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इस बार अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी नहीं दिया इस्राईल का साथ, फ़िलिस्तीन के इलाक़ों में ज़ायोनी बस्तियों के विस्तार की निंदा की!

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 20 फ़रवरी को एक आधिकारिक बयान जारी करके, अवैध रूप से फ़िलिस्तीन के क़ब्ज़ा किए गए इलाक़ों में ज़ायोनी बस्तियों के विस्तार की निंदा की है। इस परिषद के अंतिम प्रस्ताव के 6 साल बाद यह पहला क़दम है, जो विश्व समुदाय ने इस्राईल की ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों के ख़िलाफ़ उठाया है। हालांकि अमरीका ने 2016 के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर मतदान से दूरी अख़्तियार की थी।

सुरक्षा परिषद के इस बयान में कहा गया है कि अवैध बस्तियों के निर्माण की इस्राईल की योजना, 1967 के प्रस्तावों के आधार पर दो-देशों के समाधान के लिए ख़तरनाक है।

आख़िरी बार दिसम्बर 2016 में ओबामा प्रशासन के दौर में सुरक्षा परिषद ने ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ प्रस्ताव 2334 पारित किया था, जिसमें अवैध बस्तियों के निर्माण और विस्तार को रोकने के लिए कहा गया था। ओबामा प्रशासन इस प्रस्ताव पर होने वाले मतदान से दूर रहा था। हालांकि इस्राईल के पारंपरिक सहयोगी माने जाने वाले यूरोपीय देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था, जिससे इस्राईल का ग़ुस्सा भड़क उठा था। फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में अमानवीय और अवैध निर्माण की नीति इतनी अनुचित और अतार्किक है कि ज़ायोनी शासन के पश्चिमी सहयोगियों के पास भी उसका विरोध करने और विश्व समुदाय का साथ देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

यहां ध्यान योग्य बिंदू यह है कि 20 फ़रवरी को जारी होने वाले सुरक्षा परिषद के बयान का वाशिंगटन ने भी समर्थन किया है। यानी यह बयान सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों की सहमति से जारी किया गया है। हालांकि यूएई ने कहा था कि इस मुद्दे पर वह इससे ज़्यादा सख़्त बयान पेश नहीं करेगा, क्योंकि ऐसा करने की स्थिति में अमरीका उसे वीटो कर सकता था। यूएई द्वारा किए गए मसौदे में फ़िलिस्तीन के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में अवैध बस्तियों के निर्माण और विस्तार को तुरंत रूप से बंद करने की मांग की गई है।

सुरक्षा परिषद में ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ आधिकारिक बयान का पारित होना दर्शाता है कि इस्राईल के रणनीतिक साझेदार के रूप में भी अमरीका इसका विरोध नहीं कर सका, क्योंकि इस मुद्दे पर विश्व समुदाय पूर्ण सहमत था।

इससे स्पष्ट है कि धीरे-धीरे ही सही ज़ायोनी शासन के पाप का घड़ा भर रहा है और विश्व समुदाय उसके अमानवीय अपराधों के ख़िलाफ़ एकमत हो रहा है। फ़िलिस्तीन के प्रतिनिधि रियाद मंसूर ने सुरक्षा परिषद से मांग की है कि फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों के प्रति वह तटस्थ न रहे।

यहां एक और बिंदू ध्यान योग्य है कि अब ज़ायोनी शासन की अत्याचारपूर्ण नीतियों का विरोध ख़ुद ज़ायोनियों के बीच बढ़ने लगा है। इसके अलावा, अवैध ज़ायोनी शासन अपने इतिहास के सबसे भयानक राजनीतिक संकट से गुज़र रहा है।