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इस्राईल के कट्टरपंथी मंत्री का मस्जिदुल अक़सा पर हमला, दुनिया ख़ामोश!

इस्राईल के कट्टरपंथी मंत्री ने धमकी देने के बाद मस्जिदुल अक़सा का अनादर कर दिया और पूरी दुनिया ख़ामोश तमाशाई बनी रही।

इस्राईल की नई गठबंधन सरकार में नेश्नल सिक्युरिटी के मंत्री का पदभार संभालने के बाद कट्टरपंथी नेता इतमार बिन ग़फ़ीर ने मस्जिदुल अक़सा पर यलग़ार की धमकी दी थी।

यह कट्टरपंथी इस्राईली मंत्री पहले ही भड़काऊ कार्यवाहियों और कट्टरपंथी दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध है। यह कट्टरपंथी मंत्री कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मुसलमानों के पहले क़िब्ले में घुस गया ।

क़ुदस के मामलों के टीकाकार ज़ियाद अबहीस ने कहा कि चरमपंथी ज़ायोनी संगठनों ने आने वाले दिनों के लिए अपना एजेंडा तैयार कर लिया है और उसे मंत्री को सौंप भी दिया है। उनका कहना था कि वर्ष 2023 मस्जिदुल अक़सा के ख़िलाफ़ संघर्ष का साल साबित हो सकता है।

बिन ग़फ़ीर चरमपंथी ज़ायोनी नेता हैं वे मस्जिदुल अक़सा के ज़रिए फ़िलिस्तीन के मुद्दे को हमेशा के लिए ख़त्म कर देने की कोशिश करेंगे। इसलिए ज़रूरी है कि हम मस्जिदुल अक़सा पर ख़ास नज़र रखें और इसी लड़ाई में अपनी पूरी ताक़त लगा दें।

 

इस्राईली प्रधानमंत्री ने बस्तियों के निर्माण पर ज़ोर दिया

नए इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामीन नेतन्याहू द्वारा नई ज़ायोनी कालोनियों का निर्माण जारी रखने के फैसले के बाद कुछ अरब देशों ने इस फ़ैसले की निंदा की और तेल अवीव को इसके परिणामों के प्रति सचेत किया है।

नए कैबिनेट की विश्वास मत की बैठक में नेतन्याहू ने कैबिनेट की गंभीर प्राथमिकता के रूप में बस्तियों के निर्माण के मुद्देश को प्राथमिकता से उठाया। बस्तियों का निर्माण, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के मुख्य अपराधों में से एक है। यह अपराध इस शासन के क़ब्ज़े वाली नीति की परिधि में ही है और इसीलिए फिलिस्तीनी भूमि और घरों की ज़ब्ती तथा फ़िलिस्तीनियों का बड़े स्तर पर विस्थापन हुआ है।

वास्तव में ज़ायोनी शासन बस्तियों का निर्माण करके भूगोल न होने की समस्या को हल करना चाहता है और दूसरी ओर 21वीं सदी की शुरुआत से यह पूरे फ़िलिस्तीन पर क़ब्जा करने की कोशिश कर रहा है।

बस्तियों के सामाजिक और सुरक्षा नतीजे, फ़िलिस्तीनियों के लिए इतने भयानक हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने 2016 में इस अपराध की निंदा करते हुए प्रस्ताव 2334 पारित किया लेकिन उस समय नेतन्याहू के मंत्रिमंडल ने पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के समर्थन से इस प्रस्ताव का उल्लंघन किया।

अब नेतन्याहू एक बार फिर बस्तियों के निर्माण में वृद्धि पर ज़ोर दे रहे हैं जबकि उनके नये कार्यकाल को शुरु हुए केवल 6 ही दिन हुए हैं।

बस्तियों के निर्माण के लिए ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल के प्रयासों की निंदा करते हुए क़तर की संसद ने इस शासन को इसके परिणामों के बारे में सचेत किया और इस अपराध की निंदा करने में अरब संसदों की संयुक्त कार्रवाई का आह्वान किया।

एक बयान में अरब संसद ने फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ तेल अवीव की नई कैबिनेट के फ़ैसले और कार्रवाई की निंदा की। इससे पहले ओमान की संसद ने अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के साथ किसी भी तरह की बातचीत पर रोक लगा दी थी।

अरब संसदों की इन कार्रवाइयों से पता चलता है कि कई अरब देशों के प्रयासों के विपरीत, जो इस्राईल के साथ संबंध विकसित करने और फिलिस्तीनी मुद्दे को हाशिए पर रखने की दिशा में बढ़ रहे हैं, अरब संसदों की एक और संख्या जनमत और लोगों के अनुरूप फिलिस्तीन का समर्थन करने के लिए कदम उठा रही है। अरब दुनिया की फिलिस्तीन के समर्थन में यह राजनीतिक एकता, ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ दबाव बढ़ा सकती है।

अरब संसदों और लोगों के इस समर्थन के साथ ज़ायोनी शासन का सामना करने के लिए फ़िलिस्तीनी गुटों का गंभीर दृढ़ संकल्प भी सामने है, यह गुट न केवल ज़ायोनी शासन के कट्टरपंथी नए कैबिनेट की चेतावनियों और कार्यों से डरते हैं, बल्कि वे अतिवादियों और अतिग्रहकारी ज़ायोनी शासन की हिंसक कार्यवाहियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इस प्रक्रिया में हारने वाले सऊदी अरब जैसे देश हैं जो अरब दुनिया की जनता के आंदोलन पर बिना सोचे समझे इस्राईल के साथ संबंधों को सामान्य करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं।