है. एक प्रांतीय सीट भी मुस्लिम लीग-एन ने जीती है.

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अहमद इजाज़ी
पत्रकार और लेखक, बीबीसी उर्दू के लिए