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ऊर्जा की तलाश में जर्मनी के चांस्लर फ़ार्स की खाड़ी के देशों की दो दिवसीय यात्रा पर सऊदी अरब के नगर जद्दा पहुंचे : रिपोर्ट

ओलाफ़ स्कोल्ज़ फ़ार्स की खाड़ी के देशों की दो दिवसीय यात्रा पर सऊदी अरब के नगर जद्दा पहुंचे।

सऊदी अरब की यात्रा के बाद जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़, क़तर और संयुक्त अरब इमारात की यात्रा करेंगे। इस यात्रा में मूलतः ऊर्जा के बारे में विचार-विमर्श किया जाएगा।

सऊदी अधिकारियों से जर्मनी के चांस्लर यूक्रेन युद्ध, यमन संकट और ईरान के परमाणु कार्यक्रम के संबन्ध में भी बातचीत करेंगे। फ़ार्स की खाड़ी की यात्रा से ओलाफ़ स्कोल्ज़ का उद्देश्य ऊर्जा के बारे में तलाश करना है। अपनी इस यात्रा से वे जर्मनी और यूरोप के लिए तेल और गैस की आपूर्ति को सुनिश्चित करवाना चाहते हैं।

यूक्रेन युद्ध के बाद अमरीका के मार्गदर्शन पर यूरोप विशेषकर जर्मनी ने रूस से तेल और गैस की ख़रीद पर प्रतिबंध लगा दिया। इस काम के माध्यम से यूरोपीय देश अमरीका के साथ मिलकर रूस पर दबाव डालना चाहते थे। हालांकि इस नीति का यूरोप के लिए उल्टा नतीजा निकला।

अमरीका के उकसावे में आकर जब यूरोपीय देशों ने रूस के विरुद्ध प्रतिबंध लगाए तो इसके जवाब में रूस ने यूरोप के लिए तेल और गैस की सप्लाई को या तो बहुत सीमित कर दिया या फिर उसे बंद कर दिया। इस वजह से वर्तमान समय में ऊर्जा को लेकर यूरोप की स्थति बहुत ही दयनीय हो गई है। इस बीच यूरोप की सबसे बड़ी और विश्व की महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था के रूप में जर्मनी को कई प्रकार की जटिलताओं का समाना करना पड़ रहा है क्योंकि वह रूस से गैस आयात करता था।

एक आर्थिक रिपोर्ट बताती है कि जर्मनी को पिछले 50 वर्षों में सबसे अधिक गंभीर आर्थिक संकट का सामना है। जिन आर्थिक विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है उनका कहना है कि क्रय शक्ति में ह्रास, मंहगाई में बढ़ोत्तरी और ऊर्जा के मूल्यों मे लगातार वृद्धि ने जर्मन वासियों के लिए आर्थिक मंदी की भूमिका प्रशस्त कर दी है।

हालांकि जर्मनी के अधिकारियों ने यह दावा किया है कि जाड़ों का मौसम आने से पहले तक देश के गैस भण्डारों को 85 प्रतिशत तक भर दिया जाएगा किंतु जानकारों का कहना है कि यह दावा सही नहीं है क्योंकि वह अमरीका जिसके कहने पर जर्मनी के रूस के विरुद्ध कड़े प्रतिबंध लगाए थे वह जर्मनी की ग़ैर की ज़रूरत को पूरा करने में अक्षम है।

अब अगर दूसरे देशों से तेल और गैस लेने की की बात की जाए तो वे भी अल्प अवधि में जर्मनी की ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाएंगे। इस हिसाब से आने वाले जाड़ो तक जर्मनी के लिए अपनी ज़रूरत की गैस का प्रबंध करना बहुत कठिन काम होगा।

कुछ जानकारों का तो यहां तक कहना है कि यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप विशेषकर जर्मनी के लिए जो आर्थिक दुष्परिणाम सामने आए हैं उनको समाप्त होने में 20 वर्षों का समय लग सकता है। यूरोप को एसी हालत से इसलिए गुज़रना पड़ रहा है कि उसने बिना सोचे-समझे यूक्रेन में युद्ध में रूस के विरुद्ध अमरीका का अंधा समर्थन किया।