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ईरान और सऊदी अरब के संबंधों के सामान्य होने की दिशा में महत्वपूर्ण काम, सात साल के बाद सऊदी अरब में ईरानी दूतावास खुल गया : वीडियो

ईरान और सऊदी अरब के संबंधों के सामान्य होने की दिशा में एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य 6 जून को अंजाम दिया गया है और वह कार्य यह है कि 6 जून मंगलवार को सात वर्षों के बाद ईरान का दूतावास सऊदी अरब में खुल गया।

ईरानी विदेशमंत्रालय में कूटनयिक मामलों के सहायक अली रज़ा बिकदिली ने कहा कि आज का दिन दोनों देशों के संबंधों के इतिहास में महत्वपूर्ण दिन है। इस बात से हमें बड़ी खुशी है कि आज हम अपने दोस्त व भाई देश सऊदी अरब में हैं। उन्होंने कहा कि ईरान और सऊदी अरब के राष्ट्रीय ध्वजों के एक दूसरे के देशों में फहराने से द्विपक्षीय सहकारिता अपने शिखर पर पहुंच जायेगी।

सऊदी अरब में ईरानी दूतावास का दोबारा खुलना एक महत्वपूर्ण कार्य है और यह कार्य 10 मार्च को चीन में बीजींग की मध्यस्थता से ईरान और सऊदी अरब के मध्य होने वाले समझौते का परिणाम है। ईरान और सऊदी अरब ने सात साल तीन महीने के बाद अपने दूतावासों को एक दूसरे के देशों में खोलने पर सहमति जताई थी। इसके बाद 6 अप्रैल को दोनों देशों के विदेशमंत्रियों ने एक दूसरे से मुलाकात की थी और मुलाकात के बाद एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की थी जिसमें द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार की दिशा में मौजूद रुकावटों को दूर करने पर बल दिया गया था।

अभी हाल ही में ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने दक्षिण अफ्रीका की राजधानी कैपटाउन में ब्रिक्स बैठक से इतर अपने सऊदी समकक्ष फैसल बिन फरहान से भेंटवार्ता की थी और दोनों देशों के कूटनयिक संबंधों में हासिल होने वाली प्रगति पर प्रसन्नता जताई थी और कहा था कि यह अच्छी बात है कि दोनों देशों के राजदूतों का निर्धारण हो गया और एक दूसरे के देशों को बता दिया गया और एक दूसरे के दूतावासों और काउंसलेट्स के खुलने का मार्गप्रशस्त हो गया है।

सऊदी अरब के विदेशमंत्री ने भी कहा था कि दोनों देशों के मध्य बहुत अच्छी सहकारिता हो रही है और हम राजदूतों के निर्धारण से आगे बढ़ चुके हैं। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि हम एसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जो दोनों देशों के हितों को पूरा करने वाला हो और इसी प्रकार वह पूरे क्षेत्र के हित में हो।

ईरान और सऊदी अरब के मध्य संबंधों का सामान्य व अच्छा होना अमेरिका और इस्राईल को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है क्योंकि तनाव उत्पन्न करना, विशेषकर इस्लामी देशों के बीच फूट व मतभेद डालना उनकी नीति का भाग है और उनके बीच मतभेद डालने में ही वे अपने हितों को निहित समझते हैं। अमेरिका, ईरान पर क्षेत्र में तनाव उत्पन्न करने का आरोप लगता है जबकि पूरी दुनिया में यह जगज़ाहिर है कि वास्तविकता क्या है और अमेरिका हज़ारों किलोमीटर से दूर से यहां आकर क्षेत्रीय देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता और उन पर कब्ज़ा करता है। अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में अमेरिकी क्रियाकलापों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।

बहरहाल ईरान और सऊदी अरब के मध्य संबंधों का सामान्य होना जिस तरह न केवल दोनों देशों बल्कि पूरे इस्लामी जगत के हित में है उसी तरह ये संबंध न केवल अमेरिका और इस्राईल बल्कि वर्चस्ववादी देशों के हितों के खिलाफ हैं।