विशेष

कमर दर्द , सर्वाइकल और चारपाई…..

Gum panno ki zuban
=============
यशस्वी भव:
परसों सब्जी मंडी गई थी तब पास ही ठेला लगाए इस बच्चे पर नज़र पड़ी। पड़ती भी कैसे नहीं… इसके चेहरे पर तेज ही इतना दिख रहा था।
मैंने मुस्कराते हुए पहला सवाल यही किया : स्कूल जाते हो?
उसने मुझसे ज़रा ज्यादा मुस्कान ( जिसमें थोड़ी झिझक भी शामिल थी) के साथ जवाब में हामी भरते हुए गर्दन नीचे की ओर हिलायी…
मैंने कहा : जैसे तुमने खुश होकर जवाब दिया, लगता है कि तुम्हारा मन खूब लगता है पढ़ाई में…
उसने फिर उत्साहित भाव से हामी भरी…बोला कि इस समय स्कूल ही होता हूँ लेकिन अभी छुट्टियां चल रही हैं इसलिए यहां आता हूं…
मैंने कहा : बहुत अच्छी बात है… तुम्हारा नाम क्या है?
जवाब मिला : “यश”
मैंने पूछा : यश का मतलब मालूम है?
जवाब मिला : “नहीं”
मैं उसे यश का अर्थ बताने लगी… (तस्वीर में पीछे बैठा एक दूसरा ठेले वाला भी बड़ी गौर से हमें देख सुन रहा था, यश का अर्थ जानकर वह भी मुस्कुराया)
यश अपने नाम का अर्थ जानकर वाकई बड़ा खुश हुआ…
मैंने जाते हुए पर्स से फोन निकाला और कहा कि चलो मेरे साथ एक फोटो हो जाए… अबकी बार आम खत्म होंगे तो तुमसे लेने आऊंगी…
यशस्वी भव :
वह मुझे स्कूटी पर जाते हुए दूर तक देखता रहा…

😬मस्तराम😆😬 ·
Gaurav Kumar ·
=============
कमर दर्द , सर्वाइकल और चारपाई…..
हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे।
सोने के लिए खाट हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है। हमारे पूर्वजों क्या लकड़ी को चीरना नहीं जानते थे ? वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं। चारपाई भी भले कोई साइंस नहीं है , लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है। उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है।

जब हम सोते हैं, तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है ; क्योंकि रात हो या दोपहर में लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते हैं। पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की झोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।

दुनिया में जितनी भी आरामदायक कुर्सियां देख लें , सभी में चारपाई की तरह झोली बनाई जाती है। बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपडे की झोली का था , लकडी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया गया है। चारपाई पर सोने से कमर और पीठ का दर्द का दर्द कभी नही होता है। दर्द होने पर चारपाई पर सोने की सलाह दी जाती है।

डबलबेड के नीचे अंधेरा होता है , उसमें रोग के कीटाणु पनपते हैं , वजन में भारी होता है तो रोज-रोज सफाई नहीं हो सकती। चारपाई को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया कीटनाशक है। खटिया को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं।

अगर किसी कोई डॉक्टर Bed Rest लिख देता है तो दो तीन दिन में उसको English Bed पर लेटने से Bed -Soar शुरू हो जाता है । भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है । चारपाई पर Bed Soar नहीं होता क्योकि इसमें से हवा आर पार होती रहती है ।

गर्मियों में इंग्लिश Bed गर्म हो जाता है इसलिए AC की अधिक जरुरत पड़ती है जबकि सनातन चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है ।
बान की चारपाई पर सोने से सारी रात Automatically सारे शारीर का Acupressure होता रहता है ।

गर्मी में छत पर चारपाई डालकर सोने का आनद ही और है। ताज़ी हवा , बदलता मौसम , तारों की छाव ,चन्द्रमा की शीतलता जीवन में उमंग भर देती है । हर घर में एक स्वदेशी बान की बुनी हुई (प्लास्टिक की नहीं ) चारपाई होनी चाहिए।

भारतीय पूर्वजों की सोच और समझ को मेरा सैल्यूट है।
🙏🙏🙏🙏🙏

Sukhpal Gurjar
=============
किसी गांव के पास एक फिल्म की शूटिंग हो रही थी।
डायरेक्टर को एक गरीब व्यक्ति की जरूरत हुई तो उसने अपने एक सहायक को भेजकर गांव के बाहर बने झोंपड़े से एक व्यक्ति को बुला लिया।
‘एक्टिंग करेगा?’-डायरेक्टर ने उस फटेहाल गरीब से पूछा।
‘खाना मिलेगा?’-वह खुश हो गया।
‘मिलेगा, पर पहले छोटी सी एक्टिंग।’-डायरेक्टर को डर था कि कहीं खाना खाकर वह कोई समस्या खड़ी नहीं करे।
वह राजी हो गया।
डायरेक्टर को एक दृश्य करना था जिसमें सड़क पर चलते एक राहगीर को किसी गाड़ी में जाती लड़कियों को देख सीटी बजाकर जोरों से हंसना था।
उसे राहगीर के हिसाब से कपड़े पहनाए गए जो उस गरीब के लिहाज से बहुत अच्छे थे।
वह हंसा।
बिना किसी रिटेक के उसकी वास्तविक हंसी देख डायरेक्टर दंग रह गया।
अगले दृश्य में कार में चलती उन्हीं लडकियों में से एक के द्वारा उसे थप्पड़ मार दिए जाने पर उसे रोना था।
वह रोया। फफक कर रोया।
डायरेक्टर ने उसे खाना खिलाया और कुछ पैसे भी दिए।
‘तुमने हंसने की इतनी अच्छी एक्टिंग कैसे कर ली?’-
उसने गरीब व्यक्ति से अपनी हैरानी जाहिर की।
वह फिर हंसा। कहने लगा-‘मैं बहुत भूखा था। मुझे यह सोच हंसी आ गई कि पेट में दो दिन से अन्न नहीं और हंसने को कहा जा रहा है।’
‘अच्छा!’-डायरेक्टर ने आंखें मिचमिचाते हुए पूछा-‘और फिर इतनी अच्छी तरह से रो पड़े।’
‘हां!’-उसके फिर आंसू निकल आए-‘झोंपड़ी में बीमार पत्नी है। कभी वह भी इन लड़कियों जैसी खूबसूरत दिखती थी पर अब…। बस उसे याद करके रो पड़ा साहब!’