धर्म

”ऐसे नमाज़ियों के लिये जहन्नुम है जो अपनी नमाज़ से बेख़बर हैं और दिखलाने के लिये पढ़ते है”

Razi Chishti
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अल्लाह सु.हू.त. ने फ़रमाया कि जब नमाज़ ख़त्म हो चुके तो ज़मीन पर फैल जाओ और अल्लाह ने जो नेअमतें तुमको दी हैं उन्हे तलाश करो और अल्लाह को याद करते रहो(62:10) देखें इबादत करना और ज़रूरियाते ज़िंदगी को हासिल करना और अल्लाह को याद करना, अल्लाह सु.हू.त. ने फर्ज़ क़रार दिया है. सूरह हदीद में फ़रमाया कि अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और जिस चीज़ में अल्लाह ने तुमको ख़लीफ़ा बनाया है उसमें से ख़र्च करो(57:7). देखें इस आयत में भी अल्लाह सु.हू.त. ने ईमान लाना और नेअमतों को हासिल करना और उनको मख़लूक़ की परवरिश के लिये ख़र्च करना यह हुक्म एक साथ देरहा है अर्थात ईमान क़ायम रखना, इबादत करना और ज़रूरियाते जिंदगी यह अलग अलग नहीं हैं, सबको एक साथ लेकर चलना ही दीन है. निष्कर्ष यह निकला कि ईमान क़ायम रखना, इबादत करना, अल्लाह सु.हू.त. को याद करना, नेअमतों को हासिल करना, उनमें से ख़र्च करना और कारोबारे जहान को अंजाम देना, यह सब अल्लाह ने बंदगी में शुमार किया है.

मह-वे तसबीह तो सब हैं मगर इदराक कहाँ
जिंदगी ख़ुद ही इबादत है मगर होश नहीं

चूंकि अल्लाह सु.हू.त. ने हमको एक संतुलित क़ौम बनाया है इसलिये हमको चाहिये कि इबादत करने और ज़रूरियाते ज़िंदगी को हासिल करने में संतुलन बनाए रक्खें. जो लोग रस्मी इबादत में मसरूफ़ हो गये और ज़ुबान से अल्लाह अल्लाह कहते रहे और दुनियावी मामलात को तर्क कर दिये वह न तो नमाज़ की हक़ीक़त को समझ पाये और न ही इबादत और दुनियावी ज़िम्मेदारी मे संतुलन ही बना पाये. ऐसे ही लोगों के लिये पवित्र क़ुरआन फ़रमा रहा है कि यह लोग नमाज़ की हाकीक़त से बेखबर हैं. अल्लाह सु.हू.त. ने फ़रमाया;

“क्या देखा तुमने उसको जिसने दीन को झुठलाया, जिसने यतीमों को धक्का दिया और जो मोहताजों को खाना खिलाने के लिये नहीं उकसाता; ऐसे नमाज़ियों के लिये जहन्नुम है जो अपनी नमाज़ से बेख़बर हैं और दिखलाने के लिये पढ़ते हैं.”(107:1-6)
Razi Chishti